logo-image

UNSC के P-5 हमाम में सब नंगे हैं, रूस समेत अमेरिका से लेकर चीन... सभी

1945 से लेकर आज तक यूएनएससी के स्थायी पांच सदस्यों ने हर उस प्रयास को भोथरा करने का काम किया है, जिसने इस प्राचीन वैश्विक संस्था के रूप-स्वरूप में बदलाव लाने की कोशिश की.

Updated on: 02 Mar 2022, 01:39 PM

highlights

  • यूएनएससी के स्थायी सदस्य रूस को वीटो करने पर दिखा रहे आईना
  • किसी भी पी-5 देश ने निहित स्वार्थवश वीटो करने का मौका नहीं छोड़ा
  • चीन तक ने पाकिस्तान प्रेम में सबसे पहले बांग्लादेश पर किया वीटो

नई दिल्ली:

रूस (Russia) के यूक्रेन (Ukraine) पर हमले और उसके बाद शुरू हुई महाशक्तियों के बीच कूटनीतिक जंग में आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है. स्थिति यहां तक आ पहुंची है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन (Joe Biden) ने बुधवार को अपने स्टेट ऑफ द यूनियन एड्रैस में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) को 'तानाशाह' करार दे दिया है. इसके उलट पुतिन ने अमेरिका और नाटो देशों को रूस की क्षेत्रीय अखंडता और सामरिक हितों को लेकर उकसावे की कार्रवाई से बाज आने की चेतावनी दी है. इन सबके बीच अमेरिका और यूरोपीय संघ के देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में निंदा प्रस्ताव के खिलाफ रूस के वीटो पर उसे यूएनएससी की स्थायी सदस्यता से बाहर करने की घुड़की दे रहे हैं. फिलवक्त अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस समेत तमाम यूएनएससी के स्थायी सदस्य रूस को मानवता और अंतरराष्ट्रीय नियम-कायदों का पाठ पढ़ा रहे हैं. यह अलग बात है कि ये सभी संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के चार्टर समेत जिन अंतरराष्ट्रीय कानूनों की दुहाई दे रहे हैं, इन सभी की इन्होंने अपने निहित स्वार्थों के कारण एक नहीं दर्जनों बार खुलेआम पूरी बेशर्मी के साथ रौंदा है. इस लिहाज से देखें तो कह सकते हैं कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के स्थायी सदस्यों पर हमाम में सभी नंगे वाली मिसाल पूरी तरह से खरी उतरती है.  

1945 से पी-5 सदस्यों ने नहीं छोड़ा वीटो का मौका
रूस-यूक्रेन युद्ध पर साफ है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी और अस्थायी सदस्य अपनी-अपनी 'फुलझड़ियां' ही छोड़ रहे हैं. इस सच्चाई की सिरे से अनदेखी करते हुए कि 1945 से लेकर आज तक यूएनएससी के स्थायी पांच सदस्यों ने हर उस प्रयास को भोथरा करने का काम किया है, जिसने इस प्राचीन वैश्विक संस्था के रूप-स्वरूप में बदलाव लाने की कोशिश की. पी-5 सदस्यों ने तो अपने सामरिक और अन्य निहित स्वार्थों के कारण तमाम बार वीटो प़ॉवर का इस्तेमाल किया. ऐसे प्रस्तावों के खिलाफ भी जो समग्र मानवता और उनके लक्ष्यों की प्राप्ति की राह में रोड़ा बन रहे देश से जुड़े हुए थे. इसकी पुष्टि संयुक्त राष्ट्र की लाइब्रेरी डैग हैमर्सजोल्ड के आंकड़े बताते हैं. फिलवक्त यूएनएससी के स्थायी सदस्य रूस के यूक्रेन के हमले और निंदा प्रस्ताव के खिलाफ वीटो पॉवर के इस्तेमाल पर उसे यूएनएससी से बाहर निकालने की बात कर रहे हैं. ऐसे में नजर डालते हैं कि इन स्थायी सदस्यों ने अब तक कितनी बार वीटो पॉवर का इस्तेमाल कर अपने हित साधे हैं.

यह भी पढ़ेंः Russia Ukraine War: UN में फिर अग्नि परीक्षा... किसका पक्ष लेगा भारत

कल-आज के रूस ने 118 वीटो पॉवर का किया इस्तेमाल
गुजरे जमाने के सोवियत संघ ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपनी वीटो पॉवर का इस्तेमाल 90 बार किया था. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद अस्तित्व में आए रूसी संघ ने भी 28 बार अपनी वीटो पॉवर का इस्तेमाल किया. इनमें सबसे ताजा मामला यूक्रेन के खिलाफ बीते सप्ताह लाया गया निंदा प्रस्ताव था. ऐसा नहीं है कि यूएनएससी में अकेले सोवियत संघ या विद्यमान रूसी संघ ने ही सबसे ज्यादा वीटो पॉवर का इस्तेमाल किया है. शेष चार स्थायी सदस्य देश भी कतई पीछे नहीं हैं. 

अमेरिका ने किया 84 बार वीटो का प्रयोग
सोवियत संघ के तत्कालीन राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने तत्कालीन अमेरिका राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश से नाटो को लेकर अपनी गंभीर चिंता जाहिर की थी. यह अलग बात है कि अमेरिकी नेतृत्व ने तो तब और न कुछ दिन पहले तक गंभीरता से लिया. नतीजतन रूसी संघ को मजबूत बनाने के बाद व्लादिमीर पुतिन ने नाटो की महत्वाकांक्षाओं को अपनी सुरक्षा के लिए खतरे को आधार बना यूक्रेन पर हमला बोल दिया. इसके बाद जो बाइडन पुतिन को कोसते नहीं अघा रहे हैं. हालांकि खुद अमेरिका ने 82 दफे अपने हित साधने यूएनएससी में वीटो पॉवर का इस्तेमाल किया. इसमें इजरायल-फिलीस्तान संघर्ष और उस पर अरब देशों की भूमिका को लेकर छिड़ी रार रोकने का प्रस्ताव भी शामिल है. 

यह भी पढ़ेंः Russia-Ukraine War: खार्किव पर रूसी सेना का मिसाइल से हमला, 21 की मौत

ब्रिटेन ने फॉकलैंड मसले समेत किया 29 बार वीटो
अमेरिका की ही तर्ज पर ब्रिटेन के वर्तमान प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के कीव के ग्रोज्नीकरण को बार्बरिक करार दे रहे हैं. इसके साथ ही पुतिन के खिलाफ यूरोपीय संघ और नाटो के सदस्य देशों से बातचीत करने के लिए पौलेंड और एस्टोनिया समेत अमेरिका से गहन चर्चा कर रहे हैं. वह भूल रहे हैं कि उनके पूर्ववर्तियों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 29 बार वीटो पॉवर का इस्तेमाल किया. इसमें 1982 में फॉकलैंड में ब्रितानी हमले पर सीज फायर का प्रस्ताव भी शामिल था. यही नहीं, ब्रिटेन के हुक्मरान रोहडेशिया और दक्षिण अफ्रीका की नस्लवादी सरकारों को बचाने के लिए भी वीटो का इस्तेमाल करने से नहीं चूके. 

फ्रांस ने भी अपने हित में किया इस्तेमाल
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने भी हालिया संकट के दौरान पुतिन को नसीहत दी. पुतिन की परमाणु हथियारों की धमकी पर यह भी कहने से नहीं चूके कि नाटो देशों के पास भी नाभिकीय हथियार हैं. यह अलग बात है कि कभी पुतिन से नजदीकी संबध रखने वाले मैक्रों फ्रांस का यूएनएससी में अपना ही इतिहास भूल गए. फ्रांस ने अब तक 16 बार वीटो पॉवर का इस्तेमाल किया है. इसमें कॉमरोस की क्षेत्रीय अखंडता और एकता को तवज्जो देता प्रस्ताव भी शामिल था. 

यह भी पढ़ेंः  10 करोड़ मौतें, क्लाइमेट चेंज...परमाणु युद्ध हुआ तो क्या होगा अंजाम?  

चीन ने पाकिस्तान प्रेम में बांग्लादेश के खिलाफ किया पहला वीटो
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो पॉवर इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति के लिहाज से देखें तो चीन इस कतार में काफी बाद में खड़ा हुआ. बीजिंग प्रशासन ने 1972 में नए देश बांग्लादेश को सदस्यता का विरोध करने के लिए वीटो का इस्तेमाल किया. इसके बाद ग्वाटेमाला, मेसीडोनिया, म्यांमार और सीरिया के मसले समेत चीन ने अब तक 16 बार अपनी वीटो पॉवर का इस्तेमाल किया है. कई मसले तो ऐसे भी रहे हैं जब ब्रिटेन, अमेरिका और फ्रांस समेत चीन ने एक साथ अपनी वीटो पॉवर का इस्तेमाल किया. इस कड़ी में सीरिया पर लाया गया प्रस्ताव ताजा उदाहरण है. यानी रूस को कोसने वाली पी-5 के शेष चार स्थायी सदस्य भी इस हमाम में पूरी तरह से नंगे हैं. फिर भी पूरी बेशर्मी के साथ फिलवक्त रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सबक याद दिला रहे हैं.