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सरकार... अगर शहर नहीं छोड़ा तो भूखों मर जाएंगे, सैकड़ों किमी के सफर पर निकले 'कोरोना पीड़ित'

पेशानी पर 'कल क्या होगा' के सवालिया निशान के साथ रोज कमाई के बाद चूल्हा जलाने के आदी इन लोगों में से कई जिंदगी से कदम-ताल करते हुए सैकड़ों किमी दूर अपने घरों की ओर पैदल ही निकल लिए.

Updated on: 26 Mar 2020, 02:13 PM

highlights

  • लॉकडाउन ने दिहाड़ी मजदूरों के सामने पेट भरने का एक गंभीर यक्ष प्रश्न खड़ा कर दिया.
  • जिंदगी से कदम-ताल करते हुए सैकड़ों किमी दूर अपने घरों की ओर पैदल ही निकले.
  • न तो केंद्र और न ही दिल्ली सरकार ने अभी तक ली इन बेबसों की सुध.

नई दिल्ली:

मंगलवार रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने कोरोना वायरस (Corona Virus) से लड़ाई के लिए 21 दिन के लॉकडाउन (Lockdown) की घोषणा कर दी. इसके साथ ही देश भर में ट्रेन-बस सेवा भी ठप कर दी गईं. इसके बाद रात गए तक राशन समेत दैनिक जरूरतों के साज-ओ-सामान की अन्य दुकानों पर भीड़ सी उमड़ आई. हरेक शख्स खाने-पीने का सामान भर लेना चाहता था. यह अलग बात है कि अगले दिन सुबह से ही दिल्ली के बस अड्डों से लेकर रेलवे स्टेशन पर ऐसे लोग भी उमड़े, जो किसी भी सूरत में अपने घर लौटना चाहते थे. ये वे लोग थे, जिन्हें हम-आप दिहाड़ी मजदूर (Daily Wagers) के नाम से जानते हैं. लॉकडाउन की खबर ने इनके सामने परिवार और खुद को पालने का एक गंभीर यक्ष प्रश्न खड़ा कर दिया. पेशानी पर 'कल क्या होगा' के सवालिया निशान के साथ रोज कमाई के बाद चूल्हा जलाने के आदी इन लोगों में से कई जिंदगी से कदम-ताल करते हुए सैकड़ों किमी दूर अपने घरों की ओर पैदल ही निकल लिए.

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शहर नहीं छोड़ेंगे तो भूख मार देगी
पूरा देश इस समय देश कोरोना वायरस से एक अनदेखी जंग में अपने-अपने तरीके से व्यस्त है और पूरे देश में 21 दिन का लॉकडाउन है. ऐसे में उन लोगों के सामने रोटी का संकट खड़ा गया हो गया है, जो रोज कमाकर अपना पेट भरते थे. कोरोना वायरस ज्यादा न फैले इसके लिए सरकार ने लोगों से घर में ही रहने की अपील की है. सड़कों पर सन्नाटा छाया हुआ है. रोमांच की तलाश में निकलने वालों को पुलिस प्रशासन से जुड़े अपने 'तरीके' से समझा रहे हैं. कोरोना वायरस का प्रकोप देख लोग डरे हुए हैं, लेकिन दिल्ली में रहने वाले यूपी के दिहाड़ी मजदूर पैदल ही अपने घर के लिए निकल पड़े. गुरुवार को ही दिल्ली में काम करने वाले कई दिहाड़ी मजदूर उत्तर प्रदेश के अलग अलग जिलों में अपने घरों के लिए दिल्ली-गाजीपुर सीमा से पैदल ही निकल पड़े. इनमें एक महिला ने कहा कि हमारे पास कोई पैसा नहीं बचा है क्योंकि हमें यहां कोई काम नहीं मिल रहा है. हम क्या खाएंगे? अगर हम शहर नहीं छोड़ेंगे, तो हम भूख से मर जाएंगे.

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आली गांव से पैदल ऐटा
गुरुवार को नोएडा के सेक्टर 11 के आली गांव निवासी दिहाड़ी मजदूरी करने वाले मुकेश (बदला नाम) सपरिवार अपने घर ऐटा के लिए पैदल ही रवाना हो गया. उसके साथ पत्नी, भाई और बच्चे थे. न्यूज नेशन के रिपोर्टर ने जब उससे पूछा कि क्या प्रशासन से कोई मदद मिली, तो उसका जवाब इंकार में होता है. देशव्यापी लॉकडाउन और इस कारण रोजगार पर छाए संकेट ने मुकेश जैसे अनगिनत लोगों के मन में तमाम प्रश्न छोड़ दिए हैं, जिनका जवाब पिलहाल सरकार के पास भी नहीं है. इसके पहले आनंद विहार बस अड्डे पर बिहार जाने को भटक रहा एक किशोर मिला था, जो बिलख-बिलख कर रो रहा था. उसके पास खाने तक के पैसे नहीं थे और ट्रेन-बस बंद होने से वह अपने गृह राज्य बिहार नहीं जा पा रहा था.

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10 घंटे में पैदल चल पूरी की 135 किमी यात्रा
इस लिहाज से देखें तो लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूरों पर हुआ है, जो अपना घरवार छोड़कर दूसरे शहरों में काम करते थे. सहारनपुर के रहने वाले अंकित कुमार अपन घर छोड़कर मेरठ में मजदूरी करते थे. लॉकडाउन हुआ तो उनकी रोजी रोटी भी बंद हो गई. जब रोजी रोटी ही नहीं रही तो अंकित ने मेरठ छोड़ अपने घर सहारनपुर लौटने का फैसला किया. लेकिन यातायात के सभी साधन बंद होने के चलते अंकित ने पैदल ही 135 किमी की यात्रा तय की. सहारनपुर पहुंचे अंकित ने बताया कि उन्होंने पूरी रात लगभग 10 घंटे पैदल यात्रा की. उन्होंने कहा, 'मेरठ से 135 किलोमीटर दूर सहारनपुर में मेरा घर है. पिछले कुछ दिनों से कोई आय नहीं हुई और आने वाले महीने में कोई उम्मीद नहीं है क्योंकि लॉकडाउन चल रहा है. ऐसे में मेरे पास मेरठ छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.'

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साइकिल से 800 किमी के सफर पर निकले
देहरादून में मजदूरी करने वाले मूरत लाल को लॉकडाउन के चलते खाने के लाले पड़ गए. इसके चलते वह 800 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के रायबरेली स्थित अपने घर के लिए साइकिल लेकर निकल पड़े. उनके साथ 8 अन्य सदस्य भी हैं, जो साइकिल पर सवार हैं. मूरत लाल ने 100 किमी की दूरी तय कर ली है और हरिद्वार पहुंच चुके हैं. मूरत लाल को अभी 700 किलोमीटर का सफर तय करना अभी बाकी है. मूरत लाल ने बताया, 'हमने पिछले दो दिन में केवल एक बार ही कुछ खाया है. हम रोज कमाकर खाने वाले लोग हैं. हम सभी 8 लोगों के पास मिलाकर 2 हजार रुपये ही हैं. अगर रास्ते में रोका नहीं जाता है तो हमें घर पहुंचने में शायद 5 दिन और लगें, लेकिन अब हम वापस नहीं जा सकते हैं. लॉकडाउन के चलते देहरादून में हमारे लिए कुछ भी नहीं बचा है.'

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विभाजन सा नजारा
अपना राज्य छोड़कर सीमावर्ती राज्यों में काम करने वाले लोग भी लॉकडाउन के असर ने बच नहीं पाए हैं. इन्हीं में से एक हैं मोहम्मद कासिम, जो हरियाणा के पलवल में रहते थे. लॉकडाउन के चलते न उनके पास पैसे बचे और ना काम. इसके बाद मोहम्मद कासिम के साथ पांच अन्य लोगों ने वापस अलीगढ़ लौटने का फैसला किया और 28 घंटे पैदल और लिफ्ट लेकर अपने घर पहुंचे. कासिम ने बताया कि हम लोग सड़क पर घंटों पैदल चले, कभी कोई ट्रक दिखा तो उससे लिफ्ट ले ली, लेकिन ट्रक भी थोड़ी दूरी पर उतार देते थे. ऐसे में हम लोग पैदल और ट्रकों पर सवार होने के 28 घंटों के बाद पलवल (हरियाणा) से अलीगढ़ पहुंचने में कामयाब रहे. इस दौरान हमने बिस्कुट और केले खाए क्योंकि हमारे पास खाना खाने के लिए पैसे नहीं थे.'