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शिया मुसलमानों के 'जेम्स बांड' कमांडर सुलेमानी को सऊदी का वर्चस्व बढ़ाने के लिए मारा गया

इराक, लेबनान, सीरिया और अन्य देशों में ईरान का अमेरिका की तुलना में कहीं ज्यादा अच्छा प्रभाव है. ऐसे में आने वाले दिनों में कुछ बड़ा होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है.

Updated on: 04 Jan 2020, 02:40 PM

highlights

  • अयातुल्लाह खामेनेई ने कासिम सुलेमानी को 'जिंदा शहीद' की उपाधि दी थी.
  • तेहरान को गैर पारंपरिक युद्ध में मात देने के लिए मरवा डाला अमेरिका ने.
  • अब ईरान अमेरिका को करारा जवाब देने के लिए सही वक्त का इंतजार करेगा.

नई दिल्ली:

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के सबसे शक्तिशाली सैन्य कमांडर और खुफिया प्रमुख मेजर जनरल कासिम सुलेमानी को न केवल तेहरान को गैर पारंपरिक युद्ध में मात देने के लिए, बल्कि सऊदी अरब को भी एक संदेश देने के लिए मरवा डाला. ईरान में सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह खामेनेई के बाद कासिम को दूसरे नंबर का सबसे ताकतवर शख्स माना जाता था. कासिम की लोकप्रियता का अंदाजा ऐसे भी लगाया जा सकता है कि एक पूर्व सीआईए एनालिस्ट ने सुलेमानी को मध्य पूर्व के शिया मुसलमानों के बीच जेम्स बांड और लेडी गागा सरीखी 'कल्ट फिगर' सा दर्जा प्राप्त शख्स करार दिया था.

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'जिंदा शहीद' की उपाधि
1957 में पूर्वी ईरान के एक गरीब परिवार में जन्मे कासिम काफी कम उम्र में ही सेना से जुड़ गए थे. 1980 के ईरान-इराक युद्ध में सीमा की रक्षा को लेकर वह काफी चर्चित रहे. इस युद्ध में अमेरिका ने इराक का साथ दिया था. इस युद्ध के बाद ही ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह खामेनेई ने कासिम सुलेमानी को 'जिंदा शहीद' की उपाधि दी थी. इसकी वजह यह थी कि वह जानते थे कि कासिम सुलेमानी दुश्मन के निशाने पर आ चुके हैं. यही वजह है कि सुलेमानी की मौत के बाद खामेनेई ने कहा कि भले ही वह चले गए, लेकिन उनका मिशन और रास्ता खत्म नहीं होगा.

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पश्चिम एशिया में दबदबे का मसला भी
गौरतलब है कि शिया मुसलमानों का प्रमुख देश ईरान पश्चिम एशिया में प्रभुत्व के लिए प्रतिस्पर्धा करता रहा है, जो लंबे समय से सुन्नी प्रमुख सऊदी अरब के प्रभाव में है. हालांकि दोनों ही देश प्रमुख तेल उत्पादक हैं और सऊदी दुनिया में तेल का सबसे बड़ा निर्यातक भी है. ऐसे में सऊदी अरब का दोस्त अमेरिका ईरान पर उसके यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम को रोकने की आड़ में 2006 में तीसरी बार प्रतिबंध थोप चुका था. जाहिर है अमेरिकी प्रतिबंधों के ईरान की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचा. ऐसे में ईरान के सशस्त्र बलों की शाखा इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) अमेरिकी प्रतिबंधों के प्रभावों की भरपाई के लिए प्रयासरत थी, जिसकी अध्यक्षता जनरल सुलेमानी कर रहे थे.

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आईएस को दी थी मात
लंदन स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक अफेयर्स (आईआईएसए) द्वारा नवंबर 2019 में प्रकाशित डोजियर के अनुसार, इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान ने 1979 की क्रांति के बाद पहली बार उप-पारंपरिक युद्ध की रणनीति का इस्तेमाल किया और उसने लेबनान में शिया आतंकी समूह हिजबुल्लाह बनाया. कासिम सुलेमानी ने ही शिया मिलिशिया का गठन किया, जिसकी मदद से सीरिया और यमन में कट्टरवादी आतंकी संगठन आईएसआईएस को शिकस्त दी जा सकी. इस देश का आतंकवादी गुटों को बढ़ाने और अपने प्रतिद्वंद्वियों के साथ दुर्व्यवहार करने का दृष्टिकोण नया नहीं है.

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ईरान ने ओबामा से किया था समझौता
बताते हैं कि 2003 में इराक में अमेरिका द्वारा सद्दाम हुसैन के शासन को उखाड़ फेंकने के बाद से कुर्द बलों ने तेहरान से संबद्ध लड़ाकों को प्रशिक्षण, धन और हथियार प्रदान करते हुए वहां अपना संचालन तेज कर दिया था. सुलेमानी ने पॉपुलर मोबलाइजेशन यूनिट्स (पीएमयू) नामक एक अर्धसैनिक बल को सशस्त्र और प्रशिक्षित किया, जिसने आईएस को हराने में मदद की. 2016 में अधिकांश प्रतिबंधों को हटाए जाने के बाद जब ईरान ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ कम से कम 10 वर्षो तक फैले अपने परमाणु कार्यक्रम की सीमा के बदले सौदा किया, तो सुलेमानी का प्रभाव तेजी से बढ़ा. हालांकि डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने सत्ता में आने के बाद, ईरान के साथ समझौते को रद्द करने का फैसला लिया, जिसके बाद दोनों देशों के बीच तल्खी काफी बढ़ गई.

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शांत नहीं बैठने वाला ईरान
ऐसे में डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कासिम सुलेमानी को ड्रोन हमले में मार गिराने के बाद पश्चिम एशिया में हालात काफी तनावपूर्ण हो गए हैं. कैलिफोर्निया के पॉलिसी थिंक टैंक रैंड कॉर्पोरेशन के एसोसिएट पॉलिटिकल साइंटिस्ट एरिआने ताबातबई की टिप्पणी खासी महत्वपूर्ण हो जाती है. उनके मुताबिक ईरान हमेशा सारी गणित लगाकर ही कोई काम करता है. इसके तहत वह बेहद सुनियोजित तरीके से कोई कदम आगे बढ़ाता है. ऐसे में ईरान अमेरिका को करारा जवाब देने के लिए सही वक्त का इंतजार करेगा. भूलना नहीं चाहिए कि अपनी प्रॉक्सी फोर्स के लिए विख्यात ईरान गुरिल्ला युद्ध से ताकतवर से ताकतवर सेना के हौसले पस्त करने करने में सक्षम है. इराक, लेबनान, सीरिया और अन्य देशों में ईरान का अमेरिका की तुलना में कहीं ज्यादा अच्छा प्रभाव है. ऐसे में आने वाले दिनों में कुछ बड़ा होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है.