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गांधीजी को विस्फोट, छुरी, जहर से भी की गई थी मारने की कोशिश, छठी बार नहीं बच सके

30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) ने की थी, लेकिन इस हमले से पहले भी महात्मा गांधी पर कई जानलेवा हमले हुए थे.

Updated on: 30 Jan 2022, 09:44 AM

highlights

  • 30 जनवरी 1948 को गोडसे की गोली से नहीं बच सके बापू
  • इसके पहले कम से कम पांच बार हुए उन्हें मारने के प्रयास
  • नील के अंग्रेज मिल मालिक भी नहीं चाहते थे जिंदा देखना

नई दिल्ली:

आज ही के दिन यानी 30 जनवरी 1948 को बिड़ला हाउस में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. उनकी हत्या नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) ने की थी, लेकिन इस हमले से पहले भी महात्मा गांधी पर कई जानलेवा हमले हुए थे. छठी बार में बापू नहीं बच सके थे. माना जाता है कि हत्या के इन प्रयासों की वजह बापू की वे नीतियां रहीं, जिनसे कई लोग इत्तेफाक नहीं रखते थे. हर बार अलग-अलग कारणों से महात्मा गांधी पर जानलेवा हमले हुए, आइए जानते हैं उनके बारे में...

पहला हमला 1934 पुणे में 
पुणे में आयोजित एक समारोह में महात्मा गांधी को जाना था. उन्हें लेने के लिए दो गाड़ियां आईं, जो लगभग एक जैसी दिखती थीं. एक गाड़ी में आयोजक थे और दूसरे में कस्तूरबा और महात्मा गांधी यात्रा करने वाले थे. जो आयोजक उन्हें लेने आए थे, उनकी कार आगे निकल गई. बीच में रेलवे फाटक पड़ता था. महात्मा गांधी की कार वहां रुक गई. तभी एक धमाका हुआ और जो कार आगे निकल गई थी, उसके परखच्चे उड़ गए. महात्मा गांधी उस हमले से बच गए, क्योंकि ट्रेन आने में देरी हुई. ये साल 1934 की बात है.

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पंचगनी और मुंबई में हमला
1944 में आग़ा ख़ां पैलेस से रिहाई के बाद गांधीजी पंचगनी में रुके थे, वहां कुछ लोग उनके ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे थे. गांधी ने कोशिश की कि उनसे बात की जाए, उनको समझाया जाए, उनकी नाराज़गी समझी जाए कि वो क्यों ग़ुस्सा हैं? यह अलग बात है कि उनमें से कोई बात करने को राज़ी नहीं था और आख़िर में एक आदमी छुरा लेकर दौड़ पड़ा, उसको पकड़ लिया गया. 1944 में ही पंचगनी के बाद गांधी और जिन्ना की वार्ता मुंबई (तत्कालीन बंबई) में होने वाली थी. कुछ मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा के लोग इससे नाराज़ थे कि गांधी और जिन्ना की मुलाकात का कोई मतलब नहीं है और ये मुलाक़ात नहीं होनी चाहिए. वहां भी गांधीजी पर हमले की कोशिश हुई और वह भी नाकाम रही.

चंपारण में दो बार कोशिश
1917 में महात्मा गांधी मोतिहारी में थे. मोतिहारी में सबसे बड़ी नील मिल के मैनेजर इरविन ने उन्हें बातचीत के लिए बुलाया. इरविन मोतिहारी की सभी नील फ़ैक्ट्रियों के मैनेजरों के नेता थे. इरविन ने सोचा कि जिस आदमी ने उनकी नाक में दम कर रखा है, अगर इस बातचीत के दौरान उन्हें खाने-पीने की किसी चीज़ में ज़हर दे दिया जाए. ये बात इरविन ने अपने खानसामे बत्तख मियां अंसारी को बताई. बत्तख मियां से कहा गया कि वो ट्रे लेकर गांधी के पास जाएंगे. जब वे गांधी जी के पास पहुंचे तो बत्तख मियां की हिम्मत नहीं हुई कि वे ट्रे गांधी के सामने रख देते. गांधी ने उन्हें सिर उठाकर देखा, तो बत्तख मियां रोने लगे और सारी बात खुल गई. ये किस्सा महात्मा गांधी की जीवनी में कहीं नहीं है.

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अंग्रेज़ की नील कोठी पर
दूसरा एक और रोचक किस्सा है कि जब ये कोशिश नाकाम हो गई और गांधीजी बच गए तो एक दूसरे अंग्रेज़ मिल मालिक को बहुत गुस्सा आया. उसने कहा कि गांधी अकेले मिल जाए तो मैं उन्हें गोली मार दूंगा. ये बात गांधी जी तक पहुंची. अगली सुबह. महात्मा उसी के इलाक़े में थे. गांधी सुबह-सुबह उठकर अपनी लाठी लिए हुए उस अंग्रेज़ की नील कोठी पर पहुंच गए. और उन्होंने वहां जो चौकीदार था, उससे कहा कि बता दो कि मैं आ गया हूं और अकेला हूं. कोठी का दरवाज़ा नहीं खुला और वो अंग्रेज़ बाहर नहीं आए.