बीते 6 दशकों में 40 फीसदी चंद्र अभियान रहे हैं असफल, 'चंद्रयान 2' से उम्मीदें हैं बाकी
नासा के मुताबिक, इस दौरान 109 चंद्र मिशन शुरू किए गए, जिसमें 61 सफल हुए और 48 असफल रहे. अब तक चांद तक अमेरिका, रूस और चीन ही पहुंचे हैं.
highlights
- 109 चंद्र मिशन शुरू किए गए, जिसमें 61 सफल हुए और 48 असफल रहे.
- चांद की सतह से 2.1 किमी पर 'विक्रम' तय रास्ते से भटका.
- लैंडर बीच-बीच में चांद के चक्कर लगा रहे ऑर्बिटर से कनेक्ट हो रहा.
नई दिल्ली:
ऐन मौके 'चंद्रयान-2' के लैंडर 'विक्रम' का ऑर्बिटर के जरिये इसरो के कंट्रोल रूम से टूटे संपर्क से पूरा देश सकते में जरूर है, लेकिन इसरो के इस महत्वाकांक्षी सफर के कुल जमा निष्कर्ष से खासा उत्साहित भी है. अमेरिकी अंतरिक्ष संस्था नासा, भारत की इसरो समेत डीआरडीओ इस लूनर मिशन से खासा उत्साहित हैं. विदेशी मीडिया में भी 'चंद्रयान-2' को लेकर तारीफ के कसीदे पढ़े गए हैं. हालांकि लैंडर 'विक्रम' के साथ पेश आए हादसे से गम जरूर है, लेकिन यह गम कल की खुशियों का संकेत भी देता है.
'चंद्रयान 3' की सफलता हुई पुख्ता
संभवतः इन्हीं कारणों से डीआरडीओ के भूतपूर्व वैज्ञानिक रवि गुप्ता भी इसरो की सराहना और समर्थन करने में पीछे नहीं हैं. वह कहने से नहीं हिचकते हैं, 'यह बेहद जटिल अभियान था. ऐसी बातें असामान्य नहीं है. इस तरह के अभियानों से प्राप्त डाटा को एकत्र करना और फिर किसी निष्कर्ष पर पहुंचने में काफी समय लगता है. ऐसे में ऐन मौके लैंडर 'विक्रम' का संपर्क क्यों और कैसे टूटा इसके निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए थोड़ा वक्त लगेगा. हालांकि यह कम बड़ी बात नहीं कि 'चंद्रयान-2' के साथ गया ऑर्बिटर अपनी जगह पर मौजूद है और चांद की कक्षा में भ्रमण करते हुए सतह का अध्ययन करता रहेगा.' वह कहने से नहीं चूकते हैं कि 'चंद्रयान-2' के उद्देश्य और लक्ष्यों की भरपाई 'चंद्रयान-3' मिशन करेगा. इसमें किसी को कतई कोई संदेह नहीं है.
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अभी भी उम्मीद है कायम
रवि गुप्ता की बात से इसरो के 'चंद्रयान-2' से जुड़े वैज्ञानिक भी इत्तेफाक रखते हैं. लैंडर 'विक्रम' फिर से काम करेगा, इसी उम्मीद के साथ इसरो वैज्ञानिक अब भी काम कर रहे हैं. वैज्ञानिक लैंडर 'विक्रम' के फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर के यह पता करने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर 2.1 किमी की ऊंचाई पर क्यों वह अपने रास्ते से भटका. चांद की सतह से 2.1 किमी की ऊंचाई पर लैंडर 'विक्रम' अपने तय रास्ते से भटक गया था. इसके बाद वह 60 मीटर प्रति सेकंड की गति से 335 मीटर तक आया. ठीक इसी जगह उसका पृथ्वी पर स्थित इसरो सेंटर से संपर्क टूट गया. चूंकि, लैंडर बीच-बीच में चांद के चक्कर लगा रहे ऑर्बिटर से कनेक्ट हो रहा है, इसलिए इसरो वैज्ञानिकों को अब भी उम्मीद है कि लैंडर से संपर्क स्थापित हो जाएगा.
109 में 61 चंद्र अभियान हुए सफल
हालांकि अगर अब तक के लूनर मिशन के इतिहास पर निगाह डाली जाए तो साफ पता चलता है कि महज 60 फीसदी चंद्र अभियानों में ही सफलता मिली है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के आंकड़ों के मुताबिक पिछले 6 दशक में मून मिशन में सफलता 60 प्रतिशत मौकों पर मिली है. नासा के मुताबिक, इस दौरान 109 चंद्र मिशन शुरू किए गए, जिसमें 61 सफल हुए और 48 असफल रहे. अब तक चांद तक अमेरिका, रूस और चीन ही पहुंचे हैं. भारत अकेला ऐसा देश है जिसके चंद्र अभियान मंजिल से चंद कदम ही दूर रहे.
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पहला सफल अभियान 'लूना 1'
नासा के मुताबिक वर्ष 1958 से 2019 तक भारत के साथ ही अमेरिका, सोवियत संघ (रूस), जापान, यूरोपीय संघ, चीन और इजरायल ने विभिन्न चंद्र अभियानों को शुरू किया. पहले चंद्र अभियान की योजना अमेरिका ने 17 अगस्त, 1958 में बनाई लेकिन पॉयनियर का लांट असफल रहा. पहला सफल चंद्र अभियान चार जनवरी 1959 में सोवियत संघ का 'लूना 1' था. यह सफलता छठे चंद्र मिशन में मिली थी. एक साल से थोड़े अधिक समय के भीतर अगस्त 1958 से नवंबर 1959 के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ ने 14 अभियान शुरू किए. इनमें से सिर्फ तीन, लूना 1, लूना 2 और लूना 3 - सफल हुए. ये सारे चंद्र अभियान सोवियत संघ के थे. इजरायल ने भी फरवरी 2018 में चंद्र मिशन शुरू किया था, लेकिन यह अप्रैल में नष्ट हो गया था.
चांद पर इंसान के पहले कदम
इसके बाद जुलाई 1964 में अमेरिका ने 'रेंजर 7' मिशन शुरू किया, जिसने पहली बार चंद्रमा की नजदीक से फोटो ली. रूस द्वारा जनवरी 1966 में शुरू किए गए 'लूना 9' मिशन ने पहली बार चंद्रमा की सतह को छुआ और इसके साथ ही पहली बार चंद्रमा की सतह से तस्वीर मिलीं. पांच महीने बाद मई 1966 में अमेरिका ने सफलतापूर्वक ऐसे ही एक मिशन 'सर्वेयर-1' को अंजाम दिया. अमेरिका का 'अपोलो 11' अभियान एक लैंडमार्क मिशन था, जिसके जरिए इंसान के पहले कदम चांद पर पड़े. तीन सदस्यों वाले इस अभियान दल की अगुवाई नील आर्मस्ट्रांग ने की. वर्ष 1958 से 1979 तक केवल अमेरिका और यूएसएसआर ने ही चंद्र मिशन शुरू किए. इन 21 वर्षों में दोनों देशों ने 90 अभियान शुरू किए. इसके बाद जपान, यूरोपीय संघ, चीन, भारत और इजरायल ने भी इस क्षेत्र में कदम रखा.
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भारत को भी मिली है सफलता
जापान, यूरोपियन यूनियन, चीन, भारत और इजरायल ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में देर से कदम रखा. जापान ने 1990 में अपना पहला मून मिशन हिटेन लॉन्च किया. सितंबर 2007 में जापान ने एक और ऑर्बिटर मिशन सेलेन लॉन्च किया था. साल 2000 से 2009 के बीच अब तक 6 लुनार मिशन लांच किए जा चुके हैं, यूरोप (स्मार्ट-1), जापान (सेलेन), चीन (शांग ई 1), भारत (चंद्रयान) और अमेरिका (लुनार)। 2009 से 2019 के बीच दस मिशन लांच किए गए, जिसमें से 5 भारत ने, 3 अमेरिका और एक-एक चीन और इजरायल ने. 1990 से अब तक अमेरिका, जापान, भारत, यूरोपियन यूनियन, चीन और इजरायल 19 लुनार मिशन लांच कर चुके हैं.
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