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Independence Day 2021:श्यामजी कृष्ण वर्मा : क्रांतिकारियों के प्रेरणास्रोत

मातृभूमि की आजादी के लिए विदेश में संघर्ष करते रहे और अंतत: 31 मार्च 1930 को जिनेवा के एक अस्पताल में अपना नश्वर शरीर त्याग दिया. उनका शव अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों के कारण भारत नहीं लाया जा सका और वहीं उनकी अन्त्येष्टि कर दी गयी.

Updated on: 13 Aug 2021, 01:06 PM

highlights

  • श्यामजी कृष्ण वर्मा ने लंदन में की थी इंडिया हाउस की स्थापना
  • 31 मार्च1930 को जिनेवा के एक अस्पताल में हुआ था उनका निधन
  • 22 अगस्त 2003 को श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां आयी भारत  

नई दिल्ली:

Independence Day 2021:आजादी की लड़ाई में शामिल क्रांतिकारियों की गणना करना मुश्किल है लेकिन क्रांतिकारियों के प्रेरणास्रोत की संख्या कम ही रही है. श्यामज कृष्ण वर्मा ऐसे ही क्रांतिकारी, विचारक और देशभक्तों के प्रेरणास्रोत रहे हैं जिनका जन्म तो भारत में हुआ लेकिन मातृभूमि की आजादी के लिए विदेश में संघर्ष करते रहे और अंतत: 31 मार्च 1930 को जिनेवा के एक अस्पताल में अपना नश्वर शरीर त्याग दिया. उनका शव अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों के कारण भारत नहीं लाया जा सका और वहीं उनकी अन्त्येष्टि कर दी गयी. 22 अगस्त 2003 को भारत की स्वतन्त्रता के 55 वर्ष बाद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने स्विस सरकार से अनुरोध करके जिनेवा से श्यामजी कृष्ण वर्मा और उनकी पत्नी भानुमती की अस्थियों को भारत मंगाया.  

श्यामजी कृष्ण वर्मा  का जन्म 4 अक्टूबर 1857 को गुजरात गुजरात राज्य के कच्छ जिले के माण्डवी कस्बे में श्रीकृष्ण वर्मा के यहां हुआ था. वकालत की पढ़ाई पूरा करने के बाद वे अजमेर में वकालत करने लगे. इसी दौरान उनका संपर्क लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और स्वामी दयानंद सरस्वती से हुआ. इस तरह वे एक साथ देश की आजादी और आर्य समाज के लिए काम करने लगे. उनकी प्रतिभा और योग्यता को देखते हुए रतलाम के महाराजा ने उन्हें अपने राज्य का दीवान नियुक्त किया. बाद में वे और गुजरात के जूनागढ़ और राजस्थान के उदयपुर में दीवान रहते हुए जनहित के काम किये. 

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मात्र बीस वर्ष की आयु से ही वे क्रान्तिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे थे. 1918 के बर्लिन और इंग्लैण्ड में हुए विद्या सम्मेलनों में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया था. वे पहले भारतीय थे, जिन्हें ऑक्सफोर्ड से एमए और बार-ऐट-ला की उपाधियां मिलीं थी. उनकी प्रतिभा का लोहा अंग्रेज भी मानते थे. पुणे में दिये गये उनके संस्कृत के भाषण से प्रभावित होकर मोनियर विलियम्स ने श्यामजी को ऑक्सफोर्ड में संस्कृत का सहायक प्रोफेसर बना दिया था. विनायक दामोदर सावरकर भी श्यामजी से प्रेरित होकर क्रांतिकारी कार्यो में सम्मिलित हुए. लन्दन में रहते हुए उन्होंने इण्डिया हाउस की स्थापना की जो इंग्लैण्ड जाकर पढ़ने वाले छात्रों के परस्पर मिलन एवं क्रांतिकारियों के प्रशिक्षण का एक प्रमुख केन्द्र था.

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1897 में वे पुनः इंग्लैण्ड गये और मासिक समाचार-पत्र "द इण्डियन सोशियोलोजिस्ट" निकाला, जिसे आगे चलकर जिनेवा से भी प्रकाशित किया गया. इंग्लैण्ड में रहकर उन्होंने इंडिया हाउस की स्थापना की. भारत लौटने के बाद 1905 में उन्होंने क्रान्तिकारी छात्रों को लेकर इण्डियन होम रूल सोसायटी की स्थापना की. उनके द्वारा स्थापित संस्थाएं क्रान्तिकारी छात्रों के जमावड़े के लिये प्रेरणास्रोत सिद्ध हुई.