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जो बाइडेन को क्यों खटकते हैं इमरान खान? पाकिस्तान से US की नाराजगी के टॉप-8 कारण

इमरान खान ( Imran Khan) ने सनसनीखेज बयान दिया है कि कुछ विदेशी ताकतें नहीं चाहतीं कि वे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहें. विपक्षी दलों ने बयान को सहानुभूति बटोरने का हथकंडा करार दिया है.

Updated on: 01 Apr 2022, 12:37 PM

highlights

  • पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने नया शिगूफा छोड़ा है
  • इमरान खान 18 अगस्त 2018 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने
  • कंगाली से जूझते पाकिस्तान को फौरन माली मदद की जरूरत

New Delhi:

पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ( No confidence motion against Imran Khan Government ) ने कुर्सी खिसकती तय मानकर नया शिगूफा छोड़ा है. इमरान खान ने सनसनीखेज बयान दिया है कि कुछ विदेशी ताकतें नहीं चाहतीं कि वे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहें. विपक्षी दलों ने बयान को सहानुभूति बटोरने का हथकंडा करार दिया है. पाकिस्तान की प्रमुख विपक्षी पार्टी PML-N के नेता शाहबाज शरीफ ने पूछा कि इमरान खान बताएं कि कौन सा मुल्क उन्हें सत्ता से हटाना चाहता है या फिर लोगों को बरगलाना बंद करें. विपक्ष के बाद समर्थकों ने भी इमरान खान को पीएम पद से हटाने की कोशिश करने वाली विदेशी ताकत के बारे में जाने की दिलचस्पी जाहिर की.

आखिर कौन सा देश है जो इमरान खान को लेकर ऐसा चाहता है? सवाल के जोर पकड़ने पर दबाव में आए इमरान खान मीडिया में सीक्रेट लेटर को दिखाकर उसे अंतरराष्ट्रीय साजिश बताया. उन्होंने बताया कि ये चिट्ठी पाकिस्तानी डिप्लोमैट ने विदेशी अधिकारी को लिखी थी. बाद में खुलासा हुआ कि इमरान खान की ओर से पेश किया गया लेटर दरअसल एक डिप्लोमैटिक केबल है. इस केबल को अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत असद मजिद खान ने पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय को भेजा है. ये केबल असद मजिद खान और एक ताकतवर देश अमेरिका के सीनियर अधिकारी के बीच बातचीत का हिस्सा है.

रूस-यूक्रेन युद्ध और इमरान के दौरे से जुड़ी बातचीत

रिपोर्ट के मुताबिक केबल के अनुसार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की विदेश नीति खासकर उनकी हालिया रूस यात्रा और यूक्रेन युद्ध पर नीति से दिक्कत थी. अमेरिका के इस अधिकारी ने पाकिस्तानी अधिकारी को कहा था कि अगर अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ इमरान खान जीत जाते हैं यानी उनकी सरकार बरकरार रह जाती है तो पाकिस्तान के लिए इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं. विदेश मंत्री डोनाल्ड लू के साथ अपनी बैठक के आधार पर ये केबल भेजा था. इसके बाद चर्चा ने जोर पकड़ ली कि क्या अमेरिका पाकिस्तान में इमरान खान सरकार को अपदस्थ करना या करवाना चाहता है? 

पत्र भेजने से अमेरिकी विदेश विभाग का इनकार

अमेरिका की ओर से इस बारे में तुरंत सफाई सामने आई थी. अमेरिकी विदेश विभाग ने बुधवार को कहा कि किसी भी अमेरिकी सरकारी एजेंसी या अधिकारी ने पाकिस्तान की मौजूदा राजनीतिक स्थिति पर पाकिस्तान को पत्र नहीं भेजा है. दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक संबंधों के जानकारों के मुताबिक बताया जा रहा है कि अमेरिका में जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही पाकिस्तान से संबंध सामान्य नहीं रह गए हैं. आइए, इसके कुछ प्रमुख कारणों पर विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं.

चीन के इशारे पर डेमोक्रेसी समिट में नहीं गया पाकिस्तान

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ पाकिस्तान के पीएम इमरान खान के कमजोर संबंधों का हालिया वाकया इस साल की शुरुआत यानी जनवरी में हुई डेमोक्रेसी समिट में देखने को मिला. कूटनीतिक हलकों में माना जाता हैकि जो बाइडेन ने चीन के खिलाफ इस समिट का आयोजन किया था. इस समिट में पाकिस्तान को भी बुलाया गया था. पाकिस्तान ने चीन से रिश्तों को तवज्जो देते हुए इस समिट में आने से इनकार कर दिया. पाकिस्तान ने कहा कि वो मौका आने पर अमेरिका से लोकतंत्र पर बातचीत कर लेगा. पाकिस्तान की इस हरकत ने अमेरिका को चौंका दिया.

अफगानिस्तान को लेकर अमेरिका-पाकिस्तान में कड़वाहट

दक्षिण एशिया की राजनीति 15 अगस्त 2021 के बाद बड़ी तेजी से बदली है. तालिबान ने इसी दिन अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था. इसके साथ ही अफगानिस्तान से अमेरिका की विदाई का रास्ता साफ हो गया. 31 अगस्त को अमेरिकी सेनाओं ने अफगानिस्तान छोड़ दिया. इससे अमेरिका के लिए पाकिस्तान का रणनीतिक महत्व कम हो गया. इकोनॉमी के मोर्चेपर लगातार पिछड़ रहा पाकिस्तान अमेरिका के लिए फिलहाल न तो एक लुभाऊ बिजनेस पार्टनर था और न ही रणनीतिक और सैन्य साझेदार. इसके पहले पाकिस्तान ने 9/11 के बाद लड़ाई में अमेरिका के लिए सारे द्वार खोल दिए थे. तब इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नहीं थे.

अफगानिस्तान में इमरान ने नहीं की अमेरिका की मदद

अमेरिका को अफगानिस्तान से जाने के बाद भी पाकिस्तान से काफी उम्मीदें थीं. अमेरिका चाहता था कि अफगानिस्तान में उनकी पसंद की सरकार बनवाने में पाकिस्तान मदद करे. पाकिस्तान ने यहां भी अपने कदम पीछे खींच लिए. पाकिस्तान के सैन्य विशेषज्ञ मोइद पीरजादा के मुताबिक अमेरिका उम्मीद करता था कि पाकिस्तान उसे अपने पसंद की हुकूमत बनाने में मदद करेगा, ताकि वहां राजनीतिक बदलाव न आने पाए, या बदलाव आए भी तो अमेरिका की पसंद के मुताबिक हो. ऐसा नहीं होने से अमेरिकी प्रशासन में असंतोष है. अमेरिका ईरान की निगरानी करने के लिए भी अफगानिस्तान में पसंद की सरकार बनवाना चाहता था. इस बीच बतौर अमेरिकी राष्ट्रपति दिसंबर-जनवरी में जो बाइडेन आ गए. बाइडेन प्रशासन को इमरान का कोई महत्व समझ में नहीं आया. उन्होंने पाकिस्तान के पीएम को भाव देना बंद कर दिया. यहां तक कि  बाइडेन से एक अदद फोन के लिए इमरान खान तरसते रह गए.

पाकिस्तान में 4 साल से नहीं है स्थायी अमेरिकी राजदूत 

इमरान खान 18 अगस्त 2018 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने. तब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति थे. वे इमरान खान से बातचीत करतेर हे. मोइद पीरजादा बताते हैं कि बाइडेन सांस्थानिक कैरेक्टर के व्यक्ति हैं. उन्हें प्रशासन का अनुभव है. साथ ही उन्हें पाकिस्तान के इतिहास की जानकारी है. बाइडेन ने इमरान से बातचीत करने से ही इनकार कर दिया. लिहाजा इमरान-बाइडेन के बीच सामान्य संबंध विकसित नहीं हो सके. हालात ये है कि अमेरिका ने अबतक पाकिस्तान में अपना स्थायी राजदूत नहीं नियुक्त किया है.

पाकिस्तान में अमेरिकी सैन्य बेस पर इमरान की बदली जुबान

पाकिस्तान में इमरान खान भी स्वतंत्र विदेश नीति विकसित करने में लगे रहे. उन्होंने हर बात पर अमेरिका से निर्देश लेने से साफ इनकार कर दिया. जून 2021 में अमेरिका चाहता था कि पाकिस्तान अफगानिस्तान में नजर रखने के लिए अपने सैन्य बेस का इस्तेमाल करने की इजाजत दे. इमरान ने इससे इनकार कर दिया. इमरान का रूखा इनकार अमेरिका को नाराज करने के लिए काफी था. इससे पहले आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर सहयोग के बहाने पाकिस्तान अमेरिका से लाखों-करोड़ों डॉलर ले चुका था. इसके बावजूद पाकिस्तान की बदली जुबान अब अमेरिका को खटकने लगी थी.

इमरान खान की बीजिंग विंटर ओलंपिक में मौजूदगी

इस साल फरवरी में हुए बिजिंग विंटर ओलंपिक खेलों का अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों ने बहिष्कार किया था. भारत भी इन खेलों के उद्घाटन समारोह में शामिल नहीं हुआ था. इससे उलट पाकिस्तान अपने ऑल टाइम वेदर फ्रेंड चीन को खुश करने के लिए न सिर्फ इस आयोजन में बढ़-चढ़कर पहुंचा बल्कि खुद पीएम इमरान खान भी चीन जाकर इसमें शामिल हुए. इस बात ने भी अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों को पलीता लगाया. 

यूक्रेन पर रूसी हमले के पहले पुतिन के मेहमान बने इमरान 

अमेरिकी डॉलर की लालच के बावजूद इमरान खान अमेरिका को पाकिस्तान की अहमियत का एहसास भी कराते रहना चाहते थे. अमेरिका के खिलाफ अड़ने की वजह से पाकिस्तान का खजाना खाली गया था. चीन की गोद में बैठे और कंगाली से जूझते पाकिस्तान को फौरन माली मदद की जरूरत थी. चीन से उनकी जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही थीं. CPEC का काम बहुत धीमा हो गया है. इमरान खान ने रूस से भी नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दीं. पुतिन का विश्वास जीतने के लिए तो इमरान खान ने हद पार कर दी. 24 फरवरी 2022 को पुतिन ने दुनिया के सामने यूक्रेन पर अपना सैन्य ऑपरेशन शुरू कर दिया. 

इमरान खान इस दौरान मॉस्को के एक लग्जरी होटल में ब्रेकफास्ट कर रहे थे. अमेरिका के सहयोगी यूक्रेन पर हमले के वक्त इमरान खान रूस की यात्रा पर थे. पाकिस्तान नेइस दौरे पर बयान जारी करते हुए कहा कि 20 साल बाद इमरान खान का ये दौरा पाकिस्तान-रूस द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए और विविध क्षेत्रों में पारस्परिक सहयोग बढ़ाने के लिए है. ये तस्वीरें और बयान अमेरिका और बाइडेन को चिढ़ाने के लिए काफी था.

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रूस-यूक्रेन युद्ध पर UN में अमेरिका से अलग रुख

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अमेरिका के खिलाफ यहीं नहीं रूके. यूक्रेन मसले पर संयुक्त राष्ट्र महासभा में आए प्रस्ताव में रूस की आलोचना करने से भी पाकिस्तान ने इनकार कर दिया. अमेरिका समेत 22 यूरोपीय देशों ने पाकिस्तान से पत्र लिखकर अपील की कि वो इस मसले पर रूस की निंदा करे और उसके खिलाफ वोट डाले. इमरान सरकार ने इस पत्र को लीक कर दिया. उसने UNGA में रूस की निंदा करने से इनकार कर दिया. UNGA में इस मसले पर हुई वोटिंग में पाकिस्तान ने हिस्सा ही नहीं लिया. इसके जवाब में इमरान खान ने भारत की विदेश नीति की तारीफ की थी और कहा था कि ऐसा करने के लिए भारत पर कोई दबाव नहीं डालता है. दूसरी ओर इसके लिए पाकिस्तान को चिट्ठी लिखी जाती है.