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गांधी हत्या: नाथूराम गोडसे निर्दोष होता, फांसी की सजा देने वाले जज ने कहा अगर...

नाथूराम गोडसे पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस जीडी खोसला (Justice GD Khosla) ने कहा था कि अगर अदालत में उपस्थित दर्शकों को ज्यूरी का दर्जा दे दिया जाए, तो नाथूराम गोडसे बहुमत के आधार पर महात्मा गांधी की हत्या के आरोप से 'निर्दोष' करार दिया जाएगा.

Updated on: 30 Jan 2021, 10:11 AM

highlights

  • गोडसे पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस जीडी खोसला ने की थी ऐतिहसिक टिप्पणी.
  • माना था कि यदि अदालती दर्शक ज्यूरी होते तो गोडसे बहुमत से बरी हो जाता.
  • गोडसे ने कहा था-गांधी की हत्या की वजह मुस्लिमों हितों के आगे हिंदुओं की अनदेखी.

नई दिल्ली:

इतिहास एक ऐसे अंधियारे गलियारे की तरह है, जिसकी दीवार का सहारा लेते ही एक नया कंकाल निकल आता है. इसका अर्थ यह है कि आप जिस खास घटना से जुड़ी जानकारी के लिए इतिहास को खंगाल रहे होते हैं, उसके बजाय कोई नया तथ्य या घटनाक्रम सामने आ खड़ा होता है. कुछ ऐसा ही नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) पर महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की हत्या का चला मुकदमे से जुड़ा घटनाक्रम भी है. बिड़ला हाउस (Birla House) में बापू (Gandhi Jayanti) को तीन गोली मारने वाले नाथूराम गोडसे का मुकदमा जिस अदालत में चला उसके जज की टिप्पणी आजाद भारत के इतिहास को नए सिरे से रेखांकित करने की वकालत करती है. गोडसे पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस जीडी खोसला (Justice GD Khosla) ने कहा था कि अगर अदालत में उपस्थित दर्शकों को ज्यूरी का दर्जा दे दिया जाए, तो नाथूराम गोडसे बहुमत के आधार पर महात्मा गांधी की हत्या के आरोप से 'निर्दोष' करार दिया जाएगा.

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फांसी देने वाले जज की है यह टिप्पणी... तो निर्दोष होता गोडसे
ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक महात्मा गांधी की हत्या के पूरे मुकदमे के दौरान नाथूराम शांत चित्त बना रहा और हत्या के पीछे के कारणों को तर्कपूर्ण ढंग से सामने लाता रहा. उन तर्कों या उस पूरे मुकदमे के आधार पर जस्टिस जीडी खोसला ने 'द मर्डर ऑफ द महात्मा' (The Murder Of Mahatma) किताब लिखी. इसमें उन्होंने एक टिप्पणी की है, जो इतिहास को झकझोर कर नाथूराम गोडसे को एक नई रोशनी में देखने को प्रेरित करती है. उन्होंने लिखा है, 'मुझे इसमें कोई शक नहीं है कि यदि उस दिन अदालत में उपस्थित दर्शकों को संगठित कर ज्यूरी (Jury) बना दिया जाता. इसके साथ ही उन्हें नाथूराम गोडसे पर फैसला (Verdict) सुनाने को कहा जाता, तो भारी बहुमत के आधार पर गोडसे 'निर्दोष' (Not Guilty) करार दिया जाता.'

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गोडसे ने कहा बापू राष्ट्र पिता नहीं पाकिस्तान के पिता
महात्मा गांधी की हत्या के मामले में मुख्य आरोपी नाथूराम विनायक गोडसे ने हत्या का कभी नैतिक प्रायश्चित (guilty conscious) नहीं किया. गोडसे ने हमेशा यही कहा कि बापू को गोली मारना देश की खातिर उठाया गया कदम था. यही वजह है कि नाथूराम गोडसे ने ज्यूरी के समझ प्रस्तुत अपने 150 सूत्रीय बयान (Nathuram Godse Statement) में अपने 'किए को सही' ठहराया. अपने बयानों में गोडसे ने महात्मा गांधी को 'राष्ट्र पिता' (father Of nation) नहीं, 'पाकिस्तान का पिता' (Father Of Pakistan) करार दिया. अपने बयानों में गोडसे ने आरोप लगाया कि महात्मा गांधी ने पूरी तरह से सांप्रदायिक खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया, हजारों बंगालियों के कत्ल-ए-आम का मूक दर्शक-पाकिस्तान के गठन का पैरोकार हुसैन सुहरावर्दी (Suhrawardy) को नैतिक समर्थन दिया, विभाजन पर चुप्पी साधी, विभाजन (Partition) के बाद पाकिस्तान को आर्थिक मदद के लिए उपवास पर बैठना, हिंदुओं के कत्ल-ए-आम के बावजूद दिल्ली आए शरणार्थियों से मस्जिद खाली करने को कहना जैसी तमाम मुसलमान परस्त बातों ने गोडसे को उनकी हत्या के लिए प्रेरित किया. गोडसे का मानना था कि 'राष्ट्र पिता' वास्तव में एक पिता की जिम्मेदारी भूल गए थे, जिन्होंने अपने दो बच्चों में से एक का आंख बंद कर समर्थन किया.

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गोडसे ने पत्रकार से कहा-रत्ती भर पछतावा नहीं
इतिहास गवाह है कि 30 जनवरी 1948 को शाम पांच बजकर पंद्रह मिनट पर जब गांधीजी अपनी दो 'लाठियों' मनु और आभा के कंधों का सहारा लेकर लगभग भागते हुए बिड़ला हाउस के प्रार्थना स्थल (Prayer Platform) की तरफ़ बढ़ रहे थे, तो उनके स्टाफ़ के एक सदस्य गुरबचन सिंह ने अपनी घड़ी की तरफ़ देखते हुए कहा था, 'बापू आज आपको थोड़ी देर हो गई.' इस देरी की वजह बनी थी सरदार पटेल से उनकी मुलाकात. गांधीजी ने चलते-चलते ही हंसते हुए जवाब दिया था, 'जो लोग देर करते हैं उन्हें सज़ा मिलती है.' आजू-बाजू जमा भीड़ के बीच से गांधीजी तेजी से जगह बनाते हुए लकड़ी के बने प्रार्थना स्थल की तरफ बढ़ रहे थे. भीड़ में शामिल नाथूराम गोडसे ने गांधीजी को रोककर पैर छुए, जिसके जवाब में गांधीजी ने अपनी चिरपरिचित शैली में हाथ उठाकर आशीर्वाद देने की कोशिश शुरू ही की थी कि गोडसे ने हाथों में थामी बेरेटा (Bereta) रिवाल्वर से तीन गोलियां उनके शरीर में उतार दी. कृशकाय शरीर पहली गोली में ही जमीन की ओर गिरने लगा था और मुंह से सिर्फ यही शब्द निकल सके...हे राम! (Hey Ram) कुछ लोग गांधीजी को लेकर भीतर की ओर भागे और कुछ लोगों ने गोडसे को घेर पीटना शुरू कर दिया. कुछ ही देर बाद पुलिस ने गोडसे को हिरासत में ले लिया और तुगलक रोड पुलिस स्टेशन ले आई. पुलिस स्टेशन में किसी तरह पहुंचे पत्रकार ने जब गोडसे से कहा कि क्या वह कुछ कहना चाहेंगे... इस पर गोडसे ने कहा था, 'फिलहाल तो मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा कि मैंने जो कुछ भी अभी किया है, उस पर मुझे लेशमात्र भी पछतावा (No Regret) नहीं है. बाकी बातें मैं अदालत में करूंगा.'

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गोडसे का आरोप गांधीजी ने मुस्लिमों के फेर में की हिंदुओं की अनदेखी
अदालत में गांधीजी की हत्या का मुकदमा (Gandhi Murder Trial) शुरू होने पर 37 वर्षीय सौम्य चित्त गोडसे (Nathuram Godse speech) ने कहा था, 'गांधी पर गोलिया चलाने से पहले मैंने उनके पैर छूकर उनका आशीर्वाद भी लिया था. मेरी दुश्मनी गांधी से नहीं उनके विचारों और नीतियों से थी.' इसके साथ ही गोडसे ने अदालत में चली पूरी बहस में उन तमाम कारणों पर विस्तार से चर्चा की, जिनकी वजह से वह गांधी वध के लिए प्रेरित हुआ. गोडसे के तर्क यही बात बार-बार कह रहे थे अखंड भारत में हिंदू-मुस्लिम (Hindu Muslim) वैमनस्यता के पीछे गांधी जिम्मेदार थे. गांधी अपनी नीतियों और विचारों से सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों को तुष्ट या खुश करने में लगे रहे. इस फेर में उन्होंने हिंदु हितों की अनदेखी कर दी. गांधी के आंदोलनों और उपवास से देश को फायदा कम नुकसान ही ज्यादा हुआ. गौरतलब है कि गोडसे के अगर सांप्रदायिक आरोपों को दरकिनार कर दिया जाए तो भगत सिंह (Bhagat Singh) और नेताजी सुभाष चंद बोस (Subhash Chandra Bose) के विचार भी गांधी के प्रति कुछ ऐसे ही थे.

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15 नवंबर 1949 की दी गई गोडसे को फांसी
खैर, सुनवाई पूरी होने पर अदालत ने 10 फरवरी 1949 को सजा (Death Penalty) सुनाई. सजा के तहत गोडसे और उनके दोस्त नारायण आप्टे को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई. पांच अन्य आरोपियों को आजीवन कारावास दिया गया और आरएसएस के बड़े नेता वीर सावरकर को बरी कर दिया गया. बाद में दोषियों ने पंजाब हाई कोर्ट में अपील दायर की, लेकिन उनकी सजा बरकरार रखी गई. इसके बाद 15 नवंबर 1949 को अंबाला जेल में गोडसे और आप्टे को फांसी दे दी गई. हालांकि जस्टिस खोसला ने उनकी फांसी की सजा बरकरार रखते हुए अपना फैसला देने से पहले यही कहा था...'मुझे इसमें कोई शक नहीं है कि यदि उस दिन अदालत में उपस्थित दर्शकों को संगठित कर ज्यूरी बना दिया जाता. इसके साथ ही उन्हें नाथूराम गोडसे पर फैसला सुनाने को कहा जाता, तो भारी बहुमत के आधार पर गोडसे 'निर्दोष' (Not Guilty) करार दिया जाता.'