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गोपाल दास 'नीरज': मुसाफिर जिसने कभी रुकना ना जाना, सीखा ना जिसने मुश्किलों में सिर झुकाना

नीरज ने निज के अभावों और पीड़ा को भी गीत में बदल दिया था. युवावस्था के प्रेम की प्रतीति में वे लगभग सारी उम्र खोए रहे और आजीवन प्रेम का संदेश देते रहे.

Updated on: 19 Jul 2020, 01:09 PM

नई दिल्ली:

4 जनवरी 1925 वह स्वर्णिम तारीख थी जब गीतों के राजकुमार कहे जाने वाले गोपाल दास नीरज का जन्म हुआ. गोपालदास नीरज कवि नहीं, चलता-फिरता महाकाव्य कहा जाए तो गलत नहीं होगा. उम्र के 93 बरसों में उन्होंने अपनी लेखनी से साहित्यजगत, फिल्मजगत और काव्यमंचों पर एक अलग मिसाल बनाई. प्राणों और सांसों में बस जाने वाले गीतों के रचयिता गोपालदास नीरज की यह दूसरी पुण्‍यतिथि है. दो साल पहले उनके अवसान से हिंदी गीत की एक बड़ी परंपरा का अवसान हो गया. गोपाल सिंह नेपाली, बच्चन और दिनकर के बाद वे हिंदी पट्टी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि थे, जिन्हें जितने चाव से पढ़ा और गुनगुनाया जाता था, उतने ही चाव से सुना जाता था. पहली बार उनके गीतों में जीवन, प्रेम, मृत्यु, अवसान, अस्तित्व और मनुष्य की सांसारिक अर्थवत्ता को बड़ी ही मार्मिकता से उठाया गया. नीरज ने निज के अभावों और पीड़ा को भी गीत में बदल दिया था. युवावस्था के प्रेम की प्रतीति में वे लगभग सारी उम्र खोए रहे और आजीवन प्रेम का संदेश देते रहे. मंच पर हमेशा उनकी बादशाहत कायम रही.

भाईचारे की सोच
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए, जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए..., नीरज के गीतों, गजलों और कविताओं में न सिर्फ प्यार और भाईचारे की सोच थी, बल्कि समाज को आईना दिखाती तस्वीर भी छिपी रहती थी. पद्मभूषण से सम्मानित साहित्यकार गीतकार, लेखक कवि गोपाल दास नीरज भले ही दूर चले गए हैं पर वो अपने पीछे अपनी अनमोल यादों को छोड़ गए हैं. नीरज ने सैकड़ों गीत लिखे और उन गीतों का जादू लोगों के सर चढ़कर बोला. उनकी लिखे ये गीत 'कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे...' और 'ए भाई जरा देख के चलो...' किसकी अजीज नहीं है. इन दोनों ही गीतों में जीवन का दर्शन छिपा है. इसके अलावा दर्जनों गीत जो फिल्मों में न सिर्फ हिट हुए बल्कि लोगों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी.

सपनों का संसार
'फूलों के रंग से दिल की कलम से' पाती लिखते हुए मधुर गीतों को रचने वाले कवि नीरज हमारे मन को भिगोते और पोछते चलते हैं. एक ओर सपनों का संसार है जहां आकांक्षाओं की तितलियां उड़ा करती हैं लाल, हरी, नीली, पीली वहीं दूसरी ओर दुस्समय का काला बादल सब को विलोपित कर देता है. उठकर गिरना, गिरकर उठना हम पल-पल सीखते हैं. वे सत्य, सौन्दर्य और जीवन के कवि हैं, ओज के कवि हैं. भविष्य में झांकने की उनमें सामर्थ्य रही.

मंच में प्राण फूंकने की क्षमता
गोपालदास 'नीरज' उस युग के कवि थे जब मंचों पर बच्चन, रमानाथ अवस्थी, भारतभूषण, बालकवि बैरागी, शिवमंगल सिंह सुमन और वीरेन्द्र मिश्र की आवाज का जादू चलता था. नीरज की आवाज में ऐसी घनीभूत सांद्रता थी, जो सुनने वाले को अपने प्रभामंडल में समेट लेती थी. कवि सम्मेलन का एक या दो दौर पूरा होने के बाद मंच नीरज जैसे कवियों के हवाले हो जाता था जो सुबह तक अपनी कविताओं का सुर बिखेरते थे. आज मंचों पर हंसने हंसाने के सारे नुस्खे मौजूद हैं पर गीतों में प्राणतत्व भरने वाले नीरज जैसे कवि नहीं रहे. वह आलाप खो गया है जिसके लिए नीरज जाने जाते थे. गीतों के लिए जैसी भाषा, जैसे भाव, जैसे शिल्प की जरूरत होती है, नीरज को वह नैसर्गिक रूप से सुलभ था.

पीढ़ियों को कविता के संस्कार
नीरज के गीतों की यही मुद्रा जानी पहचानी है. लगभग सात दशक से कविता और गीतों के मंच पर लोकप्रियता के शिखर पर आरूढ़ नीरज ने जैसे अपने प्राणों, सांसों और संवेदना की रोशनाई से हिंदी कविता को सींचा है. जिस दौर में पाठ्य कवियों और मंचीय कवियों में अधिक भेद न था, बच्चन, दिनकर, बालकृष्ण शर्मा नवीन जैसे कवियों ने अपनी कविताओं से कवि सम्मेलनों के माध्‍यम से लाखों लोगों में जीवन-रस का संचार किया था, एक सुदृढ़ कवि-परंपरा निर्मित की थी, उसी दौर में कवि मंच पर नीरज का अवतरण हुआ. उनकी कविता जैसे अपनी कवि परंपरा से आयत्त जीवन मूल्यों का वहन करती दिखती थी. वे ऐसे कवियों में थे जिन्होंने सदियों की कविता परंपरा में न्यस्त छंद परंपरा का वहन किया जिसने कई पीढ़ियों को कविता के संस्कार दिए हैं.

चुपके-चुपके घर कर गई कविता
उस दौर के कवि सम्मेलनों की परंपरा देखें तो कवि मंचों पर आज के सतही हास्य-व्यंग्य और नकली ओज के कवियों का प्रवेश लगभग निषिद्ध था. इन कवियों की कविताओं में जीवन दर्शन की मिठास थी, भाव और संवेदना का एक समुद्र-सा लहराता था, बोलचाल में निबद्ध कविता सुनने वालों में जीवन का संचार करती थी. नीरज की कविता इसी तरह चुपके चुपके लोगों के जीवन में घर बनाती गयी. बाद के अनेक वषों तक कवि सम्मेलनों की बागडोर आधी रात के बाद अपने हाथ ले लेने वाले नीरज के गीतों से ही सुबह हुआ करती थी.

जीवन की प्रेरणा
नीरज गीतों के राजकुमार और छंदों के बादशाह बने. उनके गीतों से मनुष्य को जीने की प्रेरणा मिलती थी. थके हारे को एक सुकून व विश्रांति और दग्धहृदय व्यक्ति को प्रेम और अनुराग की सच्ची अनुभूति-और-प्रतीति. कहना न होगा कि कविता की मुख्यधारा से प्रीति रखने वाले लाखों लोगों ने नीरज के गीतों से प्रेरणा ली है. नीरज के गीतों से आशिकी के चलते वे कविता के रसिक बने और धीरे धीरे कविता के विपुल सृजन संसार से परिचित हुए.

सुख दुख के गायक...
नीरज के गीतों में मनुष्य की पीड़ा भी है, पीड़ा का बखान भी तो इससे उबरने का मूलमंत्र भी निहित है. उनके गीतों में मनुष्य की वेदना है तो प्रणय की बांसुरी भी सुनाई देती है. लाख जीवन नैराश्य में डूबा हो, नीरज के गीत गुनगुनाते ही आशा की कुमुदिनी खिल उठती है. ‘पीर मेरी, प्यार बन जा’ कह कर उन्होंने मानवीय पीर को स्नेहसिक्त छंदों में बदल दिया है. उनके गीतों में निज की पीर भी है, मैं और तुम के बीच का अनथक एकालाप भी है तथा समूचे जग को संबोधित उदगार भी. आप निराशा में डूबे हैं, प्यार में छले गए हैं, प्रारब्ध ने आपके साथ प्रतिकूल व्यवहार किया है, नीरज के गीत व्यक्ति के मन के घावों पर मरहम का काम करते हैं. वे इस छलनामय जीवन में विश्वास और प्रेरणा का बोध पुनर्जाग्रत करते हैं. वे यह ऐलान करने को कहते हैं कि अब जमाने को खबर कर दो कि नीरज गा रहा है. जैसे कि गाना ही मनुष्यता की प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करना है.

जीवन का दर्शन
बचपन से ही नीरज के गीतों से परिचय हुआ. यद्यपि उनके गीत बोध के स्तर पर सरल न थे, उनमें जीवन की बारीकियां दर्शन के आसान धागों से बुनी गयी प्रतीत होती थीं. हालांकि धीरे धीरे गाते गुनगुनाते उनके गीतों का भाव मन को भाने लगा. उनके अर्थ कुछ कुछ मन में खुलने लगे. नीरज की यही विशेषता है कि कम पढ़े-लिखे व्याक्तिो से लेकर उच्च शिक्षित समुदाय तक उनके गीत जादू की मानिंद असर करते हैं.नीरज के गीतों के साथ कुछ ऐसा ही है. वे लोगों के दुखों से व्यथित होते हैं. जानते हैं कि यह जीवन दुखमय है. किसी को प्यार का अभाव रुलाता है तो किसी को पूँजी का वैभव. किसी को रोटी की किल्लत है तो किसी को अपनों के अपनत्व की. चार आर्यसत्यों के बोध के बाद सिद्धार्थ जैसे बुद्ध बन गए, दुनिया में मान, अपमान, सुख, दुख, आशा, निराशा, हास और रुदन के अंतर्द्वन्द्व को देख नीरज का मन आर्त हो उठा और वह कवि बन गया.

करुणा का गान
कविता दुख की कोख से ही जन्म लेती है. तभी तो आदि कवि की वाणी तो क्रौंच वध के शोक से ही श्लोक में बदल गयी. नीरज का कवि भी प्रारंभ से ही अभावों और गुरबत से होकर गुजरा है. कानपुर में इस कवि को जीवन के जिस यथार्थ का सामना करना पड़ा. पेट की भूख मिटाने के लिए टाइपिस्ट की नौकरी से लेकर सिनेमा की गेटकीपरी तक की नौकरी करनी पड़ी, सो तन की भूख तो धीरे-धीरे मिटती गयी पर मन की भूख गहराती गयी. इसी भूख ने नीरज को वाल्मीकि का वंशज बना दिया. मानवीय दुख को करुणा के गान में बदल देने वाले नीरज ने गए छह-सात दशकों में खूब लिखा है तथा बार बार इस दुख से उबरने का सलीका मनुष्यों को सिखाया है.

प्रेमपथ को ही बुहारा
नीरज अपने रचना संसार में सदैव प्रेम का पथ बुहारते रहे हैं. प्रेम नहीं तो जीवन नहीं. एक गीत में उन्हों ने लिखा है. प्रेम पथ हो न सूना कभी इसलिए. जिस जगह मैं थकूं उस जगह तुम चलो. याद करें तो समकालीन कवियों में ऐसे कवि विरल ही हैं जिन्होंने प्रेम का ऐसा समुज्वल गान किया है. प्रेम की गली कभी सूनी न हो. हमेशा गुलजार रहे. जिस दुनिया में अनुरागमयता होती है, वह दुनिया कितनी सुंदर होती होगी. कवि हमेशा प्रेम के ही गीत गाता है. उन्होंने यह भी कहा कि किसी की जिंदगी में अगर कोई प्यार की कहानी नही है तो वह आदमी नहीं है. इसलिए जिंदगी में प्यार का एक खाता जरूर होना चाहिए. आदमी को आदमी बनाने के लिए/जिंदगी में प्यार की कहानी चाहिए. शायद इसलिए जिसके हृदय में प्यार है उसी के हृदय में करुणा का निवास हो सकता है. जो व्यक्ति दूसरों के दर्द से द्रवित नहीं होता, वह खुदा से बहुत दूर होगा. इसी तरह नीरज ने यह भी कहा कि यदि आंखों में प्यार का रस नहीं तो अमीर से अमीर व्यक्ति भी निर्धन है.

सुख दुख की धूप-छांव
नीरज के जीवन की सुख दुख की धूप-छांव आवाजाही करती रही. अक्सर ऐसा भी हुआ कि कोशिशों के बावजूद सुख ने दरवाजे बंद किए और दुख ने दरवाजे खोल दिए. पर सच्चा कवि वही है जो दुख का भी वैसा ही स्वागत करता है जैसे सुख का. दुख सबको मांजता है. दुख ने सिद्धार्थ को बुद्ध बना दिया, एक जुलाहे को कवि बना दिया. एक लुटेरे को वाल्मीकि बना दिया. दुख साहस की परीक्षा लेता है. दुख की लपटों में जल कर ही व्यक्ति कुंदन बनता है. कोई दुख मनुष्यो के साहस से बड़ा नहीं. वही हारा जो लड़ा नहीं. वे जानते थे भावुकता की इस दुनिया में रत्ती भर भी कीमत नही है. फिर भी यह दुनिया प्रेम में पगी रहे इसके लिए वे प्रतिश्रुत रहे.

करोड़ों साझी प्यार के
मुहब्बत के इस राजदूत ने जीवन में प्यार की खिड़कियां खोले रखने का हर जतन संभव किया है. तभी तो वह गर्व से कहता भी है, 'एक नहीं, दो नहीं, करोड़ों साझी मेरे प्यार में.' वह कहता है, 'आंसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जाएगा. जहां प्रेम का चर्चा होगा, मेरा नाम लिया जाएगा.' नीरज कहते हैं प्रेम को किसी दान, दया या रियायत की जरूरत नहीं है. वह तो स्वयमेव समृद्ध है. यही कारण है कि आप उन्हें भले ही अपराधी मानें, वे हमेशा प्रेम के लिए प्रतिश्रुत रहे हैं. कहा भी है उन्होंने: बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं.
आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं. जीवन चाहे जितना विरस हो जाए, नीरज को उनके गीतों के कारण भुला पाना असंभव है.

https://youtu.be/ZZ5CQ6amkbQ