सत्ता पर दुसरी बार काबिज होने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वन नेशन वन इलेक्शन के एजेंडे पर जोर-शोर से जुट गए हैं. इसके मद्देनजर उन्होंने बुधवार को सभी राजनीतिक दलों के अध्यक्षों के साथ मीटिंग बुलाई थी. यह अलग बात है कि कांग्रेस ने इसका विरोध करने का फैसला किया तो टीएमसी सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत प्रमुख विपक्षी दल बैठक में शामिल नहीं हुए. वास्तव में प्रधानमंत्री मोदी चाहते हैं कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हो जिससे धनबल और जनबल की बचत हो. बचे हुए पैसे का इस्तेमाल देश के जनता के हित में किया जाए.
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पहले भी हुए हैं लोकसभा संग विधानसभा चुनाव
1951-52, 1957, 1962 और 1967 में राज्य विधानसभा चुनावों का आयोजन लोकसभा चुनाव के साथ ही हुआ था. राजनीतिक खींचतान और भ्रष्टाचारी तरीकों से निर्वाचित प्रतिनिधियों की खरीद-फरोख्त का दौर प्रारम्भ होने पर कई राज्यों में चलती हुई सरकारें अल्पमत में आने की प्रथा प्रारम्भ हो गई. इस कारण एक साथ चुनाव होने का परम्परा खत्म हो गई. लोकतांत्रिक तकाजों के तहत न सिर्फ राज्यों बल्कि केंद्र में भी मध्यावधि चुनाव हुए, जिनके कारण ये चुनाव अलग-अलग होने लगे. 1971 में पहली बार लोकसभा का मध्यावधि चुनाव हुआ. साल 1999 में विधि आयोग ने पांच साल में एक साथ चुनाव कराने की सलाह दी थी.
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संविधान में संशोधन की आवश्यकता
अगर देश में वन नेशन-वन इलेक्शन के तर्ज पर चुनाव कराना है तो संविधान में संशोधन की जरूरत होगी. इसके लिए संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) से सहमति की आवश्यकता होगी. इस संशोधन के बगैर राज्य सरकारों को भंग करना और एक साथ चुनाव कराना संभव नहीं हो पाएगा. गौरतलब है कि अगस्त 2018 में विधि आयोग ने एक साथ चुनाव कराये जाने को लेकर एक रिपोर्ट तैयार की थी. जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता में बनी इस रिपोर्ट में बताया गया था कि संविधान में संशोधन कर के केंद्र और राज्य में एक साथ चुनाव कराये जा सकते हैं. इसके लिये देश के आधे राज्यों की विधानसभाओं से भी इस संशोधन को पास कराना होगा. विधि आयोग ने इस मसले पर 3 सुझाव दिये थे.
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किसने समर्थन और किसने विरोध किया
4 पार्टियां एआईएडीएमके, शिरोमणि अकाली दल, एसपी और टीआरएस ने इसका समर्थन किया. 9 पार्टी टीएमसी, आप, डीएमके, टीडीपी, सीपीआई, सीपीएम, जेडीएस, गोवा फॉरवर्ड पार्टी और फारवर्ड ब्लॉक ने इसका विरोध किया था. विरोध करने वालों का कहना था कि संविधान की मूल भावना के खिलाफ है एक देश एक चुनाव. संविधान की ओर से लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने को लेकर कोई निश्चित प्रावधान का जिक्र नहीं है. इसी आधार पर यह तर्क दिया जा रहा है कि एक साथ चुनाव संविधान की मूल भावना के खिलाफ है. एक तर्क यह भी है कि केंद्र सरकार को राज्य सरकारों को आर्टिकल 356 के तहत भंग करने का अधिकार है और इस अधिकार के होते हुए एक साथ चुनाव नहीं कराए जा सकते.
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दुनिया के अन्य देशों में एक साथ चुनाव
इसी साल इंडोनेशिया में राष्ट्रपति चुनावों के साथ ही लोकसभा चुनाव का भी आयोजन किया गया. दक्षिण अफ्रीका में हर पांच साल में एक साथ नेशनल असेंबली, प्रोवेंशियल लेजिस्लेचर और म्यूनिसिपल काउंसिल का चुनाव कराया जाता है. स्वीडन में कंट्री काउंसिल और म्यूनिसिपल काउंसिल का इलेक्शन एक साथ होता है और जो राजनीतिक दल जिस अनुपात में वोट प्राप्त करते हैं, उसी अनुपात में उन्हें सीटें दी जाती हैं. उस तरह बोलिविया, फिलिपींस, ब्राजील, कोस्टारिका और ग्वाटेमाला समेत कई देशों में जहां प्रेसिडेंशियल शासन प्रणाली हैं वहां राज्य विधान सभा और केंद्र के चुनाव एक साथ कराए जाते हैं.
HIGHLIGHTS
- 1971 में पहली बार लोकसभा का मध्यावधि चुनाव हुआ.
- 1999 में विधि आयोग ने पांच साल में एक साथ चुनाव की सलाह दी.
- वन नेशन-वन इलेक्शन के लिए करना होगा संविधान में संशोधन.