Advertisment

1962 की जंग में अंतिम सांस तक लड़े थे मेजर शैतान सिंह, योद्धाओं की याद में आज नए स्मारक का उद्घाटन

नया स्मारक उन सैनिकों के लिए सच्ची श्रद्धांजलि की तरह है. युद्ध की स्मृति में फोटो गैलरी वाले एक सभागार का भी उद्घाटन किया जाएगा. युद्ध स्मारक का उद्घाटन रेजांग ला युद्ध की 59वीं वर्षगांठ पर किया जा रहा है.

author-image
Vijay Shankar
एडिट
New Update
Rezang La

Rezang La ( Photo Credit : File Photo)

Advertisment

मेजर शैतान सिंह और उनकी चार्ली कंपनी के जवानों की ओर से 1962 के युद्ध में मिसाल पेश करने के 59 साल बाद रेजांग ला का स्मारक का उद्घाटन किया जाएगा. इस नए वॉर मेमोरियल पर रेजांगला युद्ध के वीर सैनिकों के नाम तो होंगे ही साथ ही पिछले साल यानि 2020 में चीना सेना के साथ हुए गलवान घाटी की हिंसा में बलिदान देने वाले सैनिकों के नाम भी लिखे जाएंगे. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह पूर्वी लद्दाख के रेजांग ला में नए सिरे से बने युद्ध स्मारक का उद्घाटन करेंगे. स्मारक उन बहादुर भारतीय सैनिकों को समर्पित है, जिन्होंने रेजांग ला की लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति दी थी. यहीं पर भारतीय सैनिकों ने 1962 में चीनी सेना का बहादुरी से मुकाबला किया था. पूर्वी लद्दाख के रेजांग ला में युद्ध स्मारक का उद्घाटन रेजांग ला युद्ध की 59वीं वर्षगांठ पर किया जा रहा है.

यह भी पढ़ें : लद्दाख में चीन की सेना पर नजर, ठंड आते ही भारत ने बढ़ाई LAC पर सैनिकों की तैनाती

सेना के एक वरिष्ठ कमांडर ने कहा, "नया स्मारक उन सैनिकों के लिए सच्ची श्रद्धांजलि की तरह है. उन्होंने कहा कि युद्ध की स्मृति में फोटो गैलरी वाले एक सभागार का भी उद्घाटन किया जाएगा. युद्ध स्मारक का उद्घाटन रेजांग ला युद्ध की 59वीं वर्षगांठ पर किया जा रहा है, जब मेजर शैतान सिंह और 13 कुमाऊं बटालियन की चार्ली कंपनी के 114 जवानों ने लद्दाख सेक्टर में चुशुल-दुंगती-लेह अक्ष की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दी थी. मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में वीर बहादुर जवानों ने लगभग 400 चीन के सैनिकों को पूरी तरह नुकसान पहुंचाया था. 

18 हजार फीट पर स्थित है रेजांग ला

18,000 फीट पर स्थित रेजांग ला स्पंगुर गैप से 11 किलोमीटर दक्षिण में स्थित यह दर्रा है, जहां से 18 नवंबर, 1962 को सुबह 4 बजे लगभग दो हजार चीनी सैनिकों ने मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में 13 कुमाऊं की चार्ली कंपनी के 120 जवानों पर हमला किया था. इस लड़ाई में 114 सैनिक शहीद हो गए थे. सभी सैनिक दक्षिणी हरियाणा के निवासी थे. इन वीर बहादुर सैनिकों ने कड़ाके की ठंड में देश की रक्षा करने के लिए लड़ाई लड़ी थी. पुराने हथियार और गोलाबारूद की कमी के बावजूद वीर सैनिकों ने न सिर्फ चीनी सैनिकों को आगे बढ़ने से रोका बल्कि चुशुल हवाई अड्डे को भी बचाने में कामयाबी मिली थी. जांबाज जवानों ने अपने मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में दुश्मन सैनिकों से लड़े और ऐसे लड़े कि दुश्मन सेना को भी कहना पड़ा कि उन्हें सबसे ज्यादा नुकसान इसी जगह उठाना पड़ा. 

कड़ाके की ठंड में लड़ी गई थी लड़ाई

रेजांग ला की लड़ाई शून्य से नीचे के तापमान में लड़ी गई थी. चुशुल की ऊंचाई वाले इलाकों में तापमान शून्य से 25 डिग्री सेल्सियस और इससे अधिक तक पहुंचने के लिए जाना जाता है. 1962 के युद्ध के आधिकारिक इतिहास के अनुसार, चीनी हमला 18 नवंबर को सुबह 4 बजे लेह और चुशुल के बीच दुंगती के रास्ते सड़क संपर्क को अवरुद्ध करने के इरादे से शुरू हुआ था ताकि चुशुल में गैरीसन को अलग-थलग कर दिया जाए और आपूर्ति की कमी हो जाए. मेजर शैतान सिंह और उनकी कंपनी मेजर ने पहले तीन इंच के मोर्टार, फिर राइफल, बिना किसी तोपखाने या हवाई समर्थन के उन लुटेरों चीनियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी जिन्होंने दो तरफ से पोस्ट पर हमला किया था. रेजांग ला में पुनर्निर्मित युद्ध स्मारक का उद्घाटन करने के कदम को उस क्षेत्र में भारत की ताकत के प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा है जो चीनी क्षेत्र के बहुत करीब है और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के दूसरी तरफ से दिखाई देता है. 

मेजर शैतान सिंह ने पीछे हटने से किया था इनकार

युद्ध के दौरान एक जवान ने संदेश भेजा कि करीब 400 चीनी उनकी पोस्ट की तरफ आ रहे हैं. तभी 8 पलटन ने भी संदेश भेजा कि रिज की तरफ से करीब 800 चीनी सैनिक आगे बढ़ रहे हैं. इस दौरान मेजर शैतान सिंह को ब्रिगेड से आदेश मिल चुका था कि युद्ध करें या चाहें तो चौकी छोड़कर लौट सकते हैं, लेकिन बहादुर मेजर ने पीछे हटने से मना कर दिया इसके बाद मेजर ने अपने सैनिकों से कहा अगर कोई वापस जाना चाहता है तो जा सकता है, लेकिन इसके बावजूद सारे जवान अपने मेजर के साथ डटे रहे.

पांच घायल सैनिकों को बनाया था बंदी

चीन ने पांच भारतीय सैनिकों को घायल के रूप में बंदी बना लिया था, लेकिन वे सभी चीनी सेना के चंगुल से भागने में सफल हो गए. जबकि चीन ने एक कमांडिंग ऑफिसर मेजर सिंह ने बाकी दुनिया को लड़ाई की कहानी बताने के लिए वापस भेज दिया. जब तीन महीने बाद शव बरामद किए गए, तब भी वे लड़ाई की मुद्रा में अपने हथियार पकड़े हुए थे. मेजर शैतान सिंह का जब गोला-बारूद खत्म हो गया तो वे अपनी खाइयों से कूद गए और दुश्मन को आमने-सामने की लड़ाई में खड़े हो गए. शरीर पर कई गोलियों और गंभीर घावों के साथ एक सुनसान जगह पर पड़े पाए गए थे.

HIGHLIGHTS

  • चीन की लड़ाई में लड़ने वाले बहादुर भारतीय सैनिकों को समर्पित है स्मारक
  • गलवान घाटी की हिंसा में बलिदान देने वाले सैनिकों के भी लिखे जाएंगे नाम
  • युद्ध स्मारक का उद्घाटन रेजांग ला युद्ध की 59वीं वर्षगांठ पर किया जा रहा है

Source : Vijay Shankar

योद्धा मेजर शैतान सिंह fight last breath चीन अंतिम सांस memory of the warriors china memory of warriors new memorial Rezang La 1962 war inaugurate 1962 युद्ध के हीरो रेजांग ला स्मारक Major Shaitan Singh
Advertisment
Advertisment
Advertisment