logo-image

Hyderabad Encounter: ये 6 स्थितियां देती हैं आपको आत्मरक्षा का अधिकार

छह अलग-अलग स्थितियों में आत्मरक्षा के अधिकार के तहत किसी दूसरे की जान लेना अपराध की श्रेणी में नहीं आता.

Updated on: 07 Dec 2019, 01:40 PM

highlights

  • भारतीय क़ानून में कहीं भी पुलिस मुठभेड़ को वैध ठहराने का प्रावधान नहीं.
  • कुछ ऐसे नियम-क़ानून ज़रूर जो पुलिस को अपराधियों पर हमला करने की देते हैं ताकत.
  • छह अलग-अलग स्थितियों में आत्मरक्षा का अधिकार हो जाता है प्रभावी.

New Delhi:

शुक्रवार को हैदराबाद डॉक्टर गैंग रेप के दोषियों के हिरासत से भागने के दौरान पुलिस मुठभेड़ (Hyderabad Justice) में मारे जाने पर देश में बहुसंख्यक वर्ग ने इसका स्वागत किया है. हालांकि एक तबका ऐसा भी है, जो पुलिस मुठभेड़ (Police Encounter) पर सवालिया निशान खड़ा कर रहा है. हालांकि सच तो यह है कि भारतीय कानून व्यवस्था (Indian Laws) पुलिस कर्मियों और आम नागिरकों को किसी दूसरे शख्स की जान लेने के क्रम में सशक्त बनाती है. खासकर यदि ऐसे मामले में जहां बात आत्मरक्षा के अधिकार (Right to Self Defence) की आ जाए. हालांकि संविधान (Constitution) के अनुच्छेद 21 में साफतौर पर कहा गया है कि कानूनी प्रक्रिया के बगैर किसी भी शख्स को जीवन से वंचित नहीं किया जा सकता है. एक लिहाज से देखें तो भारतीय क़ानून में कहीं भी पुलिस मुठभेड़ को वैध (Legal) ठहराने का प्रावधान नहीं है, लेकिन कुछ ऐसे नियम-क़ानून ज़रूर हैं जो पुलिस को यह ताक़त देते हैं कि वह अपराधियों पर हमला कर सकती है और उस दौरान अपराधियों की मौत को सही ठहराया जा सकता है.

यह भी पढ़ेंः विराट पारी पर अमिताभ बच्‍चन ने किया ट्वीट, कितना मारा उसको, कितना मारा, ये आया रिएक्‍शन

सीआरपीसी की धारा 46 में है पुलिस मुठभेड़ का सच
आमतौर पर लगभग सभी तरह की मुठभेड़ों में पुलिस आत्मरक्षा के दौरान हुई कार्रवाई का ज़िक्र ही करती है. कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर (CrPC) की धारा 46 में गिरफ्तारी (Arrest) कैसे होनी चाहिए, इसे विस्तार से समझाया गया है. यह धारा कहती है कि अगर कोई अपराधी ख़ुद को गिरफ़्तार होने से बचाने की कोशिश में ताकत का इस्तेमाल करता है या पुलिस की गिरफ़्त से भागने की कोशिश करता है या पुलिस पर हमला करता है तो इन हालात में संबंधित पुलिस अधिकारी या अन्य शख्स उस अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए हरसंभव तरीके अपना सकता है. सरल शब्दों में इसे कहें तो सीआरपीसी की धारा 46 पुलिस को बल प्रयोग करने का अधिकार देती है. इस दौरान किसी ऐसे अपराधी को गिरफ़्तार करने की कोशिश, जिसने वह अपराध किया हो जिसके लिए उसे मौत (Death Penalty) की सज़ा या आजीवन कारावास (Imprisonment For Life) की सज़ा मिल सकती है, इस कोशिश में अपराधी की मौत हो जाए. हालांकि धारा 46 के उपखंड 3 में आगे कहा गया है, इस अनुच्छेद में ऐसा कोई अधिकार नहीं दिया गया है, जो ऐसे किसी दंडनीय अपराध की श्रेणी में आने वाले अपराध में आरोपी न हो (Not Accused) जिसमें मौत की सजा या उम्रकैद हो सकती है, उसे मार दिया जाए.

यह भी पढ़ेंः उन्नाव रेप केस का विरोध कर रही महिला ने अपनी ही बच्ची पर फेंका पेट्रोल, बच्ची इमरजेंसी में भर्ती

इन स्थितियों में प्रभावी होता है आत्मरक्षा का अधिकार
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के अनुच्छेद 100 ही खाकी वर्दी या आम नागरिक के काम आता है, जिसके तहत छह अलग-अलग स्थितियों में आत्मरक्षा के अधिकार के तहत किसी दूसरे की जान लेना अपराध की श्रेणी में नहीं आता. कानूनी प्रक्रिया के बाद संबंधित शख्स को हत्या का गुनाहगार नहीं ठहराया जा सकता है.

  • कोई ऐसा हमला जिसमें इस डर के यथोचित कारण हों कि इसकी परिणति मौत (Death) होगी.
  • कोई ऐसा हमला जिसमें इस डर के यथोचित कारण हों कि इसकी परिणति गभीर क्षति (Grievous Hurts) होगी.
  • कोई ऐसा हमला जो बलात्कार (Rape) करने की मंशा से किया गया हो.
  • कोई ऐसा हमला जो अप्राकृतिक वासना (Unnatural Lust) के वशीभूत किया गया हो.
  • कोई ऐसा हमला जो अपहरण (Kidnapping) या जबरन भगा ले जाने (Abducting) की मंशा से किया गया हो.
  • कोई ऐसा हमला जो किसी शख्स को गलत तरीके से बंधक (Wrongfully Confining) बनाने की मंशा से प्रेरित हो. बंधक होने की ऐसी अवस्था जिसमें यथोचित कारण हो कि संबंधित शख्स अपनी रिहाई के लिए सक्षम अधिकारियों तक पहुंच न बना सके या ऐसा कोई संसाधन उस वक्त उसके पास उपलब्ध नहीं हो.