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लड़कियों के लिए बढ़ेगी शादी की न्यूनतम उम्र, संबंध-विवाह और लिव-इन से जुड़े FAQs 

प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त 2020 को लाल किले पर भाषण में इस प्रस्ताव का ऐलान किया था. उन्होने कहा था कि सरकार बेटियों और बहनों के स्वास्थ्य को लेकर हमेशा से चिंतित रही है. बेटियों को कुपोषण से बचाने के लिए ये जरूरी है कि उनकी सही उम्र में हो.

Updated on: 21 Dec 2021, 10:06 AM

highlights

  •  मातृ मृत्यु दर को कम करना और महिलाओं के पोषण स्तर में सुधार भी मकसद
  •  बेटियों को कुपोषण से बचाने के लिए जरूरी है कि उनकी शादी सही उम्र में हो
  • महिलाओं के लिए ऊंची शिक्षा हासिल करने और करियर बनाने के अवसर भी बढ़ेंगे

New Delhi:

केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को देश की लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र को 18 से बढ़ाकर 21 साल करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2020 को लाल किले पर अपने भाषण में इस प्रस्ताव के बारे में ऐलान किया था. उन्होने कहा था कि सरकार बेटियों और बहनों के स्वास्थ्य को लेकर हमेशा से चिंतित रही है. बेटियों को कुपोषण से बचाने के लिए ये जरूरी है कि उनकी शादी सही उम्र में हो. स्वतंत्रता दिवस भाषण के बाद पीएम मोदी की कैबिनेट ने डेढ़ साल से पहले इस प्रस्ताव को मंजूरी देकर अमली जामा पहनाने की गति तेज कर दी है. 

पीएम मोदी के भाषण के बाद लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने के मामले में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2020-21 के अपने बजट भाषण में टास्क फोर्स गठित किए जाने के बारे में जानकारी दी थी. उन्होंने इस बारे में कहा था कि लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने के हालिया प्रस्ताव की वजह बताते हुए कहा था कि अब जबकि भारत और तरक्की कर रहा है, तो महिलाओं के लिए ऊंची शिक्षा हासिल करने और करियर बनाने के अवसर भी बढ़ गए हैं. साथ ही इस फैसले का मकसद कम उम्र में शादी से मातृ मृत्यु दर के बढ़ने के खतरे को कम करना और महिलाओं के पोषण स्तर में सुधार करना भी है. सीतारमण ने कहा था कि इस पूरे प्रस्ताव को एक लड़की के मां बनने की उम्र में प्रवेश के नजरिए से देखा जाना चाहिए. इससे पहले 1978 में शारदा एक्ट 1929 में बदलाव करते हुए महिलाओं की शादी की उम्र 15 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष की गई थी. 

टास्क फोर्स और नीति आयोग की मेहनत

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण से पहले केंद्रीय टास्ट फोर्स ने अपनी सिफारिश दिसंबर 2020 में नीति आयोग को सौंपी थी. इस टास्क फोर्स का नेतृत्व अध्यक्ष जया जेटली कर रही थीं. महिला और बाल विकास मंत्रालय की ओर से जून 2020 में गठित इस टास्क फोर्स में नीति आयोग के डॉ वी के पॉल और महिला और बाल विकास, स्वास्थ्य और शिक्षा मंत्रालयों के सचिव और विधायी विभाग भी शामिल थे. मातृत्व की उम्र से संबंधित, MMR (मातृ मृत्यु दर) को कम करने की अनिवार्यता, पोषण स्तर में सुधार और संबंधित मुद्दों से संबंधित मामलों के लिए टास्क फोर्स का गठन किया गया था. टास्क फोर्स ने इस विषय को लेकर 16 यूनिवर्सिटी, 15 एनजीओ, हजारों युवाओं, पिछड़े तबको और सभी धर्मों और शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों से समान रूप से फीडबैक लिया था. टास्क फोर्स की सिफारिश और नीति आयोग की समीक्षा के बाद ही लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र को बढ़ाकर 21 वर्ष किए जाने का प्रस्ताव केंद्रीय कैबिनेट के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था.

किन कानूनों में करना होगा जरूरी संशोधन

देश में मौजूदा कानून के मुताबिक लड़कों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष और लड़कियों के लिए 18 वर्ष तय है. प्रस्ताव के मुताबिक अब लड़कियों के लिए यह उम्र तीन साल बढ़ाकर 21 वर्ष कर दी जाएगी. कानून में बदलाव के बाद महिला और पुरुष दोनों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष यानी बराबर हो जाएगी. प्रस्ताव के मुताबिक सरकार लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने के लिए हिंदू मैरिज ऐक्ट, 1955 के सेक्शन 5 (iii), स्पेशल मैरिज ऐक्ट, 1954 और बाल विवाह निषेध ऐक्ट, 2006 में बदलाव करेगी. इन तीनों में ही सहमति से महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष और पुरुषों के लिए 21 वर्ष होने का प्रावधान है. इसके अलावा एक अहम सवाल है कि सरकार बाल विवाह निषेध कानून , स्पेशल मैरिज एक्ट और हिन्दू मैरिज एक्ट में तो संशोधन की बात कर रही है, लेकिन क्या विवाह की न्यूनतम उम्र की सीमा मुस्लिमों पर भी लागू होगी, जहां लड़कियों को महज रजस्वला (Puberty) की उम्र होने पर ही शादी की इजाजत है. हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में याचिका दायर करने वाले वकील अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि अगर कानून में मुस्लिम महिलाओं को शामिल नहीं किया जाता, तो फिर लैंगिक असमानता को दूर करने का उद्देश्य ही असफल हो जाएगा.

कानून और व्यवहार से जुड़े सवाल-जवाब

इन सब बहसों के अलावा देश और समाज में कानून और व्यवहारिक मुद्दों को लेकर कई सवाल सामने आने लगे हैं. इनमें पुरुष या लड़की की शादी की न्यूनतम उम्र, लिव इन रिलेशन, पहले और बाद के उम्र के बीच में हुई शादी, सहमति से शारीरिक संबंध की न्यूनतम उम्र, रेप के चार्ज, बाल विवाह, शादी की कानूनी वैधता या स्वीकृति, विभिन्न समुदायों में शादी के अलग नियम, मुस्लिम पर्सलन लॉ वगैरह को लेकर सवाल, जिज्ञासा या उलझनें सामने आनमे लगी हैं. इनमें से कुछ अहम सवालों पर जानकारों के विचारों को संक्षेप में जानते हैं.

सवाल - क्या कोई 18 साल से अधिक और  21 साल से कम उम्र की उम्र की लड़की शादी नहीं कर पाएगी? 

जवाब -  18 साल से अधिक लेकिन 21 साल से कम उम्र में कोई लड़की शादी करेगी तो उसका मामला बाल विवाह के तहत आने का खतरा रहेगा. ऐसे में उसके लिए बालिग होने के बावजूद शादी करना मुश्किल होगा. हालांकि इसे लेकर स्थिति कानून बनने के बाद ही साफ हो पाएगी, मगर ऐसे मामलों के लिए विवाह और बाल विवाह के नियमों को समझना जरूरी है? बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006, के तहत, अगर पुरुष की उम्र 21 वर्ष से कम और लड़की की उम्र 18 वर्ष से कम हो तो उसे बाल विवाह माना जाता है. अगर महिला या पुरुष दोनों में से कोई भी चाइल्ड या बालक है तो उन दोनों के विवाह को बाल विवाह माना जाएगा. कानून के मुताबिक अगर लड़का वयस्क है तो उसके माता-पिता या संरक्षक को महिला के पुनर्विवाह तक भरण पोषण या आवास का आदेश दिया जा सकता है. 

बाल विवाह करवाने वाले, संचालन करने वाला या प्रेरित करने वालों को भी दो साल की सजा या एक लाख रुपए का जुर्माना या दोनों हो सकता है. अगर बाल विवाह होने से बच्चा पैदा हो जाए या महिला गर्भवती हो जाए तो भी शादी अवैध होगी. बाल विवाह से पैदा होने वाले बच्चों के ऐसे बच्चे को धर्मज माना जाएगा. ऐसे में बच्चे के पालन पोषण का आदेश, विवाह के पक्षकार यानी लड़का-लड़की या उनके माता-पिता या संरक्षक को दिया जा सकता है.

(i) अगर लड़का और लड़की दोनों 18 साल से कम उम्र के हैं?

बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006, की धारा 3 के मुताबिक, अगर लड़का और लड़की दोनों नाबालिग यानी 18 साल से कम उम्र के हैं, तो बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के मुताबिक, बाल विवाह को शून्य माना जाएगा.

(ii) अगर लड़का 18 साल से अधिक और लड़की 18 से कम की हो?

अगर लड़का 18 साल से अधिक और लड़की 18 साल से कम है तो भी बाल विवाह होने के कारण इसे शून्य माना जाएगा. ऐसे मामलों में अगर लड़की शिकायत करती है तो लड़के को दो साल की जेल हो सकती है.

(iii) अगर लड़का 21 से अधिक और लड़की 18 से कम की हो?

अगर लड़का 21 साल या उससे अधिक हो यानी शादी की उम्र के कानूनी रूप से योग्य हो लेकिन लड़की 18 साल के कम उम्र की हो, तो इस स्थिति में भी एक के बालक होने की वजह से इसे बाल विवाह ही माना जाएगा और शादी को शून्य माना जाएगा। इस स्थिति में भी लड़की शिकायत करती है तो लड़के को दो साल की जेल हो सकती है.

अपवाद  यानी कोर्ट ने जब बाल विवाह को भी वैध माना 

रिपोर्ट्स पिछले कुछ दशकों में देश में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जब कोर्ट ने अलग-अलग आधार पर बाल विवाह (शादी के लिए नियत उम्र से कम में) हुई शादियों को भी मान्यता दी है. सितंबर 2021 में एक ऐसे ही मामले की सुनवाई के दौरान पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने ये फैसला दिया था कि नाबालिग लड़की के साथ शादी उस स्थिति में कानूनी रूप से वैध होगी, अगर नाबालिग लड़की 18 साल की होने के बाद भी उस शादी को अमान्य घोषित नहीं करती है या ऐसा करने के लिए कोर्ट के पास नहीं जाती है. इसके अलावा अगस्त 2010 में भी दिल्ली हाई कोर्ट ने 18 साल से कम उम्र के लड़के और 16 साल से कम उम्र की लड़की के मामले में भी इन दोनों नाबालिगों की शादी को मान्यता दी थी.

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कोर्ट ने कहा था कि नाबालिग लड़की की शादी तब वैध हो जाएगी, अगर बालिग होने के बाद भी वह उसे अमान्य घोषित नहीं करती है. अगर सीधे शब्दों में समझें तो, भले ही कानून बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाता है, लेकिन यह तब तक वैध माना जाता है, जब तक दुल्हन अपनी शादी को अमान्य घोषित करने के लिए अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाती. यानी अगर कोई लड़की शादी के लिए प्रस्तावित 21 वर्ष से कम और 18 वर्ष से अधिक की होने पर शादी करती है और अगर वह शादी के लिए बालिग (21 वर्ष) होने के बाद भी इसे रद्द करवाने के लिए अपील नहीं करती है, तो उसकी शादी कानूनन वैध होगी.

सवाल - 18 से अधिक और 21 वर्ष से कम उम्र की लड़की अगर सहमति से संबंध बनाएगी या लिव-इन रिलेशन में रहेगी तो क्या होगा?

जवाब - सुप्रीम कोर्ट ने साल 2006 में लता सिंह बनाम स्टेट ऑफ उत्तर प्रदेश मामले में फैसला देते हुए कहा था कि अगर कोई लड़की बालिग है, तो वह अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति से शादी करने या अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति के साथ रहने के लिए स्वतंत्र है. इसके अलावा भी सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों ये टिप्पणी की है कि दो बालिग लोग, जो 18 या उससे अधिक के हों, भले ही शादीशुदा न हों मगर अपनी सहमति से 'लिव-इन पार्टनर' के रूप में एक साथ रह सकते हैं.

सुप्रीम कोर्ट में दो सदस्यों जस्टिस एके सीकरी और अशोक भूषण की बेंच ने 7 मई, 2018 को 19 वर्ष की लड़की और 21 वर्ष के लड़के से जुड़े मामले में आदेश में देते हुए कहा था कि वे दोनों बालिग हैं. यहां तक कि अगर वे शादी की व्यवस्था में शामिल होने के योग्य नहीं भी हैं, तो भी उन्हें शादी के बाहर भी साथ रहने का अधिकार है. पसंद की आजादी लड़की की होगी कि वह किसके साथ रहना चाहती है. लिव-इन रिलेशनशिप को घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के तहत भी मान्यता मिल चुकी है. इन आदेशों, टिप्पणियों और कानूनी नियमों से साफ है कि भले ही लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाकर 21 वर्ष कर दी जाए, लेकिन तब भी किसी लड़की को 18 वर्ष का ( बालिग )पर शादी के बिना भी अपनी सहमति से संबंध बनाने या लिव-इन पार्टनर के रूप में रहने का अधिकार होगा.