Pakistan: किसी सरकार ने पूरे नहीं किए 5 साल, सियासी संकट के टॉप 7 कारण
भारत विभाजन के साथ मजहब के नाम पर अस्तित्व में आए मुल्क पाकिस्तान सियासी संकट (Pakistan Political Crisis) के भंवर से उबर नहीं पा रहा है. आलम ये है कि पाकिस्तान में आज तक कोई भी सरकार अपने कार्यकाल के 5 साल पूरे नहीं कर पाई.
highlights
- पाकिस्तान दुनिया के 10 सबसे ज्यादा कर्ज लेने वाले देशों में शामिल है
- पाकिस्तान में कभी कोई भी सरकार पांच साल नहीं पूरा कर पाती है
- पाकिस्तान बनने के बाद वहां पहले दस साल में सात प्रधानमंत्री बन गए
New Delhi:
भारत विभाजन के साथ मजहब के नाम पर अस्तित्व में आए मुल्क पाकिस्तान सियासी संकट (Pakistan Political Crisis) के भंवर से उबर नहीं पा रहा है. प्रधानमंत्री इमरान खान (Prime Minister Imran Khan) के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव के दौरान संसद स्थगित करने के बाद मुल्क की राजनीतिक हालत खुलकर सामने आ गई है. आलम ये है कि पाकिस्तान में आज तक कोई भी सरकार अपने कार्यकाल के 5 साल पूरे नहीं कर पाई. सरकार में लोकतंत्र और जनता की आड़ में हमेशा ही पाकिस्तानी सेना का भरपूर दखल रहा है.
इस वक्त पाकिस्तान दुनिया के 10 सबसे ज्यादा कर्ज लेने वाले देशों में शामिल है. हालत ये है कि पाकिस्तान खुद को दिवालिया घोषित होने से बचाने के लिए लगातार कर्ज ले रहा है. इमरान खान की सरकार के खिलाफ विपक्ष के हल्ला बोल के पीछे बढ़ती महंगाई, चीन से लिया कर्ज और भ्रष्टाचार को माना जा रहा है. आइए, जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर वो कौन सी बड़ी वजहें हैं जिससे पाकिस्तान में कोई भी सरकार पांच साल नहीं पूरा कर पाती.
पहले प्रधानमंत्री की हत्या
पाकिस्तान बनने के बाद वहां पहले दस साल में सात प्रधानमंत्री बन गए. पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की सरकार इसमें सबसे ज्यादा समय तक चली. चौथे साल के कार्यकाल के दौरान साल 1951 में हत्या कर दी गई. इसके बाद अगले छह साल में हर साल एक यानी छह प्रधानमंत्री बनाए गए.
सैन्य तख्तापलट की शुरुआत
पहले 10 साल लगातार प्रधानमंत्री के बदले जाने से सरकार सुधार की दिशा में कोई बड़े कदम नहीं उठा सकी. नाराज जनता का लोकतंत्र से भरोसा ही उठ रहा था. सेना प्रमुख अयूब खान ने इस हालात का फायदा उठाया. उन्होंने 1959 के आम चुनाव से पहले तत्कालीन राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा के साथ मिलकर सैनिक शासन लागू कर दिया. इसके बाद साल 1959 से 1969 तक पाकिस्तान में सैन्य शासन जारी रहा.
जुल्फिकार और जिया उल हक का दौर
अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते अयूब खान को पाकिस्तान की सत्ता से हटना पड़ा. इस बीच में 13 दिनों को छोड़कर सेना का ही शासन कायम रहा. इसके बाद 4 साल तक यानी 1973 से 77 तक पाकिस्तान में जुल्फिकार अली भुट्टो का राज चला. 1977 में सेना प्रमुख मोहम्मद जिया उल हक ने उन्हें हटाकर फिर से सेना का शासन लागू कर दिया. बाद में भुट्टो को फांसी दे दी गई. इसके बाद 1985 तक जिया उल हक का सैनिक शासन बदस्तूर चलता रहा.
बेनजीर और नवाज शरीफ का शासन
पाकिस्तान के लोकतंत्र के इतिहास में साल 1988 का चुनाव बेहद अहम रहा. इस साल चुनाव में सहानुभूति वोट पाकर जुल्फिकार अली भुट्टो की बेटी बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. दो साल बाद ही 1990 में पाकिस्तान में फिर आम चुनाव हुए. इस चुनाव में पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) को सबसे ज्यादा सीटें मिली. नवाज शरीफ नए प्रधानमंत्री चुने गए. इसके बाद 1999 तक नवाज शरीफ और बेनजीर भुट्टो का दौर ही कायम रहा.
मुशर्रफ के बाद आए इमरान खान
साल 1999 में एक बार फिर परवेज मुशर्रफ ने सैनिक शासन लागू कर दिया. इसके बाद यूसुफ रजा गिलानी और नवाज शरीफ का फिर से दौर आया. साल 2017 में प्रधानमंत्री पद पर नवाज शरीफ के चुने जाने को सुप्रीम कोर्ट ने गलत ठहरा दिया. इसके बाद आम चुनाव 2018 में इमरान खान का पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें आई और सहयोगी दलों की मदद से वह प्रधानमंत्री बने.
नकली निकला नए पाकिस्तान का नारा
नए पाकिस्तान का नारा देकर सत्ता में आई इमरान खान (Imran Khan) की सरकार ने मुल्क में ऐसा कुछ भी नया नहीं किया जो वह जनता को बता सकें. उल्टे उनके शासनकाल में पाकिस्तान आर्थिक रूप से दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गया है. इमरान के आने के साथ ही पाकिस्तानी करेंसी भी लगातार पस्त होती जा रही है. इमरान की सरकार विदेश नीति के मोर्चे पर फेल है. वहीं भारत के साथ रिश्ते भी बेहद खराब हालत में आ चुके हैं.
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विदेशी कर्ज का बेतहाशा बढ़ता बोझ
IMF के अनुसार पाकिस्तान पर विदेशी कर्ज बढ़कर 90 अरब डॉलर हो गया है. इसमें चीन से लिए कर्ज की हिस्सेदारी 20 फीसदी है. बेहद शुरुआत से ऐसे कर्ज पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए गले की फांस बना हुआ है. पाकिस्तान की जीडीपी में विदेशी कर्ज की हिस्सेदारी 6 फीसदी से ज्यादा हो गई है. इस हफ्ते पाकिस्तान को चीन को 4 अरब डॉलर का कर्ज चुकाना था, लेकिन उसने और मोहलत की मांग की है.
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