logo-image

कश्मीर में LoC के पास शारदा मंदिर का निर्माण शुरू, PoK स्थित पीठ की Details

हाल में द कश्‍मीर फाइल्‍स ( The Kashmir Files)फिल्‍म रिलीज होने के बाद कश्मीरी पंडितों के सामूहिक नरसंहार और पलायन को लेकर देश भर में सवाल-जवाब तेज हो गए. इस मामले में संसद में भी काफी गहमागहमी रही.

Updated on: 30 Mar 2022, 12:20 PM

highlights

  • शारदापीठ की सदियों पुरानी तीर्थयात्रा को फिर से शुरू करने के लिए किया जाएगा
  • अमरनाथ और मार्तंड सूर्य मंदिर की तरह भारत के लिए श्रद्धा का केंद्र है शारदा पीठ
  • विदेशी आक्रमणों खासकर मुगलों और अफगानों के हमले में मंदिर का काफी नुकसान

New Delhi:

जम्मू कश्मीर के उत्तरी इलाके में तीतवाल नियंत्रण रेखा (LoC) के पास प्राचीन माता शारदा देवी के मंदिर को बनाने का काम शुरू हो गया है. सेवा शारदा कमेटी (SSC) के अधिकारियों के मुताबिक उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में स्थित मंदिर का निर्माण पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में शारदापीठ मंदिर की सदियों पुरानी तीर्थयात्रा को फिर से शुरू करने के लिए किया जाएगा. शारदा यात्रा मंदिर समिति (SYTC) ने कश्मीर में टीटवाल इलाके में एलओसी पर प्राचीन शारदा मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया है. समिति ने भूमि के सीमांकन के बाद दिसंबर 2021 में इस परियोजना की नींव रखी थी.

सेवा शारदा कमेटी के प्रमुख रविंद्र पंडिता ने बताया कि खंडहर में तब्दील मंदिर के पुनर्निर्माण स्थल पर एक पूजा आयोजित की गई. इसमें देश के विभिन्न हिस्सों से कश्मीरी हिंदुओं ने भाग लिया. पूजा में बड़ी संख्या में सिख और दूसरे समुदाय के स्थानीय लोग भी शामिल हुए. इससे पहले शारदा मंदिर की प्लानिंग और मॉडल को पहले ही शृंगेरी दक्षिण मठ की ओर से अनुमोदित किया जा चुका है. शारदा मंदिर में इस्तेमाल होने वाले ग्रेनाइट पत्थरों को कर्नाटक के बिदादी में उकेरा जा रहा है. 

द कश्‍मीर फाइल्‍स फिल्म के बाद संसद में बहस तेज

हाल में द कश्‍मीर फाइल्‍स ( The Kashmir Files)फिल्‍म रिलीज होने के बाद कश्मीरी पंडितों के सामूहिक नरसंहार और पलायन को लेकर देश भर में सवाल-जवाब तेज हो गए. इस मामले में संसद में भी काफी गहमागहमी रही. बीते सप्ताह संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण में राज्‍यसभा में कांग्रेस सांसद विवेक तन्‍खा ने भी चर्चा के दौरान पाकिस्‍तान के कब्‍जे वाले कश्‍मीर (PoK) में स्थित  शारदा पीठ के बारे में एक 'बहुत बड़े स्‍वामी' के हवाले से याद किया. 

सांसद तन्खा ने कहा कि अपने यहां से एक रूट है जो पीओके में जाता है. वहां शारदा पीठ का मंदिर है. ऐसा माइथॉलजी में और सच्‍चाई भी है कि वहां पर आदि शंकराचार्य और उस वक्‍त के बड़े लोगों ने वहां पूजन किया, ध्‍यान किया... और आज वहां की जो मूर्ति है, श्रृंगेरी में रखी गई थी. उन्होंने भारत सरकार से मांग की, 'हम तो चाहते हैं कि आप वो तीर्थयात्रा शुरू कराइए जिससे हम वहां (शारदा पीठ) जा सकें. सरकार इस बारे में सोचे कि क्‍या हम वहां जाने के लिए एक गलियारा बना सकते हैं.' 

लगातार 70 साल से तीर्थयात्रा दोबारा शुरू करवाने की गुहार

कश्मीरी पंडितों की आस्था का प्रतीक शारदा पीठ मंदिर लगभग 5000 साल से ज्यादा पुराना मंदिर माना जाता है. कश्मीरी लोगों खासकर पंडितों समेत देशभर के हिंदुओं के मन में इस मंदिर को लेकर आज भी दर्द दिखता है. शारदा पीठ मंदिर अमरनाथ और अनंतनाग के मार्तंड सूर्य मंदिर की तरह की कश्मीरी पंडितों समेत पूरे भारत के लिए श्रद्धा का केंद्र है. कश्‍मीरी पंडित लगातार भारत और पाकिस्‍तान की सरकारों से शारदा पीठ तक तीर्थयात्रा शुरू करने की गुहार लगाते रहे हैं. आइए, इस मंदिर की प्राचीनता और महत्व के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं.

देशभर के कर्मकांड में किया जाता है श्रद्धापूर्वक स्मरण

शारदा पीठ का मतलब है माता शारदा का स्थान. शारदा देवी माता सरस्वती का ही एक नाम है. इसे कश्मीरी नाम भी बताया जाता है. शारदा पीठ मंदिर का धार्मिक आस्था के साथ ही शैक्षणिक महत्व भी है. भारतीय उपमहाद्वीप के प्रमुख प्राचीन विश्वविद्यालयों में एक शारदा पीठ वर्तमान में पाकिस्तान के कब्जे वाले
कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पास किशनगंगा (नीलम) नदी के तट पर स्थित है. श्रीनगर से लगभग 124 , मुजफ्फराबाद से लगभग 140 और कुपवाड़ा जिला मुख्यालय से इसकी दूरी करीब 30 किलोमीटर है. शारदा देवी मंदिर में पिछले 70 सालों से विधिवत पूजा नहीं हुई है. आज भी देश भर के ब्राह्मण ( पंडित ) कर्मकांड के दौरान शारदा पीठ को नमन करते हैं.

237 ईसा पूर्व में शुरुआती निर्माण के ऐतिहासिक तथ्य

देवी शारदा को कश्मीरा-पुरवासनी भी कहा जाता है. ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक शारदा पीठ मंदिर को महाराज अशोक ने 237 ईसा पूर्व में बनवाया था. अधिकतर इतिहासकारों के अनुसार शारदा पीठ का निर्माण ललितादित्य मुक्तपीड ने शुरू कराया था. कुछ ने इस मंदिर का निर्माण पहली शताब्दी के प्रारंभ में कुषाणों के शासन के दौरान और कुछ इतिहासकारों ने बौद्धों की शारदा क्षेत्र में काफी भागीदारी की बात की, लेकिन शोधकर्ताओं को इस दावे के समर्थन में कोई सबूत नहीं मिले हैं. 

अल-बरूनी, बिल्हण और कल्हण ने भी बताया महत्व

ईरानी इतिहासहार अल-बरूनी ने एक तीर्थस्‍थल के रूप में शारदा पीठ के बारे में लिखा है. उनके विवरण के अनुसार, आठवीं सदी तक शारदा मंदिर प्रमुख तीर्थस्‍थल बन चुका था. 11वीं शताब्‍दी में कश्‍मीरी कवि बिल्हण ने शारदा पीठ के बारे में लिखा. उन्‍होंने कश्‍मीर को शिक्षा का संरक्षक बताया और उसकी ऐसी ख्‍याति के पीछे शारदा पीठ को माना है. कल्‍हण के महाकाव्‍य 'राजतरंगिणी' में भी शारदा पीठ को उपासना के प्रमुख स्‍थल के रूप में जिक्र है. कल्‍हण ने शारदा पीठ के राजनीतिक महत्‍व के बारे में भी लिखा है.

इस्लामिक आक्रमणकारियों ने शारदा पीठ को तोड़ा

14 वीं शताब्दी तक कई बार प्राकृतिक आपदाओं के कारण मंदिर को बहुत क्षति पहुंची. बाद में विदेशी आक्रमणों खासकर मुगलों और अफगानों के हमले में मंदिर का काफी नुकसान हुआ. कुछ प्राचीन वृत्तांतों के अनुसार, मंदिर की ऊंचाई 142 फीट और चौड़ाई 94.6 फीट है. मंदिर की बाहरी दीवारें 6 फीट चौड़ी और 11 फीट लंबी हैं. वृत्त-खंड 8 फीट की ऊंचाई के हैं. अधिकतर ढांचा इस्लामिक कट्टरपंथियों ने बेरहमी से ध्वस्त कर दिया था. इसकी वजह से शारदा पीठ में तीर्थयात्रियों की संख्‍या घट गई. कश्मीर में जब डोगरा शासन शुरू हुआ तो शारदा पीठ के तीर्थयात्रियों की संख्या फिर बढ़ी. इस मंदिर की आखिरी बार मरम्मत 19वीं सदी के महाराजा गुलाब सिंह ने कराई थी. 

भारत विभाजन का दंश और शारदा पीठ की दुर्दशा 

साल 1946 में कुपवाड़ा के स्‍वामी नंदलाल की अगुवाई में आखिरी बार यहां संगठित तौर पर भव्य तीर्थयात्रा का आयोजन किया गया था. साल 1947 में आजादी के साथ ही देश को विभाजन का गहरा घाव लगा. इसके साथ ही शारदा पीठ का भी सबकुछ बदल गया. बंटवार के समय, स्‍वामी नंद लाल ने शारदा पीठ की कुछ प्रतिमाएं घोड़ों पर लदवाकर टिक्‍कर पहुंचा दी. बाद में इनमें से कुछ को बारामूला के देवीबल मंदिर पहुंचाया गया. भारत और पाकिस्‍तान में जंग के दौरान शारदा पीठ पाकिस्‍तान के कब्‍जे में रह गया. बड़ी संख्‍या में कश्‍मीरी पंडितों ने भारतीय जम्‍मू और कश्‍मीर में पलायन किया. नियंत्रण रेखा (LoC) के काफी करीब होने की वजह से यहां आसानी से तीर्थयात्रा की इजाजत नहीं मिलती. मंदिर तक जाने के लिए भारतीयों को नो-ऑब्‍जेक्‍शन सर्टिफिकेट लेना पड़ता है.

आदि शंकराचार्य और रामानुजाचार्य की साधना

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक शारदा पीठ शाक्त संप्रदाय को समर्पित प्रथम तीर्थ स्थल है. कश्मीर स्थित इसी मंदिर में सर्वप्रथम देवी की आराधना शुरू हुई थी. बाद में खीर भवानी और वैष्णो देवी मंदिर की स्थापना हुई. कश्मीरी पंडितों का मानना है कि शारदा पीठ में पूजी जाने वाली मां शारदा तीन शक्तियों का संगम है. पहली शारदा (शिक्षा की देवी) दूसरी सरस्वती (ज्ञान की देवी) और वाग्देवी (वाणी की देवी). विद्या की देवी सरस्वती को समर्पित शारदा पीठ में आदि शंकराचार्य और वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक रामानुजाचार्य ने साधना कर महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की. 14वीं सदी में लिखे गए माधवीय शंकर विजयम में शंकराचार्य की 'सर्वज्ञान पीठम' नाम की परीक्षा का जिक्र है. रामानुजाचार्य ने यही पर श्रीविद्या का भाष्य प्रवर्तित किया था.

ये भी पढ़ें - ICHRRF ने माना कश्मीरी पंडितों का हुआ था नरसंहार, सरकार से भी मानने की मांग

राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण में महाशक्ति पीठ की मिट्टी

पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता सती के देह त्याग के बाद भगवान शिव उनका शव लेकर शोक में डूबे थे और तांडव किया था. उस दौरान माता सती का दाहिना हाथ इस स्थान गिरा था. हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, इसे देवी शक्ति के 18 महाशक्ति पीठों में से एक माना गया है. 

लगभग साढ़े पांच सौ वर्षों के संघर्षों और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अयोध्‍या में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए शारदा पीठ की पवित्र मिट्टी भी मंगाई गई थी. मौजूदा दौर में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर ( PoK ) में चीनी नागरिकों को जाने की इजाजत है. इसलिए चीन के नागरिकता पा चुके भारतीय वेंकटेश रमन हॉन्‍ग कॉन्‍ग के रास्ते से मुजफ्फराबाद पहुंचे. वहां से शारदा पीठ गए जाकर मंदिर के पुजारी से संपर्क किया. इसके बाद मिट्टी लेकर हॉन्‍ग कॉन्‍ग के रास्ते ही वापस दिल्ली लौटे.