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Exclusive: श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर मुगलकाल से रहा विवाद, हर बार मुस्लिम पक्ष को खानी पड़ी मुंह की

उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में श्रीकृष्ण की जन्मस्थली है. अयोध्या राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में फैसले आने के बाद अब अदालत में मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह विवाद को लेकर याचिका दायर की गई थी, लेकिन कोर्ट ने इस याचिका को रद कर दिया है.

Updated on: 07 Oct 2020, 09:58 PM

नई दिल्‍ली:

उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में श्रीकृष्ण की जन्मस्थली है. अयोध्या राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में फैसले आने के बाद अब अदालत में मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह विवाद को लेकर याचिका दायर की गई थी, लेकिन कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया है. आइये जानते हैं कि क्या है यहां का इतिहास...

मुगल बादशाह औरंगजेब ने 31 जुलाई 1658 से लेकर 3 मार्च 1707 तक देश में शासन किया. अपनी कट्टर इस्लामी फितरत के चलते उसने बहुत से मंदिर/हिंदू धार्मिक स्थलों को ध्वस्त करने का आदेश दिया.

1670 में कटरा केशव देव मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान वाले मंदिर को भी ध्वस्त किया गया और ताकत का प्रदर्शन के लिए ईदगाह मस्जिद के नाम से एक इमारत तामीर कर दी गई. औरंगजेब ने ये सारे फरमान जारी किए थे.

याचिकाकर्ता के वकील हरिशंकर जैन ने न्यूज नेशन से बातचीत में बताया कि मेरे पास औरंगजेब के सारे ऐतिहासिक फरमान मौजूद हैं. इस फरमान के मुताबिक, 1670 में मुगल फौज ने मथुरा के केशवराय मंदिर को (जोकि राजा वीर सिंह देव ने 33 लाख की लागत से बनाया था) गिरा दिया गया, उसकी जगह मस्जिद तामीर कर दी गई. यही नहीं, यहां मंदिर में मौजूद मूर्तियों को आगरा ले जाकर बेगम शाही मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दफन कर दिया गया, ताकि नमाज के लिए जाते वक्त लोग उनसे गुजर कर आगे बढ़ सके.

मराठों ने 1770 में गोर्वधन में युद्ध में मुगलों को हरा दिया. युद्ध जीतने के साथ ही मराठों का आगरा और मथुरा पर कब्जा हो गया और उन्होंने वहां से मस्जिद हटाकर दोबारा मंदिर का निर्माण कराया था.

1803 में अंग्रेजों ने पूरे इलाके पर कब्जा कर लिया. उन्होंने 13.37 एकड़ क्षेत्र वाले पूरे कटरा केशव देव को नजूल जमीन घोषित कर दी. 1815 में जमीन की नीलामी हुई और बनारस के राजा पटनीमल ने पूरी जमीन खरीद ली. मुस्लिम पक्ष ने राजा पटनी मल और उनके वंशजों के मालिकाना हक़/कब्जे के खिलाफ कई मुकदमे दायर हुए, लेकिन ये सब खारिज हो गए.

1888 में कटरा केशव देव की पूर्वी साइड को रेलवे के लिए हटाया गया, उसका मुआवजा भी पटनीमल के वंशज राय नर सिंह दास को ही मिला.

1920 में पहली बार ज़मीन के मालिकाना हक़ के लिए मुस्लिम पक्ष ने सिविल सूट दायर किया. ये सिविल सूट नंबर 76 था. सिविल जज ने मौके का मुआयना किया और फैसले में लिखा- यहां लंबे वक्त से हिंदू मंदिर रहा है. पुराने मौजूद मंदिर पर नया मंदिर बनाया गया है. लिहाज़ा मुस्लिम पक्ष का दावा खारिज होता है.

1921 में इसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने जिला जज की अदालत में अर्जी लगाई, लेकिन वहां से उन्हें कोई राहत नहीं मिली. कोर्ट ने हिंदू पक्ष के मालिकाना हक़ पर मुहर लगाई.

1928 में राय किशन दास ने इस शिकायत के साथ कोर्ट का रुख किया कि मुस्लिम पक्ष जबरदस्ती कब्जा करने की कोशिश में है. कोर्ट ने एक बार हिन्दू पक्ष में हक में फैसला दिया.

1935 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसले में कहा कि राजा पटनीमल और उनके वंशज ही कटरा केशव देव की 13.37 एकड़ ज़मीन के हक़दार हैं और मुस्लिम पक्ष का इस ज़मीन के किसी हिस्से पर कोई हक़ नहीं है. साइबर सेक्युरिटी को लेकर जापान के साथ MOU साइन हुआ है.

1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाकर यह तय किया गया कि वहां दोबारा भव्य मंदिर का निर्माण होगा और ट्रस्ट उसका प्रबंधन करेगा.

1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ नाम की नई संस्था का गठन कर दिया गया. कानूनी तौर पर इस संस्था को जमीन पर मालिकाना हक हासिल नहीं था, लेकिन इसने ट्रस्ट के लिए तय सारी भूमिकाएं निभानी शुरू कर दीं. इस संस्था ने 1964 में पूरी जमीन पर नियंत्रण के लिए एक सिविल केस दाखिल किया, लेकिन 1968 में खुद ही मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता कर लिया.