ISRO चीफ के. सिवन की आस्था पर चोट करने वालों के लिए ही है ये खबर
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ही नहीं बल्कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA), रूसी वैज्ञानिक भी अभियान की सफलता के लिए धार्मिक अनुष्ठान करते हैं.
नई दिल्ली:
चंद्रयान-2 (Chandrayaan 2)अपने मिशन में भले ही 99 फीसद सफल हो गया हो लेकिन पूरा भारत ही नहीं अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) को भी भारतीय वैज्ञानिकों पर गर्व है. वहीं सोशल मीडिया पर कुछ लोग इसरो चीफ के सिवन (K Sivan) की निजी आस्था पर चोट करने से बाज नहीं आ रहे है. विक्रम लैंडर का अपने पाथ से भटक जाने पर कांग्रेस नेता उदित राज (Udit Raj) सिवन की आस्था पर चोट किया था, हालांकि इसके बाद वो जबरदस्त ट्रोल भी हुए. उदित राज (Udit Raj) जैसे लोगों को अगर ईश्वर पर भरोसा नहीं है तो ये उनके लिए ही है.
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टोने टोटके के लिए यूं तो भारत बदनाम है पर अमेरिका और रूस के लोग भी कम नहीं हैं. टोटकों को मानने वाले ये सामान्य लोग नहीं बल्कि NASA और रूस के वैज्ञानिक हैं. चंद्रयान-2 (Chandrayaan 2)को चंद्रमा पर उतारने की पूरी प्रक्रिया में विज्ञान के वरदान के साथ-साथ वैज्ञानिक ईश्वर के भी शरण में थे.
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शायद यही वजह है कि इसरो के किसी अभियान से पहले वैज्ञानिक तमाम तरह के धार्मिक अनुष्ठान और मान्यताओं को पूरा करते हैं. आइए जानें कुछ मान्यताओं और रीति रीवाजों के बारे में जो यह साबित करते हैं कि विज्ञान चाहे जितना तरक्की कर ले, भगवान के आगे वह बौना है..
भगवान वेंकटेश्वर की पूजा
इसरो के प्रमुख वैज्ञानिक किसी भी लांचिंग से पहले आंध्र प्रदेश के तिरुमाला में प्रसिद्ध भगवान वेंकटेश्वर की पूजा करते हैं. वह केवल पूजा ही नहीं करते बल्कि वहां रॉकेट का एक छोटा मॉडल चढ़ाते हैं. अपने मिशन में सफलता के लिए भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ही नहीं बल्कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA), रूसी वैज्ञानिक भी अभियान की सफलता के लिए धार्मिक अनुष्ठान करते हैं. यही नहीं इसरो के सभी मशीनों और यंत्रों पर कुमकुम से त्रिपुंड बना होता है, जैसाकि भगवान शिव के माथे पर दिखता है. परंपराओं के मुताबिक रॉकेट लांचिंग के दिन संबंधित प्रोजेक्ट निदेशक नई शर्ट पहनता है.
13 अंक है अशुभ, मंगलवार को नहीं होती लांचिंग
तमाम अंतरिक्ष एजेंसियां 13 अंक को अशुभ मानती है. चांद की सतर पर उतरने वाले अपोलो -13 की विफलता के बाद अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने उस संख्या के नाम पर किसी अन्य मिशन का नाम नहीं रखा. रॉकेट पीएसएलवी-सी- 12 के बाद इसरो ने रॉकेट पीएसएलवीसी-14 को अपना सारथी बनाया. मंगलवार को नहीं होती लांचिंग आमतौर पर इसरो मंगलवार के दिन किसी रॉकेट को अंतरिक्ष में नहीं भेजता है. हालांकि 450 करोड़ रुपये लागत वाले मार्स ऑर्बिटर मिशन ने मंगलवार को उड़ान भरकर दशकों से चली आ रही इस परंपरा को तोड़ दिया था.
NASA में मूंगफली खाने की प्रथा
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) के वैज्ञानिक भी अजीबोगरीब मान्यताओं के शिकार हैं. NASA वाले जब भी किसी मिशन लांच को लॉन्च करते हैं तो जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी में मूंगफली खाते हैं. इसके पीछे भी अजब कहानी है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार 1960 में रेंजर मिशन 6 बार फेल हुआ. सातवां मिशन सफल हुआ तो कहा गया कि लैब में कोई वैज्ञानिक मूंगफली खा रहा था इसलिए सफलता मिली, तब से मूंगफली खाने की प्रथा चली आ रही है.
अंतरिक्ष में जाने से पहले मूत्र त्याग
रूसी अंतरिक्ष यात्री यान में सवार होने के पहले जो बस उन्हें लांच पैड तक ले जाती है, उसके पिछले दाहिने पहिए पर पेशाब करते हैं. 12 अप्रैल 1961 को जब यूरी गगारिन अंतरिक्ष में जाने वाले थे, तो उन्होंने बीच रास्ते में बस रुकवा कर पिछले दाहिने पहिए पर मूत्र त्याग दिया. उनका मिशन सफल रहा. तब से यह चल रहा है.
यही नहीं अंतरिक्ष में जाने से पहले रूस में अंतरिक्ष यात्रियों के लिए संगीत बजाया जाता है. इसकी शुरुआत भी यूरी गगारिन ने की थी. यहीं नहीं सभी अंतरिक्ष यात्री यूरी गगारिन की गेस्ट बुक में हस्ताक्षर करके यात्रा को निकलते हैं.
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