विदेश जाने से पहले झारखंड के गोमो में गुजरी थी नेताजी की आखिरी रात

आजादी के इतिहास के पन्ने पलटते हुए जब भी 21 अक्टूबर, 1943 यानी आजाद हिंद फौज स्थापना दिवस की तारीख से होकर गुजरेंगे तो उसके पहले झारखंड के धनबाद जिले की गोमो नामक जगह की जिक्र जरूर आएगा.

author-image
Vijay Shankar
एडिट
New Update
subhash chandra bose

subhash chandra bose( Photo Credit : File Photo)

आजादी के इतिहास के पन्ने पलटते हुए जब भी 21 अक्टूबर, 1943 यानी आजाद हिंद फौज स्थापना दिवस की तारीख से होकर गुजरेंगे तो उसके पहले झारखंड के धनबाद जिले की गोमो नामक जगह की जिक्र जरूर आएगा. आजादी के लिए सशस्त्र संघर्ष छेड़ने के अपने इरादे को अंजाम तक पहुंचाने और आजाद हिंद फौज को कायम करने के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जब देश छोड़ा था, तो उन्होंने आखिरी रात इसी जगह पर गुजारी थी. इसे अब नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन के नाम से जाना जाता है.
अंग्रेजी हुकूमत द्वारा नजरबंद किये गये सुभाष चंद्र बोस के देश छोड़ने की यह परिघटना इतिहास के पन्नों पर द ग्रेट एस्केप के रूप में जानी जाती है.

Advertisment

यह भी पढ़ें : सुभाष चंद्र बोस के 125वीं जयंती समारोह समिति के अध्यक्ष हैं पीएम नरेन्द्र मोदी

तारीख थी 18 जनवरी, 1941, जब अंतिम बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस यहीं पर देखे गए थे. इसी स्टेशन से कालका मेल पकड़कर नेताजी पेशावर के लिए रवाना हुए थे, जिसके बाद जर्मनी से लेकर जापान और सिंगापुर तक पहुंचने और आज यानी 21 अक्टूबर को आजाद हिंद फौज की अंतरिम सरकार बनाने तक की दास्तान हमारे इतिहास का अनमिट पन्ना है.  'द ग्रेट एस्केप' की यादों को सहेजने और उन्हें जीवंत रखने के लिए झारखंड के नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन के प्लेटफार्म संख्या 1-2 के बीच उनकी आदमकद कांस्य प्रतिमा लगाई गई है. इस जंक्शन पर 'द ग्रेट एस्केप' की दास्तां भी संक्षेप रूप में एक शिलापट्ट पर लिखी गई है.

हुलिया बदलकर निकले थे नेताजी 

कहानी ये है कि 2 जुलाई 1940 को हालवेल मूवमेंट के कारण नेताजी को भारतीय रक्षा कानून की धारा 129 के तहत गिरफ्तार किया गया था. तब डिप्टी कमिश्नर जान ब्रीन ने उन्हें गिरफ्तार कर प्रेसीडेंसी जेल भेजा था. जेल जाने के बाद उन्होंने आमरण अनशन किया. उनकी तबीयत खराब हो गई. तब अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें 5 दिसंबर 1940 को इस शर्त पर रिहा किया कि तबीयत ठीक होने पर पुन: गिरफ्तार किया जाएगा. नेताजी रिहा होकर कोलकाता के एल्गिन रोड स्थित अपने आवास आए. केस की सुनवाई 27 जनवरी 1941 को थी, पर ब्रिटिश हुकूमत को 26 जनवरी को पता चला कि नेताजी तो कलकत्ता में नहीं हैं. दरअसल वे अपने खास नजदीकियों की मदद से 16-17 जनवरी की रात करीब एक बजे हुलिया बदलकर वहां से निकल गए थे. इस मिशन की योजना बाग्ला वोलेंटियर सत्यरंजन बख्शी ने बनायी. योजना के मुताबिक नेताजी 18 जनवरी 1941 को अपनी बेबी अस्टिन कार से धनबाद के गोमो आए थे. वे एक पठान के वेश में आए थे.

गोमो से कालका मेल में सवार होकर गए थे

बताया जाता है कि भतीजे डॉ शिशिर बोस के साथ गोमो पहुंचने के बाद वह गोमो हटियाटाड़ के जंगल में छिपे रहे. जंगल में ही स्वतंत्रता सेनानी अलीजान और अधिवक्ता चिरंजीव बाबू के साथ इन्होंने गुप्त बैठक की थी. इसके बाद इन्हें गोमो के ही लोको बाजार स्थित कबीले वालों की बस्ती में मो. अब्दुल्ला के यहां आखिरी रात गुजारी थी. फिर वे उन्हें पंपू तालाब होते हुए स्टेशन ले गए. गोमो से कालका मेल में सवार होकर गए तो उसके बाद कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे. नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सम्मान में रेल मंत्रालय ने वर्ष 2009 में गोमो स्टेशन का नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस गोमो जंक्शन कर दिया. 

HIGHLIGHTS

  • 21 अक्टूबर है आजाद हिंद फौज की स्थापना दिवस
  • गोमो स्टेशन का नाम अब नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन है
  • गोमो से कालका मेल में सवार होकर निकले थे नेताजी
Subhash chandra bose आजाद हिंद फौज नेताजी azad hind fauj Ranchi Netaji गोमो last night Gomo सुभाष चंद्र बोस Jharkhand झारखंड
      
Advertisment