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सत्येंद्र नाथ बोस: गूगल ने डूडल बना कर दी श्रद्धांजलि, उनकी खोजों पर मिले 7 नोबेल पुरस्कार

नोबेल पुरस्कारों के पीछे की वैश्विक राजनीति के बारे में सभी जानते हैं, लेकिन सत्येंद्र नाथ बोस किस तरह से पिछड़ गए, उसे इस बात से जानिए कि वो 4 बार नामित किए गए, इसके बाद भी नोबेल पुरस्कार नहीं पा सके, जबकि उनकी दी गई थ्यौरी...

Updated on: 04 Jun 2022, 09:47 AM

highlights

  • महान भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस को गूगल ने किया नमन
  • गूगल ने डूडल बनाकर दी सत्येंद्र नाथ बोस को श्रद्धांजलि
  • अल्बर्ट आइंस्टीन जैसा वैज्ञानिक रहा सत्येंद्र नाथ बोस का मुरीद

नई दिल्ली:

गूगल ने महान भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस को अपने डूडल के माध्यम से श्रद्धांजलि दी है. आज की पीढ़ी को उनके बारे में शायद ही बहुत कुछ पता हो. लेकिन हम बता देते हैं कि पिछले काफी समय से जिस हिग्स-बोसोन थ्यौरी के आधार पर सर्न (The Higgs boson : CERN) दुनिया की सबसे बड़ी लैब में ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में खोज कर रहा है, उसका पता भी चला तो साल 2012 में. सर्न के लार्ज हेड्रोन कोलाइजर में आखिरकार हिग्स बोसोन की थ्यौरी को हल किया है.  हिग्स-बोसोन का नाम ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्स के नाम पर है, जिन्होंने खुद क्वांटम थ्यौरी के हिग्स-बोसोन के बोसोन स्टैटिक्स का नाम सत्येंद्र नाथ बोस के नाम पर रखा था. इस बात का अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं कि सत्येंद्र नाथ बोस को 4 बार (1956, 1959, 1962 और 1962) नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया था. वैसे, नोबेल पुरस्कारों के पीछे की वैश्विक राजनीति के बारे में सभी जानते हैं, लेकिन सत्येंद्र नाथ बोस किस तरह से पिछड़ गए, उसे इस बात से जानिए कि वो 4 बार नामित किए गए, इसके बाद भी नोबेल पुरस्कार नहीं पा सके, जबकि उनकी दी गई थ्यौरी पर काम करने वाले 7 वैज्ञानिकों को अब तक नोबेल पुरस्कार मिल चुका है. 

अल्बर्ट आइंस्टीन जैसा वैज्ञानिक था सत्येंद्र नाथ बोस का मुरीद

सत्येंद्र नाथ बोस किस संघर्ष से अपनी वैज्ञानिक खोजों को अंजाम देते रहे, उसका अंदाजा इस बात से भी लग सकता है कि उनकी खोजों को कभी भारत के जर्नल में जगह मिली ही नहीं. उनके पास डिग्री नहीं थी, तो नौकरी भी नहीं थी. ऐसे में नौकरी दिलाने का काम किया महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने. जी हां, ढाका विश्वविद्यालय को सत्येंद्र नाथ बोस की नौकरी के लिए अल्बर्ट आइंस्टीन ने सुझाव दिया, तब उन्हें ढाका विश्वविद्यालय में भौतिकी विभाग का अध्यक्ष बना दिया गया. उनके काम का लोहा अल्बर्ट आइंस्टीन ने खूब माना. लेकिन इससे पहले, विदेशों में रहकर क्वांटम फिजिक्स में खूब पढ़ाई और रिसर्च करने वाले सत्येंद्र नाथ बोस को भले ही हिंदुस्तान में शुरूआत में कोई पहचान नहीं मिली थी, लेकिन वो काम करते रहे. साल 1924 में जब उन्होंने प्लैंक के क्वांटम रेडिएशन लॉ पर बिना किसी पुराने रेफरेंस के आईडेंटिकल पार्टिकल्स की खोज की, तो उसे किसी रिसर्च पेपर में जगह नहीं मिली. इसके बाद उन्होंने इपने इस पेपर को सीधे अल्बर्ट आइंस्टीन के पास जर्मनी भेज दिया. आइंस्टीन खुद उस पेपर से चौंक गए. उन्होंने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उनके पेपर को जर्मन भाषा में अनुवाद किया और बोस के नाम के साथ दुनिया की प्रतिष्ठित जर्नल Zeitschrift für Physik में भेज दिया. यहां वो रिसर्च पेपर प्रकाशित हुआ, तो दुनिया ने उनकी कद्र करनी शुरू की. इसका परिणाम ये हुआ कि उन्हें दो साल के लिए यूरोपियन एक्स-रे और क्रिस्टलोग्राफी लैबोरेटरीज में काम करने का मौका मिला, जहां उन्होंने लुईस डे ब्रॉगली, मैरी क्यूरी और खुद अल्बर्ट आइंस्टीम के साथ काम किया.

इन खोजों के लिए किया जाता है याद

सत्येंद्र नाथ बोस को Bose–Einstein condensate, Bose–Einstein statistics, Bose–Einstein distribution, Bose–Einstein correlations, Bose gas, Boson, Ideal Bose Equation of State और Photon gas की खोज के लिए जाना जाता है. उन्हें आजादी के बाद भारत सरकार ने 1952-1958 के लिए राज्यसभा का सांसद बनाया. उन्हें साल 1954 में पद्म विभूषण सम्मान से नवाजा गया. उन्हें आजादी से पहले विश्व प्रसिद्ध रॉयल सोसायटी का फेलो भी चुना गया. वो पूर्णिमा सिन्हा, पार्था घोष और सिवब्रत भट्टचटर्जी जैसे स्कॉलर्स के गुरु रहे. 

सत्येंद्र नाथ बोस का जीवन परिचय

सत्येंद्र नाथ बोस का जन्म 1 जनवरी 1894 में कलकत्ता में हुआ था. वो सात भाई-बहनों में सबसे बड़े थे. पिता रेलवे में काम करते थे. उन्होंने साल 1913 में प्रतिष्ठित प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई की. साल 1915 में उन्होंने एमएससी की पढ़ाई की और साल 1916 कलकत्ता विश्वविद्यालय के साइंस कॉलेज में रिसर्च स्कॉलर के तौर पर जुड़ गए. उनकी शादी 20 साल की उम्र में हुई और 9 बच्चे हुए, जिसमें 2 की असमय मौत हो गई. सत्येंद्र नाथ बोस आजादी के बाद विश्व भारती विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर भी रहे, लेकिन बाद में अपनी रिसर्च को अंजाम देने के लिए कलकत्ता विश्वविद्यालय वापस आ गए. उनका हिंदी, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, बंगाली और संस्कृत भाषाओं पर समान अधिकार था. वो वायलिन की तरह का भारतीय वाद्ययंत्र एसराज भी बजा लेते थे. उन्होंने रात में चलते वाले स्कूलों को स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई. एक और बात, उन्हें जीवन में समय-समय पर महान भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस का भी सानिध्य मिलता रहा. सत्येंद्र नाथ बोस की जयंकी 1 जनवरी को होती है, जबकि उनकी मृत्यु 4 फरवरी को हुई थी. आज न तो उनकी जयंती है और न ही उनका प्राणायम दिवस, फिर भी उन्हें गूगल याद कर रहा है. ऐसी वटवृक्ष सरीखी उनकी शख्सियत के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है.