Independence Day 2021:मौलवी अहमदुल्लाह शाह : 1857 की क्रांति के 'लाइटहाउस'
1857 की क्रांति के समय वे घूम-घूमकर राजाओं, नवाबों और क्रांतिकारियों को संगठित कर रहे थे.क्रांतिकारियों के बीच वह मौलवी, डंकाशाह, नककर शाह के नाम से जाने जाते थे.वे 1857 के भारतीय विद्रोह के प्रमुख व्यक्ति थे इसीलिए शाह को 1857 के विद्रोह का लाइटहाउस
highlights
- मौलवी अहमदुल्लाह शाह ने अंग्रेजों के खिलाफ घोषित किया था जिहाद
- 1857 के विद्रोह के पीछे मौलवी के मस्तिष्क और प्रयास थे महत्वपूर्ण
- कई भाषाओं के जानकार और अद्भुत संगठनकर्ता थे अहमदुल्लाह शाह
नई दिल्ली:
Independence Day 2021: प्रथम स्वतंत्रता संग्राम-1857 में यदि किसी एक व्यक्ति की सबसे उल्लेखनीय भूमिका रही तो वह मौलवी अहमदुल्लाह शाह हैं. मौलवी अहमदुल्लाह उर्दू, अरबी, फारसी, हिंदी और अंग्रेजी और फ्रेंच समेत कई भाषाओं के जानकार थे. वे अद्भुत संगठनकर्ता थे.1857 की क्रांति के समय वे घूम-घूमकर राजाओं, नवाबों और क्रांतिकारियों के संगठित कर रहे थे. क्रांतिकारियों के बीच वह मौलवी, डंका शाह, नककर शाह के नाम से जाने जाते थे. वे 1857 के भारतीय विद्रोह के प्रमुख व्यक्ति थे इसीलिए शाह को 1857 के विद्रोह का लाइटहाउस कहा जाता है.
अहमदुल्ला शाह की साहस, बहादुरी, व्यक्तिगत और संगठनात्मक क्षमताओं का उल्लेख करते हुए ब्रिटिश अधिकारी थॉमस सीटन ने कहा, "महान क्षमताओं का एक आदमी, निर्विवाद साहस, कठोर दृढ़ संकल्प, और विद्रोहियों के बीच अब तक का सबसे अच्छा सैनिक."
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मौलवी अहमदुल्ला का जन्म 1787 में हुआ था. परिवार मूलत: हरदोई का रहने वाला था लेकिन कालांतर में फैजाबाद में बस गया था. उनके पिता गुलाम हुसैन खान हैदर अली की सेना में एक वरिष्ठ अधिकारी थे. मौलवी एक सुन्नी मुस्लिम थे और समृद्ध परिवार के थे. वह अंग्रेजी अच्छी जानते थे. उन्होंने इंग्लैंड, सोवियत संघ, ईरान, इराक, मक्का और मदीना की हज यात्रा भी किया था. हिंदू-मुस्लिम एकता के पैरोकार अहमदुल्लाह शाह के नेतृत्व में 1857 के विद्रोह में, नाना साहिब और खान बहादुर खान जैसे रॉयल्टी लड़े.
मौलवी का मानना था कि सशस्त्र विद्रोह की सफलता के लिए, लोगों का सहयोग बहुत महत्वपूर्ण था.उन्होंने दिल्ली, मेरठ, पटना, कलकत्ता और कई अन्य स्थानों की यात्रा की और आजादी के बीज बोए. मौलवी और फजल-ए-हक खैराबादी ने भी अंग्रेजों के खिलाफ जिहाद घोषित किया. उन्होंने 1857 में विद्रोह के विस्फोट से पहले भी अंग्रेजो के खिलाफ जिहाद की आवश्यकता के लिए फतेह इस्लाम नामक एक पुस्तिका लिखी थी.
जी बी मॉलसन के मुताबिक, "यह संदेह से परे है कि 1857 के विद्रोह की षड्यंत्र के पीछे, मौलवी के मस्तिष्क और प्रयास महत्वपूर्ण थे.अभियान के दौरान रोटी का वितरण, चपाती आंदोलन वास्तव में उनका दिमाग था.
15 मई 1858 को विद्रोहियों और जनरल ब्रिगेडियर जोन्स की रेजिमेंट के बीच भयंकर लड़ाई हुई.दोनों पक्षों को भारी नुकसान उठाना पड़ा लेकिन विद्रोहियों ने अभी भी शाहजहांपुर को नियंत्रित किया था. कॉलिन 20 मई को शाहजहांपुर पहुंचे, और सभी तरफ से शाहजहांपुर पर हमला किया. यह लड़ाई पूरी रात जारी रही. मौलवी और नाना साहिब ने शाहजहांपुर छोड़ दिया. ऐसा कहा जाता है कि कॉलिन ने खुद मौलवी का पीछा किया लेकिन उसे पकड़ नहीं सका.
ब्रिटिश सरकार कभी मौलवी को जिंदा नहीं पकड़ सकी. शाहजहंपुर के पुवायां के राजा जगन्नाथ सिंह ने मौलवी अहमदुल्लाह शाह को अपने महल में आमंत्रित कर धोखे से मरवा दिया था.
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