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जरूरी है संविधान निर्माताओं के सपने को समझना

आजादी मिलने से अब तक मुल्क में लोकतंत्र दिनों दिन परिपक्व हुआ है. विकास के नए कीर्तिमान स्थापित हुए हैं, लेकिन संविधान साक्षरता और जवाबदेही अभी भी बड़ी चुनौती है.

Updated on: 26 Nov 2020, 10:08 AM

नई दिल्ली:

बात 2015 की है. संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की 125वीं जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद भवन परिसर में “Making of the Constitution by the Constituent Assembly” नाम की प्रदर्शनी का उद्घाटन किया था. इस प्रदर्शनी का मकसद था चुनकर आए सांसदों को संविधान बनने के सफर से रूबरू करवाना. तत्कालीन लोक सभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने इसको सफल बनवाने की थोड़ी जिम्मेदारी मुझे भी सौंपी थी. लिहाजा संविधान निर्माण से जुड़े ढेरों किस्सों का पता चला. इसके अगले ही साल 2016 में संविधान दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संविधान साक्षरता पर जोर दिया. मकसद था देश की युवा पीढ़ी को संविधान की जानकारी देना. लिहाजा लोकसभा स्पीकर की पहल पर एक कार्यक्रम में एंकर करने की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई. इसमें देश के अलग-अलग इलाकों के स्कूलों में छात्र-छात्राओं से संविधान पर सवाल जबाव करने थे. ये अनुभव यादगार रहा और इस सफर के दौरान भी संविधान निर्माण के बारे में काफी कुछ पता भी चल सका.

यह सब बताने की वजह बेहद खास है क्योंकि साल 1949 में आज ही के दिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के संविधान पर मुहर लगी थी. संविधान सभा की 2 साल 11 महीने और 17 दिनों की कड़ी मेहनत से बनकर तैयार हुए भारतीय संविधान पर सहमति बनी थी, जिसके बाद 26 जनवरी 1950 से यह लागू हुआ. समाज को निष्पक्ष न्याय प्रणाली मिली. नागरिकों को मौलिक अधिकारों की आजादी मिली और कर्तव्यों की जिम्मेदारी भी. 

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दरअसल, 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई थी, जबकि आखिरी 26 नवंबर 1949 को. इस संविधान सभा में अलग-अलग प्रकिया से चुनकर आए कुल 299 सदस्य थे. इस दरमियान 165 दिन तक चले संविधान सभा के 11 सत्रों में 114 दिन संविधान के मसौदे पर विचार हुआ. वही मसौदा, जिसे लेकर 29 अगस्त 1947 को बनी कमेटी की अगुवाई कर रहे थे डॉ. बी. आर. आंबेडकर. वैसे संविधान के अलग-अलग पहलूओं को ध्यान में रखकर कुल 17 कमेटियां बनाई गई थीं. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरू, डॉ भीमराव आंबेडकर, जी वी मावलंकर, के एम मुंशी, वल्लभ भाई पटेल, जे बी कृपलानी, गोपीनाथ बोरदोलोई, बीपी सीतारमैया, ए. के. अय्यर, एच. सी. मुखर्जी और ए. वी. ठक्कर इन कमेटियों की अगुवाई कर रहे थे. इनके साथ ही सर बेनेगल राव की भी इस पूरी प्रकिया में अहम भूमिका थी,  लेकिन इतने लंबे वक्त तक चले मंथन के बाद भी संविधान पर मुहर लगना इतना आसान नहीं था. संविधान के मसौदे पर कुल 7635 संशोधन पेश किए गए थे, जिनमें से 2473 संशोधनों पर तो बात बाकायदा काफी आगे तक बढ़ी. 

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भारत की पहचान रहा है लोकतंत्र
यकीनन किसी भी मुल्क के संविधान का निर्माण उस मुल्क के अतीत के आधार पर ही होता है. प्राचीन भारत में वैदिक काल से ही लोकतांत्रिक शासन-प्रणाली मौजूद थीं. ऋग्वेद और अथर्ववेद तक में सभा और समिति का जिक्र मिलता है. कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ और शुक्राचार्य की ‘नीतिसार’ में संविधान की ही झलक मिलती है. 

कैसे बने संविधान निर्माण के हालात?
अंग्रेजी शासन में देखें तो 1857 की क्रांति के दौरान ही भारत में संविधान की मांग उठ चुकी थी. उसी दौरान हरिशचंद्र मुखर्जी ने भारतीय संसद की मांग की थी. इसके बाद 1914 में गोपाल कृष्ण गोखले ने भी संविधान को लेकर अपनी बात रखी. अंग्रेजों ने इसे लेकर अपनी सहमति भी दी, लेकिन बाद में बात नहीं बढ़ सकी. 1922 में महात्मा गांधी ने भारत का संविधान भारतीयों द्वारा बनाने पर जोर दिया. 1928 में मोतीलाल नेहरू इसे लेकर स्वराज रिपोर्ट पेश की. इस बीच 1935 में अंग्रेजों ने "गर्वमेंट ऑफ इंडिया एक्ट" बनाया, जिसे कमजोर करार दिया गया. इसके चलते कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच की दूरियां भी बढ़ीं. इसके करीब 10 साल बाद डॉ. तेजबहादुर सप्रू ने सभी दलों से मिलकर एक संविधान का खाका बनाने की पहल की. 

दूसरे विश्व युद्ध से बदले हालात!
दूसरे विश्व युद्ध में चर्चिल की हार के बाद नई सरकार ने 3 कबीना मंत्री भारत भेजे, जिसे 'कैबिनेट मिशन' का नाम दिया गया, लेकिन कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों के ही विरोध के कारण कैबिनेट मिशन असफल रहा. इस दरमियान मुस्लिम लीग की जिद के कारण देश में बंटवारे की राजनीति और हिंसा को बढ़ावा मिला. इन्हीं सब घटनाक्रमों के बीच आगे चलकर संविधान सभा का गठन हुआ. वरिष्ठतम सदस्य डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा को संविधान सभा का कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष चुने गए. इस संविधान सभा के वजूद और मकसद पर चर्चिल और मुस्लिम लीग समेत बाकियों ने सवाल भी उठाए, लेकिन सभी सवाल बेबुनियाद निकले. संविधान सभा ने गंभीरता और लगन से अपना काम किया और आकार दिया दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के संविधान को, जो दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान भी है.

आजादी मिलने से अब तक मुल्क में लोकतंत्र दिनों दिन परिपक्व हुआ है. विकास के नए कीर्तिमान स्थापित हुए हैं, लेकिन संविधान साक्षरता और जवाबदेही अभी भी बड़ी चुनौती है. जाहिर है संविधान पर मुहर लगने के इतने साल बाद आज इस पड़ाव पर 135 करोड़ आबादी वाले मुल्क और इसके नीति निर्माताओं को अभी भी समझना जरूरी है कि संविधान बनाने वालों ने हमारे लिए आखिर सपना क्या देखा था.?