Hyderabad Encounter पर उठे सवाल, जाने इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट और NHRC के क्या हैं निर्देश
2014 में खंडपीठ (SC Bench) ने साफ-साफ कहा कि पुलिस मुठभेड़ के दौरान होने वाली मौतों की भी निष्पक्ष, प्रभावी और स्वतंत्र जांच के लिए कुछ नियमों का पालन किया जाना चाहिए.
highlights
- मुठभेड़ों पर सुप्रीम कोर्ट और एनएचआरसी ने भी जारी किए निर्देश.
- हरेक पुलिस मुठभेड़ की न्यायिक जांच है जरूरी.
- हैदराबाद पुलिस मुठभेड़ पर उठ रहे सवालिया निशान.
New Delhi:
हैदराबाद गैंग रेप (Hyderabad Gang Rape) और उसके बाद वेट डॉक्टर (Vet Doctor) को जिंदा फूंकने वाले चारों आरोपियों की पुलिस मुठभेड़ (Police Encounter) में हत्या के बाद पुलिस की कार्यशैली पर सवालिया निशान लग रहे हैं. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने मुठभेड़ का स्वतः संज्ञान लेते हुए जांच की बात कही है, तो पीयूसीएल (PUCL) नामक संस्था ने भी हैदराबाद पुलिस से मुठभेड़ को लेकर चार सवाल दागे हैं. बधाई और शाबाशी के बीच मुठभेड़ के सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंच जाने से हैदराबाद पुलिस कानूनी प्रक्रियाओं में भी उलझती जा रही है. हालांकि एक समय उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में दनादन हुई पुलिस मुठभेड़ों के मद्देनजर सर्वोच्च न्यायालय ने भी कड़े नियम लागू किए थे. इसकी एक बड़ी वजह यही है कि सीआरपीसी या संविधान में पुलिस मुठभेड़ का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है.
यह भी पढ़ेंः बदले की भावना से किया गया न्याय अपना मूल स्वरूप खो देता है, हैदराबाद एनकाउंटर पर बोले CJI
2014 में सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए निर्देश
यही वजह है कि मानवाधिकार संस्थाएं (human Rights Organizations) पुलिस मुठभेड़ में हुई हत्याओं को एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल किलिंग (Extra Judicial Killings) भी करार देती हैं. पुलिस मुठभेड़ खासकर फर्जी मुठभेड़ों को लेकर जब गुहार सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची, तो 23 सितंबर 2014 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice) आरएम लोढा और जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन की बेंच ने एक फ़ैसले के दौरान मुठभेड़ का ज़िक्र किया. इस खंडपीठ (SC Bench) ने साफ-साफ कहा कि पुलिस मुठभेड़ के दौरान होने वाली मौतों की भी निष्पक्ष, प्रभावी और स्वतंत्र जांच के लिए कुछ नियमों का पालन किया जाना चाहिए. एक तरह से सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा था कि इसके लिए पुलिस तय किए गए नियमों का ही पालन करे. आइए जानते हैं कि उस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने किन बातों को अमल में लाने की सख्त ताकीद की थी.
यह भी पढ़ेंः निर्भया केसः आरोपी विनय शर्मा राष्ट्रपति को भेजी दया याचिका लेगा वापस, कही ये बड़ी बात
ये हैं प्रमुख निर्देश
- पुलिस को जब कभी भी किसी तरह की आपराधिक गतिविधि की सूचना मिले, तो वह या तो लिखित में हो, केस डायरी की शक्ल में या फिर किसी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के ज़रिए हो.
- अगर कोई आपराधिक गतिविधि की सूचना मिलती है या फिर पुलिस की तरफ़ से किसी तरह की गोलीबारी की जानकारी मिलती है और उसमें किसी की मृत्यु की सूचना आए, तो इस पर तुरंत प्रभाव से धारा 157 के तहत अदालत में एफ़आईआर दर्ज करनी चाहिए. एफआईआर में किसी भी तरह की देरी नहीं होनी चाहिए.
- मुठभेड़ के पूरे घटनाक्रम की एक स्वतंत्र जांच सीआईडी से या दूसरे पुलिस स्टेशन की टीम से करवानी ज़रूरी है. इस जांच की समग्र प्रक्रिया की निगरानी एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी करेंगे. यह वरिष्ठ पुलिस अधिकारी उस एनकाउंटर में शामिल सबसे उच्च अधिकारी से एक रैंक ऊपर होना चाहिए.
- धारा 176 के तहत पुलिस फ़ायरिंग में हुई हर एक मौत की मजिस्ट्रियल जांच होनी चाहिए. इसकी एक रिपोर्ट न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास भेजना ज़रूरी है.
- जब तक स्वतंत्र जांच में किसी तरह का शक़ पैदा नहीं होता, तब तक एनएचआरसी को जांच में शामिल करना ज़रूरी नहीं है. हालांकि घटनाक्रम की पूरी जानकारी बिना देरी किए एनएचआरसी या राज्य के मानवाधिकार आयोग के पास भेजना आवश्यक है.
यह भी पढ़ेंः हैदराबाद एनकाउंटर के बाद आरोपियों पर दर्ज हुआ एक और मामला
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी दिए दिशा-निर्देश
सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 141 (Article 141) के तहत किसी भी तरह की पुलिस मुठभेड़ में इन सभी नियमों का पालन होना ज़रूरी है. अनुच्छेद 141 भारत के सुप्रीम कोर्ट को कोई नियम या क़ानून बनाने की ताकत देता है. सुप्रीम कोर्ट के पुलिस मुठभेड़ों को लेकर दिए-गए प्रभावी दिशा-निर्देशों के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एमएन वेंकटचलैया ने मार्च 1997 में सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक पत्र लिखा था. इस तरह एनएचआरसी ने भी सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह निर्देशित किया कि वह पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत के लिए तय नियमों का पालन करे. इसके मुताबिक...
- जब किसी पुलिस स्टेशन के इंचार्ज को किसी मुठभेड़ की जानकारी प्राप्त हो, तो वह तुरंत रजिस्टर में दर्ज करे.
- जैसे ही किसी मुठभेड़ में किसी तरह की शंका ज़ाहिर की जाए तो उसकी जांच ज़रूरी है. जांच दूसरे पुलिस स्टेशन की टीम या राज्य की सीआईडी के ज़रिए होनी चाहिए.
- अगर जांच में पुलिस अधिकारी दोषी पाए जाते हैं, तो मारे गए लोगों के परिजनों को उचित मुआवज़ा मिलना चाहिए.
- 12 मई 2010 को भी एनएचआरसी के तत्कालीन अध्यक्ष जस्टिस जीपी माथुर ने कहा था कि पुलिस को किसी की जान लेने का अधिकार नहीं है. अपने इस नोट में एनएचआरसी ने यह भी कहा था कि बहुत से राज्यों में उनके बनाए नियमों का पालन नहीं होता है. इसके बाद एनएचआरसी ने इसमें कुछ और दिशा-निर्देश जोड़ दिए थे.
- जब कभी पुलिस पर किसी तरह के ग़ैर-इरादतन हत्या के आरोप लगे, तो उसके ख़िलाफ़ आईपीसी के तहत मामला दर्ज होना चाहिए. घटना में मारे गए लोगों की तीन महीनें के भीतर मजिस्ट्रेट जांच होनी चाहिए.
- राज्य में पुलिस की कार्रवाई के दौरान हुई मौत के सभी मामलों की रिपोर्ट 48 घंटें के भीतर एनएचआरसी को सौंपनी चाहिए. इसके तीन महीने बाद पुलिस को आयोग के पास एक रिपोर्ट भेजनी ज़रूरी है जिसमें घटना की पूरी जानकारी, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, जांच रिपोर्ट और मजिस्ट्रेट जांच की रिपोर्ट शामिल होनी चाहिए.
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
धर्म-कर्म
-
Rang Panchami 2024: आज या कल कब है रंग पंचमी, पूजा का शुभ मुहूर्त और इसका महत्व जानिए
-
Good Friday 2024: क्यों मनाया जाता है गुड फ्राइडे, जानें ये 5 बड़ी बातें
-
Surya Grahan 2024: सूर्य ग्रहण 2024 किन राशि वालों के लिए होगा लकी
-
Bhavishya Puran Predictions: भविष्य पुराण के अनुसार साल 2024 की बड़ी भविष्यवाणियां