जानिए दुनिया के इन स्मार्ट बमों के बारे में, भारत कितना शक्तिशाली
भारत जो स्पाइस 2000 इस्तेमाल करता है वारहेड के साथ उनका वज़न 900 किलो तक होता है.आइए जानें किस देश के पास कैसे-कैसे स्मार्ट बम हैं..
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भारतीय वायुसेना (IAF) को इस महीने (सितंबर) हवा से जमीन पर लक्ष्य को भेद देने वाली मारक गाइडेड बम स्पाइस-2000 के उन्नत संस्करण मिल जाएंगे. ये हथियार भारत को इजयाइल से मिलेंगे. आपको बता दें कि इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भी सितंबर में भारत के दौरे पर आने वाले हैं. भारत जो स्पाइस 2000 इस्तेमाल करता है वारहेड के साथ उनका वज़न 900 किलो तक होता है.आइए जानें किस देश के पास कैसे-कैसे स्मार्ट बम हैं..
पकिस्तान के स्मार्ट बम
- 1,000 MK-82 500-pound bombs
- 2010 में अमेरिका ने पाक्सितान को 1000 MK-82 लेज़र गाइडेड बम दिए थे
- MK-82 अमरीकी सीरीज़ Mark 80 का लेज़र गाइडेड बम है
- इस बम को लांच करने से लेकर फटने में कुल 2 मिनट 30 सेकंड का वक़्त लगता है
- MK-82 लेज़र गाइडेड बम का वज़न 500 पौंड यानी 227 किलोग्राम है
- 1990 में अमेरिका इस बम का इस्तेमाल ईराक़ युद्ध में कर चुका है
- फ़्रांस और सऊदी अरब के पास भी MK-82 लेज़र गाइडेड बम मौजूद है
- 700 GBU-12 and 300 GBU-10 Paveway laser-guided bomb
अमेरिका में निर्मित निर्देश बम किट जीबीयू-12 पेववे लेजर बम पलक झपकते ही निशाने को मलबे में तब्दील कर सकता है जीपीएस प्रणाली से लैस यह बम लक्ष्य को भेदने के बाद फटता है, जिससे अधिक नुकसान होता है. लक्ष्य से बम के छिटकने की आशंका मात्र एक मीटर होती है. भारत ने बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक में इसी बम का इस्तेमाल किया था
स्पाइस-2000 बम
26 फरवरी को पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों को तबाह करने के बाद एक नाम जो बार-बार सामने आ रहा है, वो है मिराज से बरसाए गए स्पाइस-2000 (Smart, Precise Impact, Cost-Effective) बम. बता दें कि इसे भारतीय वायुसेना का पसंदीदा हथियार माना जाता है और खुद वायुसेना मानती है कि इस बम की मौजूदगी से उन्हें पाक-चीन बॉर्डर पर शांति बनाए रखने में काफी मदद मिलती रही है.
स्पाइस-2000 की खासियत यह है कि यह सिर्फ एक सामान्य बम नहीं होकर गाइडेंस किट है जो किसी भी स्टैंडर्स वारहेड या बम से जुड़ी होती है. इसके दो हिस्से होते हैं. पहला हिस्सा स्टैंडर्स वारहेड के अगले हिस्से से जोड़ा जाता है जबकि दूसरा बम के पिछले हिस्से से जोड़ा जाता है. किट के पहले भाग की नोक पर एक कैमरा लगा होता है जो टार्गेट को आइडेंटिफाई करता है. जबकि दूसरे भाग में एक डेटा चिप होती है, जो स्पाइस-2000 को बम छोड़ने का सही वक्त बताती है. SPICE की फुल फॉर्म ही- Smart, Precise Impact, Cost-Effective बताई जाती है.
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टार्गेट को तबाह करने के लिए किस उंचाई से किस वक़्त बम गिराया जाएगा और उसे किस दिशा में हिट करना होगा इससे संबंधित एक प्लान बनाकर मेमरी चिप में एड कर दिया जाता है. इस डेटा में GPS, टारगेट की सही तस्वीर और टागरेट से जुड़ी तमाम जानकारियां होती हैं जिससे बम को सही दिशा में छोड़ा जाए और टारगेट तक पहुंचाया जाए. फाइटर प्लेन से गिराने के बाद अगर बम गलत दिशा में जा रहा हो तो भी उसका रास्ता बदला जा सकता है. मिशन के दौरान एक बार फाइटर जेट पूर्व निर्धारित स्थान और ऊंचाई पर पहुंच जाता है तो वहां से वो इन स्मार्ट बमों (स्पाइस-2000) को गिरा देता है.
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इजरायल निर्मित स्पाइस बम सबसे बड़ा बम है, जिसका इस्तेमाल भारतीय वायु सेना करती है. इजरायल की फर्म राफेल एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम्स लिमिटेड द्वारा निर्मित, 2000-पौंड सटीक निर्देशित बमों का उपयोग फ्रांसीसी मूल के मिराज 2000 किया जाता है. स्पाइस 2000 को डीकैपिटेटिंग वेपन कहा जाता है जो सटीक हमले के जरिए दुश्मन के अड्डे को खत्म करने के लिए डिजाइन किया गया है. स्पाइस 2000 की ग्लाइडिंग रेंज (मार करने की क्षमता) 60 किलोमीटर तक है.
अमेरिका - मदर ऑफ ऑल बम
अप्रैल 2017 में अमेरिका ने खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) के खिलाफ सबसे बड़ी कार्रवाई करते हुए अफगानिस्तान में सबसे बड़ा गैर परमाणु बम 'GBU-43' गिराया था . करीब 10 क्विंटल (21,000 पाउंड) वजनी इस बम को 'मदर ऑफ ऑल बॉम्ब' के नाम से जाना जाता है. इस बेहद घातक बम को MC-130 एयरक्राफ्ट से गिराया गया. पेंटागन के प्रवक्ता ने बताया था कि इस बम का पहली बार इस्तेमाल किया गया था.
10 क्विंटव वजनी GBU-43/B मैसिव ऑर्डिनेंस एयर ब्लास्ट (MOAB) बम जीपीएस गाइडेड है.इस बम को अमेरिकी सेना के अल्बर्ट वेमोर्ट्स ने विकसित किया था. साल 2003 में इस बम का पहली बार परीक्षण किया गया था. सफल परीक्षण के बाद इस बम को 2003 में इराक युद्ध के दरम्यान बनाया गया.अमेरिका के इस बम के जवाब में रूस ने फॉदर ऑफ ऑल बॉम्ब विकसित किया, जो GBU-43 से चार गुना ज्यादा शक्तिशाली है.
रूस का फॉदर ऑफ ऑल बम
जिस बम का इस्तेमाल अमेरिका ने अफगानिस्तान में किया है उसमें 11 टीएनटी जितनी ताकत है. लेकिन रूस का ATBIP बम 44 टीएनटी जितनी क्षमता से तबाही ढहा सकता है. एविएशन थर्मोबारिक बॉम्ब ऑफ इनक्रिजिड पावर (ATBIP) अमेरिका के GBU-43/B बम से चार गुना ज्यादा मारक क्षमता रखता है. जिस बम का इस्तेमाल अमेरिका ने अफगानिस्तान में किया है उसमें 11 टीएनटी जितनी ताकत है. लेकिन रूस का ATBIP बम 44 टीएनटी जितनी क्षमता से तबाही ढहा सकता है.
अमेरिका ने पहली बार GBU-43/B का परीक्षण साल 2003 में किया था. जबकि रूस ने फादर ऑफ ऑल बॉम्ब्स को साल 2007 में टेस्ट किया था. अमेरिकी सेना का दावा है कि ATBIP अमेरिकी बम के मुकाबले आकार में छोटा और ज्यादा सटीक है. ATBIP अफगानिस्तान में इस्तेमाल किये गए बम के मुकाबले ब्लास्ट के बाद दोगुना ज्यादा तापमान पैदा करता है. लिहाजा इससे होने वाली तबाही भी ज्यादा होती है. अमेरिकी सेना की मानें तो फादर ऑफ ऑल बॉम्ब्स से होने वाली बर्बादी परमाणु बम जितनी ही होती है. लेकिन इससे रेडिएशन का खतरा नहीं होता. इतना ही नहीं, एक ATBIP बम से होने वाली तबाही का दायरा करीब 300 मीटर होता है. ये GBU-43/B की क्षमता से लगभग दोगुना है.
चीन का मदर ऑफ ऑल बम
चीन ने भी 'मदर ऑफ ऑल बम' बनाने का दावा किया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन का दावा है कि उसके द्वारा तैयार किए गए सबसे शक्तिशाली गैर-परमाणु बम 'मदर ऑफ ऑल बम' अमेरिका के 'मदर ऑफ ऑल बम' का जवाब है. दावा है यह परमाणु हथियारों के बाद दूसरा सबसे ज्यादा घातक हथियार है. जानकारी के मुताबिक इससे होने वाली तबाही लगभग परमाणु बम जैसी ही होगी.
इस बेहद घातक बम को H-6K एयरक्राफ्ट से गिराया गया, जिसके कारण एक विशाल विस्फोट हुआ. चीन ने नॉर्थ इंडस्ट्रीज ग्रुप कॉर्पोरेशन लिमिटेड (NORINCO) की वेबसाइट पर दिसंबर 2018 में एक वीडियो जारी कर इसकी सूचना दी. चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक यह पहली बार है जब सार्वजनिक रूप से किसी नए बम की विनाशकारी शक्तियों को दिखाया गया हो.
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चीन द्वारा तैयार किया गया यह बम अमेरिकी 'मदर ऑफ ऑल बम' के मुकाबले आकार में छोटा और हल्का है. जानकारी के मुताबिक इसकी लंबाई 5 से 6 मीटर है. बाधाओं से घिरे जंगली इलाकों में हेलिकॉप्टर से नीचे उतरने वाले सैनिकों के लिए एक लैंडिंग जोन बनाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.
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