पाकिस्तान में फौज की वर्दी में 'डकैत', जनता के पैसे से चल रहीं आतंक की फैक्ट्रियां
पाक सेना का पाकिस्तान में दबदबा कायम रहा है जिसका फायदा सेना अपने आर्थिक हितों के लिए करती है
highlights
भुट्टो परिवार 40,000 एकड़ तथा गुलाम मुस्तफा जतोई 30,000 एकड़ जमीन के मालिक हैं
पाक सेना ने सरकार से 6000 करोड़ रुपये की छूट हासिल की थी
70 साल की आजादी के बाद पाकिस्तान (Pakistan) में पूरे 48 साल तक फौजी शासन रहा है
नई दिल्ली:
पाकिस्तान (Pakistan) की इकॉनमी पर क़ब्ज़ा जमाने के लिए पाकिस्तान सेना (Pakistani Army) जितनी ज़िम्मेदार है पाक अवाम भी उतनी ही ज़िम्मेदार है पाकिस्तान (Pakistan) लेखिका तहमीना ईरानी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक माई फ्यूडल लार्ड में किया है. इसमें उन्होंने लिखा है कि वहां पर अभी भी जमींदारी तथा जागीरदारी प्रथा चलती है. पाक सेना 50 तरह के उपक्रम चलाती है , जिसकी कमाई जनता की बजाय फ़ौज पर खर्च होता है , जबकि भारत में ऐसे उपक्रमों को नवरत्न कहा जाता है , जिक्स पैसा जनता की भलाई के लिए इस्तेमाल होता है
- 70 साल की आजादी के बाद पाकिस्तान (Pakistan) में पूरे 48 साल तक फौजी शासन रहा है और अगर चुनी हुई सरकारें रहीं भी तो वे फौजी जनरलों के हाथों की कठपुतली की तरह ही काम करती रही हैं . पाक सेना का पाकिस्तान (Pakistan) में दबदबा कायम रहा है जिसका फायदा सेना अपने आर्थिक हितों के लिए करती है
- पाक सेना की आर्थिक तथा व्यवयायिक गतिविधियों का पूरा विवरण वहां की एक प्रसिद्ध लेखिका डॉ. आयशा सिद्धिकी आगा ने अपनी किताब इनसाइड पाक मिलिट्री इकानॉमी में लिखा है कि पाक सेना ने स्वयं शासन करते हुए तथा प्रजातांत्रिक सरकारों ने भी सत्ता में बने रहने के लिए सेना की मदद के लिए रिश्वत के तौर पर पाकिस्तान (Pakistan) की अर्थव्यवस्था में पब्लिक तथा प्राइवेट सेकटर व्यापार का बड़ा हिस्सा सेना को सौंप दिया, जिसका टर्नओवर 2012 तक 20 मिलियन ब्रिटिश पाऊंड ऑंका गया था. इसकी पुष्टि वहां की संसद में सेनिटर फ़रहतुल्लाह बाबर के प्रश्न के उत्तर में वहां के रक्षामंत्री ने की थी और बताया था कि पाकिस्तान (Pakistan) सेना (Pakistani Army) 50 अलग अलग प्रकार के औद्योगिक उपक्रम चला रही है.
- पाक सेना के ज़्यादातर औद्योगिक उपक्रम में चीनी मिलों, रसायनिक खाद, तेल, घरेलू उड्डयन, बैंकिग और रिएल एस्टेट प्रमुख हैं और इस सबका टर्नओवर 2012 तक 20 मिलियन पाऊंड था, जो पाकिस्तान (Pakistan) जीडीपी का एक बड़ा हिस्सा है.
- इन औद्योगिक और व्यवसायिक गतिविधियों को चलाने के लिए पाक सेना ने इसे सैनिकों की भलाई का दिखावा करने के लिए कुछ संस्थाओं का गठन 1960 से ही शुरू कर दिया था. इनमें प्रमुख हैं फौज फाउंडेशन, आर्मी वेलफेयर ट्रस्ट, शाहीन फाउंडेशन, वहरिया फाउंडेशन, नेशनल लाजिस्टिक सेल और फ्रंटीयर वर्कस जैसे फॉउंडेशन
- इन संस्थाओं को स्थापित करते वक़्त पाक सरकार का धन लगाया गया. नैशनल लाजिस्टिक सेल का मुख्य व्यवसाय भारी सामान की ढुलाई है. इसके लिए इनके पास 2000 बड़े ट्रक हैं तथा इसमें 2442 सेवारत तथा 4136 सेवा निवृत्त पाक सेना के कर्मी काम करते हैं.
- इसी तरह फ्रन्टियर वर्कर्स पाकिस्तान (Pakistan) के सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण करती है. सेना की ये संस्थाएं पाक में रेस्टोरेंट, वैकरीज . मीट और रोजमर्रा की वस्तुओं के साथ बड़े क्षेत्रों जैसे बैंकिंग में शाहीन और अशकारी बैंकों के देशव्यापी नेटवर्क और दवा बनाने, रासायनिक खादों और तेल तक के बड़े उपक्रम चला रही है
- पाक सेना अपने रूतबे का इस्तेमाल करके इन व्यापारिक गतिविधियों पर टैक्सों पर भारी छूट सरकार से लेती है. 2015 में पाक सेना ने सरकार से 6000 करोड़ रूपये की छूट हासिल की थी .
- पाकिस्तान (Pakistan) में सिर्फ एक तेल का कुंआ पोर्ट कासिम के नाम से कराची के पास समुद्र में है यह भी पाक सेना के पास ही है जबकि भारत में यह काम ओएनजीसी नाम की पब्लिक सैक्टर कम्पनी करती है. इसी तरह विद्युत उत्पादन तक में पाक का कबीर वाला पावर प्लांट पाक सेना ही चला रही है.
- पाक सेना देश का ज्यादातर धन खुद पर ही खर्च कर रही है. इसलिए पाकिस्तान (Pakistan) में गरीबी, अशिक्षा तथा आधारभूत विकास ढांचे की भारी कमी है. अभी तक वहां के देहातों में सड़क, पीने के साफ पानी तथा स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी है क्योंकि जो धन इन कार्यों पर खर्च होना चाहिए वह वहां की बाहुबली सेना के पास जा रहा है.
- पाकिस्तान (Pakistan) की ज्यादातर खेती योग्य जमीन पर केवल 246 जागीरदार परिवारों का मालिकाना हक है. अपने रूतबे को बनाये रखने के लिए ये जागीरदार सेना को उसकी पकड़ के कारण अपने साथ रखते हैं. इसलिए ये लोग बड़ चढ़ कर सेना की तरीफ तथा उनके आर्थिक तथा व्यापारिक क्रिया कलापों को और बढ़ावा देकर सेना को खुश रखते हैं.
- ये पाकिस्तान (Pakistan) का दुर्भाग्य है कि ज्यादातर वहां के राजनीतिज्ञ तथा सेना के अधिकारी इन्हीं परिवारों के हैं. इस प्रकार अभी तक पाकिस्तान (Pakistan) में सामंती व्यवस्था पूरी तरह से लागू है जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ तथा दुनिया का सभ्य समाज इसको बुरा मानता है.
- पाकिस्तान (Pakistan) के बड़े जागीरदार तथा जमींदार अब भी बड़े-बडे़ भूभागों के मालिक हैं. उन्होंने देश की राजनीति में घुसकर उसे अपने हितों के आधार पर चलाना शुरू कर दिया. भूमि सुधार कानून वहां 1959 तथा 1972 में पारित किया गया, पर व्यावहारिक तौर पर भूमि सुधार तथा बंधुआ मुक्ति कानून लागू नहीं हो सके हैं.
- भुट्टो परिवार 40,000 एकड़ तथा गुलाम मुस्तफा जतोई 30,000 एकड़ जमीन के मालिक हैं. ऐसे ही हिना रब्बानी खार, शाह महमूद कुरैशी, वालाक शेर मजारी, महम्मद मियां सुमरो, नवाब बुग्ती, पूर्व प्रधानमंत्री जफरउल्ला खान जमाली के अलावा 80 प्रतिशत राजनेता हजारों एकड़ जमीन के मालिक हैं. इन सामंतों ने अपनी जमीनों पर बेगार करवाने के लिए हजारों किसानों तथा मजदूरों को अपनी जेलों में बंद कर रखा है. देहातों में 49 फीसदी लोग अशिक्षित हैं.
- इन सामंतों की पहुंच नौकरशाही तथा पुलिस में भी है, इसलिए इनकी ज्यादतियों की शिकायत पुलिस भी दर्ज नहीं करती. पाकिस्तान (Pakistan) की सामंतशाही ने न केवल उसे विफल देश की श्रेणी में लाकर खड़ा किया है, बल्कि यह सामंतशाही आतंकवाद को बढ़ावा देने के कारण पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर समस्या बन गई है. पाकिस्तान (Pakistan) में न तो शिक्षा का प्रसार हुआ और न ही उसे आर्थिक उदारीकरण का कोई लाभ मिला. विदेशी निवेशकों ने भी वहां निवेश नहीं किया.
- कृषि के घाटे का सौदा साबित होने कारण बड़े-बड़े भूभागों के मालिकों ने कृषि भूमि को सऊदी अरब तथा खाड़ी देशों के लोगों को बेचना शुरू कर दिया है. पाकिस्तान (Pakistan) की काफी जमीन पर विदेशियों का कब्जा है. पाक की इस दुर्दशा का फायदा उठाकर ही चीन ने आर्थिक गलियारे के रूप में पाक को गुलाम बनाने की रूपरेखा तैयार कर ली है. सामंतों तथा जागीरदारों द्वारा सत्ता, नौकरशाही एवं सेना पर कब्जे से नौजवान पूरी व्यवस्था से निराश हो गए हैं और आतंकी बनकर अपनी झुंझलाहट निकालने का प्रयास करते हैं.
- पाकिस्तान (Pakistan) में मानवाधिकारों का चूंकि सरेआम उल्लंघन हो रहा है, ऐसे में संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को उस पर प्रतिबंध लगाकर वहां भूमि सुधार तथा बंधुआ मजदूर उन्मूलन कानून लागू करने के लिए बाध्य करना चाहिए. इसके अलावा ईशनिंदा कानून को भी हटाना चाहिए, जिसके जरिये अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जाता है.
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