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नवरात्रि विशेषः वह शक्‍तिपीठ जहां गिरे थे देवी सती के तीनों नेत्र, जानें इसका पूरा इतिहास

Navratri 2019: पुराणों में कहा गया है कि महालक्ष्मी पहले तिरुपति में विराजती थीं. किसी बात पर पति भगवान विष्णु से झगड़ा हो गया तो रूठकर कोल्हापुर आ गईं.

Updated on: 29 Sep 2019, 04:50 PM

नई दिल्‍ली:

Navratri 2019: पुराणों में कहा गया है कि महालक्ष्मी पहले तिरुपति में विराजती थीं. किसी बात पर पति भगवान विष्णु से झगड़ा हो गया तो रूठकर कोल्हापुर आ गईं. इसी वजह से हर दिवाली में तिरुपति देवस्थान की ओर से महालक्ष्मी के लिए शॉल भेजी जाती है.कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि देवी सती के तीनों नेत्र यहीं गिरे थे. इस मंदिर को मां भगवती का निवास माना जाता है. देवी के 51 शक्‍तिपीठों में इसका बड़ा महत्‍व है.

बता दें देवी भागवत पुराण में 108, कालिका पुराण में 26 , शिवचरित्र में 51, दुर्गा सप्तशती और तंत्र चूड़ामणि में शक्तिपीठों की संख्या 52 बताई गई है. आमतौर पर 51 शक्तिपीठ माने जाते हैं. तंत्र चूड़ामणि में लगभग 52 शक्ति पीठों के बारे में बताया गया है. कहा जाता है कि इस शक्तिपीठों के दर्शन मात्र से ही हर मनोकामना पूरी हो जाती है. आइए जानें उस शक्‍ति पीठ के बारे में जहां मां के तीनों नेत्र गिरे थे.. 

मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसे ऐसा बनाया जाता है कि साल के एक ख़ास समय सूर्य की किरणें मुख्य मंदिर में मौजूद देवी की मूर्ति पर सीधे पड़ती हैं. मंदिर में श्री महालक्ष्मी की तीन फुट ऊंची, चतुर्भुज मूर्ति है. ऐसा माना जाता है कि तिरुपति यानी भगवान विष्णु से रूठकर उनकी पत्नी महालक्ष्मी कोल्हापुर आईं थी.

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दुनिया के इस प्राचीन महालक्ष्मी मंदिर में रोज ही दिवाली की रौनक होती है. कई बातें हैं, जो करीब 40 हजार श्रद्धालुओं को रोज आकर्षित करती हैं. पर सबसे अहम है मंदिर का वास्तु. साल में दो बार नवंबर और जनवरी में तीन दिनों तक अस्ताचल सूर्य की किरणें गर्भगृह में महालक्ष्मी की प्रतिमा को स्पर्श करती हैं. नवंबर में 9, 10 और 11 तारीख को और इसके बाद 31 जनवरी, 1 और 2 फरवरी को.

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पहले दिन सूर्य किरणें महालक्ष्मी के चरणों को स्पर्श करती हैं. दूसरे दिन कमर तक आती हैं और तीसरे दिन चेहरे को आलोकित करते हुए गुजर जाती हैं. इसे किरणोत्सव कहा जाता है, जिसे देखने हजारों लोग जुटते हैं. गर्भगृह में स्थित प्रतिमा और मंदिर परिसर के पश्चिमी दरवाजे की दूरी 250 फीट से ज्यादा है. किरणोत्सव के दोनों अवसरों पर परिसर की बत्तियां बुझा दी जाती हैं. महाराष्ट्र की उत्सव परंपरा में कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर झिलमिलाती कड़ी है.

किरणोत्सव की वजह

महालक्ष्मी का मुख पश्चिम में है, मुख्यद्वार 500 फीट दूर है. साल में दो बार उत्तरायण और दक्षिणायन में सूर्यास्त के वक्त सूर्य विशेष स्थिति में आता है, तब किरणें मुख्यद्वार से होती हुई महालक्ष्मी पर पड़ती है. 5 मिनट के किरणोत्सव को देखने हजारों लोग जुटते हैं.

महालक्ष्मी मंदिर के बारे में एक ऐसा दावा किया जाता है जिसे अभी तक विज्ञान भी चैलेंज नहीं कर पाया है. इस मंदिर की चारों दिशाओं में एक-एक दरवाज़ा मौजूद है और मंदिर प्रशासन का दावा है कि मंदिर में ठीक-ठीक कितने खंभे मौजूद हैं इसे आज तक कोई नहीं गिन पाया.

नवरात्रि पर भी होती है दिवाली जैसी रौनक

  • नवरात्रि में यहां हर दिन देवी पालकी में बाहर आकर पूरे परिसर में भ्रमण करती हैं.
  • नवरात्रि की पंचमी के दिन महालक्ष्मी स्वर्ण पालकी में सवार होकर सात किलोमीटर दूर त्रंबोली माताजी से मिलने जाती हैं.
  • आमदिनों में सुबह चार बजे से ही महालक्ष्मी के नियमित दर्शन शुरू हो जाते हैं.
  • दूर-दूर से आए लोगों की कतार बाहर तक खड़ी दिखाई पड़ती है.
  • साढ़े आठ बजते ही देवी को स्नान कराया जाता है. फिर पुरोहित उनके शृंगार में जुट जाते हैं. दर्शन का क्रम जारी रहता है.
  • साढ़े ग्यारह बजे तक उनके दूसरे स्नान की बारी आती है और एक बार फिर देवी नए रूप में सजी-संवरी होती हैं. कभी पैठणी, कभी कांजीवरम और कभी पेशवाई रंगीन साड़ियों में सजी-धजी.

बेशकीमती खजाना भी छिपा है मंदिर में

  • करीब 6 साल पहले जब इसे खोला गया तो मंदिर से हजारों साल पुराने सोने, चांदी और हीरों के ऐसे आभूषण सामने आए जिसकी बाजार में कीमत अरबों रुपए में हैं.
  • इतिहासकारों की माने तो कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर में कोंकण के राजाओं, चालुक्य राजाओं, आदिल शाह, शिवाजी और उनकी मां जीजाबाई तक ने चढ़ावा चढ़ाया है.
  •  जब मंदिर के खजाने की गिनती शुरू हुई तो इसकी पूरी कीमत का अंदाजा लगाने के लिए करीब 10 दिन का वक़्त लग गया. मंदिर के इस खजाने का बीमा भी कराया गया है. हालांकि ये बीमा कितनी कीमत का है इसका खुलासा मंदिर ट्रस्ट ने नहीं किया है.
  •  इससे पहले मंदिर के खजाने को साल 1962 में खोला गया था.

1800 साल पुराना है मंदिर

  • मंदिर के बाहर मौजूद एक शिलालेख और इतिहासकारों के मुताबिक ये मंदिर 1800 साल पुराना है.
  • लोगों की मान्यता के मुताबिक, शालि वाहन घराने के राजा कर्णदेव ने इसका निर्माण करवाया था. बाद में जब ये मंदिर खूब प्रसिद्द हो गया तो इसके आंगन में करीब 35 और छोटे-छोटे मंदिरों का निर्माण कराया गया.
  • करीब 27 हजार वर्गफुट में फैला यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में शुमार है.
  • आदि गुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर में देवी महालक्ष्मी की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की थी.
  • इस मंदिर के नक्काशियों वाले खंभे खूब प्रसिद्द हैं लेकिन कहा जाता है कि इन्हें आज तक कोई भी नहीं गिन पाया.
  • मंदिर प्रशासन का कहना है कि कई बार लोगों ने इन्हें गिनने की कोशिश की लेकिन जिसने भी ऐसा किया उसके साथ अनहोनी घटना देखने को मिली.

मूर्ति 2000 साल से ज्यादा पुरानी

  • महालक्ष्मी की दो फीट नौ इंच ऊंची मूर्ति 2000 साल से ज्यादा पुरानी बताई जाती है.
  • मूर्ति में महालक्ष्मी की 4 भुजाएं हैं.
  • इनमें महालक्ष्मी मेतलवार, गदा, ढाल आदि शस्त्र हैं.
  • मस्तक पर शिवलिंग, नाग और पीछे शेर है.
  • घर्षण की वजह से नुकसान न हो इसलिए चार साल पहले औरंगाबाद के पुरातत्व विभाग ने मूर्ति पर रासायनिक प्रक्रिया की है.
  • 1955 में भी यह रासायनिक लेप लगाया गया था.
  •  महालक्ष्मी की पालकी सोने की है. इसमें 26 किलो सोना लगा है.
  • हर नवरात्रि के उत्सव काल में माता जी की शोभा यात्रा कोल्हापुर शहर में निकाली जाती है.

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कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर सदियों की हुई उथल-पुथल में भी बचा रहा. यहां कई शासक आए और गए, लेकिन 1300 साल पुराने इस मंदिर में पूजा की परंपरा हमेशा कायम रही. मंदिर की साप्ताहिक पूजा में 54 पुरोहित परिवार शामिल रहे हैं. इनमें से एक परिवार के सदस्य योगेश पुजारी कहते हैं कि महालक्ष्मी की प्रतिमा मंदिर के निर्माण से भी पहले की है. तभी से यहां पूजा की अटूट परंपरा है. मूल मंदिर का निर्माण 7वीं सदी के चालुक्य शासक कर्णदेव ने करवाया था.

  • 11 वीं सदी में कोल्हापुर के शिलाहार राजवंश के समय मंदिर का विस्तार हुआ.
  • शिलाहार वंश के राजा कर्नाटक में कल्याण चालुक्यों के मातहत कोल्हापुर में शासन करते थे.
  • मंदिर के आसपास शिलाहार राजवंश के अलावा देवगिरि के प्रसिद्ध यादव राजवंश के भी शिलालेख मिले हैं.
  • तेरहवीं सदी तक शिलाहार वंश का राज चला, लेकिन बाद में देवगिरि के यादवों ने उनका अध्याय खत्म कर दिया.
  • कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर बीच की सदियों में हुई उथल-पुथल के दौरान भी बचा रहा.
  • 1715 में विजयादशमी के दिन इसकी पुन:स्थापना का उल्लेख है.
  • देवगिरि में यादवों के पराभव के बाद एक अंधायुग है, लेकिन बाद में छत्रपति शिवाजी के उदय ने पुरातन परंपराओं और स्थापत्य को एक नया जीवन दिया.
  • कई प्राचीन स्मारक खंडित होने से बचे रहे. पूजा प्रथाएं भी कायम रहीं.
  • कोल्हापुर में छत्रपति शिवाजी के वंशज आज भी हैं.
  • महालक्ष्मी मंदिर के पास भव्य राजबाड़ा उन्हीं का स्थान है. संभाजी राजे शिवाजी की वंश परंपरा में यहां की एक सम्माननीय हस्ती हैं.
  • महालक्ष्मी मंदिर से उनकी पीढ़ियों के संबंध हैं.
  • छत्रपति के रिकॉर्ड में महालक्ष्मी को अंबाबाई देवघर कहा जाता है.
  • 1955 तक प्राचीन मंदिर छत्रपति परिवार के ही मातहत था, अब सरकार के पास है.