Corona Virus से लड़ने में कारगर Hydroxychloroquine पर भारत को धमकी के पीछे ट्रंप के निहितार्थ
अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने दावा किया है कि ट्रंप इस दवा पर इसलिए दांव खेल रहे हैं, क्योंकि इसमें उनका निजी फायदा है.
highlights
- अमेरिकी अखबारों में दावा किया जा रहा है कि ट्रंप की धमकी यूं ही नहीं है.
- मलेरिया की दवा बनाने वाली कई कंपनियों में ट्रंप के हैं व्यावसायिक हित.
- अमेरिका के तेवर देख चीन कच्चे माल पर अड़ंगा भी लगा सकता है.
नई दिल्ली:
कोरोना वायरस के कहर से बेहाल अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को संकेत दिया कि अगर भारत ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (Hydroxychloroquine) दवा के निर्यात पर से प्रतिबंध नहीं हटाया तो वह जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं. हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का इस्तेमाल कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के इलाज में किया जा रहा है. इससे पहले ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस दवा के लिए गुहार लगाई थी. यह अलग बात है कि मलेरिया (Malaria) के इलाज में कारगर दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन को लेकर भारत को धमकी देने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) के सुर 24 घंटे में ही बदल गए हैं. उन्होंने इस दवा को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के स्टैंड को न सिर्फ सराहा है, बल्कि कोरोना वायरस (Corona Virus) से जंग में पीएम मोदी के रुख की प्रशंसा भी की है.
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लॉकडाउन से कच्चे माल की कमी
दरअसल, वैश्विक महामारी का रूप ले चुके कोरोना वायरस का संक्रमण विश्व के कई देशों में तेजी से फैल रहा है. इटली, स्पेन जैसे विकसित देशों की सुपर पावर देशों ने भी इस वायरस के आगे घुटने टेक दिए हैं. खुद अमेरिका की नजरें अब मदद की आस में भारत पर टिकी हैं. ट्रंप के मुताबिक कोरोना से इलाज में भी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वाइन दवा के अच्छे परिणाम सामने आए हैं. भारत में हर साल बड़ी संख्या में लोग मलेरिया की चपेट में आते हैं, इसलिए भारतीय दवा कंपनियां बड़े स्तर पर हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वाइन का उत्पादन करती हैं. अब यह दवा कोरोना वायरस से लड़ने में कारगर सिद्ध हो रही है, तब इसकी मांग और बढ़ गई है. हालांकि, कच्चे माल की कमी ने इस दवा के उत्पादन को बहुत प्रभावित किया है. वैश्विक लॉकडाउन के कारण भारतीय दवा निर्माता कंपनियों ने सरकार से इस दवा के लिए कच्चे माल को एयरलिफ्ट कर मंगाने की मांग की है.
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दवा कंपनी में शेयर है वजह?
अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने दावा किया है कि ट्रंप इस दवा पर इसलिए दांव खेल रहे हैं, क्योंकि इसमें उनका निजी फायदा है. अखबार ने अपनी वेबसाइट पर लिखा कि अगर हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन को पूरी दुनिया अपना लेती है तो दवा कंपनियों को इसका बड़ा फायदा मिलेगा जिनमें से एक कंपनी सैनोफी में ट्रंप का भी हिस्सा है. कंपनी के अधिकारियों संग ट्रंप के गहरे रिश्ते भी बताए जा रहे हैं.
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एक महीने में 40 टन प्रोडक्शन
इंडियन फार्मास्यूटिकल अलायंस के महासचिव सुदर्शन जैन के अनुसार, दुनिया को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन hydroxychloroquine की 70 फीसदी सप्लाई भारत करता है. देश के पास इस दवा को बनाने की क्षमता इतनी है कि वह 30 दिन में 40 टन हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन तैयार कर सकता है. यानी इससे 20 मिलीग्राम की 20 करोड़ टैबलेट्स बनाई जा सकती हैं. चूंकि यह दवा ह्यूमेटॉयड ऑर्थराइटिस और लूपुस जैसी बीमारियों के लिए भी इस्तेमाल होती है, इसका प्रोडक्शन अभी और भी बढ़ाया जा सकता है. भारत में इस दवा को बनाने वाली कंपनीज में आईपीसीए लैब्स, कैडिला औरवालेस फार्मास्यूटिकल्स है. केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने हाल ही में इन कंपनियों को 10 करोड़ टैबलेट्स बनाने का ऑर्डर दिया है.
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भारत ने बढ़ाया आउटपुट
भारत ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का आउटपुट बढ़ा दिया है. कुछ दिन पहले ही उसे उन सामानों की लिस्ट में जोड़ा गया था जिनका एक्सपोर्ट नहीं किया जा सकता. सरकार अभी इस बात का पता लगा रही है कि कोविड-19 से निपटने में कितनी दवा भारत में लगेगी. हालांकि, अमेरिका की गुजारिश पर निर्यात पर लगा बैन हटा दिया गया है. भारत ने अप्रैल-जनवरी 2019-20 के दौरान 1.22 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन एक्सपोर्ट की. इसी समय में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन से बने फॉर्म्युलेशंस का एक्सपोर्ट 5.50 बिलियन डॉलर का रहा.
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प्रोडक्शन में अड़ंगा डाल सकता है चीन
हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन बनाने के लिए जिन एक्टिव फार्मास्यूटिकल्स इंग्रीडिएंट्स (API) की जरूरत पड़ती है. भारत को HCQ का 70 प्रतिशत API चीन सप्लाई करता है. अभी तक तो उसकी तरफ से सप्लाई ठीक रही है मगर अमेरिका के तेवर देख कर वह इसके प्रोडक्शन में अड़ंगा भी लगा सकता है. हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन अमेरिका जैसे विकसित देशों में इसलिए नहीं बनती क्योंकि वहां मलेरिया का नामोनिशान नहीं है. इसका कम्पोजिशन क्लोरोक्वीन (chloroquine) से मिलता-जुलता है जो मलेरिया के लिए इस्तेमाल होने वाली सबसे पुरानी और अच्छी दवाओं में से एक हैं. इसके साइड इफेक्ट्स भी कम होते हैं. दवा भी बेहद सस्ती है. मगर कोरोना वायरस के चलते कई देशों ने इसकी खरीद और बिक्री पर रोक लगा दी है.
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