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China ने अंततः माना India को दुश्मन नंबर 1, कांग्रेस में दिखाई गलवान झड़प की क्लिप

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं कांग्रेस के पहले ही दिन पूर्वी लद्दाख में 15 जून 2020 को भारतीय सेना और पीएलए जवानों के बीच हुई हिंसक झड़क की क्लिप दिखाई गई. यही नहीं, शी बीजिंग प्रशासन ने चीनियों के समक्ष भारत को नंबर एक दुश्मन बतौर प्रस्तुत किया.

Updated on: 17 Oct 2022, 04:58 PM

highlights

  • गलवान नदी किनारे जून 2020 के हिंसक संघर्ष को पीएलए की जीत बतौर पेश किया
  • शी जिनपिंग के भाषण से साफ है कि चीन पूर्वी लद्दाख में स्थिति को सामान्य नहीं चाहता
  • भारत को घेरने के लिए पाकिस्तान का करेगा इस्तेमाल और उसे यूएन में बचाता रहेगा

नई दिल्ली:

रविवार को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) की 20वीं कांग्रेस के उद्घाटन के दिन पूर्वी लद्दाख (East Ladakh) में भारतीय सेना और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के जवानों के बीच जून 2020 को हुई हिंसक झड़क की क्लिप दिखाई गई. इसके साथ ही उस झड़प में पीएलए सैनिकों की अगुआई करने वाले चीनी सैन्य कमांडर को नायक बतौर पेश कर सम्मान प्रकट किया गया. गौरतलब है कि इसी सैन्य कमांडर ने बीजिंग में 2022 विंटर ओलिंपिक की मशाल भी थामी थी. सुविज्ञ है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) जल्द ही तीसरी बार चीन के सर्वोच्च नेता चुने जाने वाले हैं. ऐसे में गलवान की हिंसक झड़प की क्लिप दिखाकर राष्ट्रवादी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सैन्य कौशल को प्रदर्शित किया गया. साथ ही इस क्लिप के जरिये जानते-समझते हुए लोकतांत्रिक भारत (India) को कम्युनिस्ट तानाशाही के प्रमुख विरोधी (Enemy) बतौर निरूपित किया गया. शी जिनपिंग प्रशासन ने इस तरह पूर्वी लद्दाख के हिंसक संघर्ष को पीएलए की जीत के रूप में पेश करने की कोशिश की है. दावा किया गया कि भारत के 20 सैनिकों के मुकाबले चीन की पीएलए के महज चार सैनिक ही मारे गए. हालांकि उसी दिन पीएलए अधिकारियों की पकड़ी गई बातचीत और हेलीकॉप्टर से किए गए बचाव अभियान के आधार पर भारतीय सेना (Indian Army) का मानना है कि गलवान नदी के किनारे गला देने वाली ठंड के बीच हुए संघर्ष में चीनी सेना के 43 से 67 सैनिक खेत रहे थे.

जिनपिंग के भाषण से साफ है नहीं सुधरने वाला है ड्रैगन
हिंसक झड़प वाली क्लिप के दिखाए जाने के बाद शी जिनपिंग का भाषण हुआ. प्रखर राष्ट्रवादी छवि बनाने में जुटे जिनपिंग ने अपने भाषण में युद्ध उन्मादी की तरह चीन को सैन्य और आर्थिक रूप से अधिक शक्तिशाली बनाने के सतत प्रयासों की विस्तार से चर्चा की. शी ने कहा कि सैन्य और आर्थिक शक्तिसंपन्न चीन के पास ही क्षमता है कि वह अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिम को चुनौती दे सके. इसके साथ ही शी जिनपिंग ने लोकतांत्रिक देश ताइवान को बल या बगैर बल के चीन में शामिल करने की अपनी इच्छा भी फिर से दोहराई. हालांकि गलवान संघर्ष की क्लिप दिखा चीन के कम्युनिस्ट नेताओं ने भारत के खिलाफ दिल-ओ-दिमाग में पल रही नफरत को सामने लाने का काम किया है. इसका निकट भविष्य में भारत-चीन के द्विपक्षीय संबंधों पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ना तय है. राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भाषण का विश्लेषण और वॉर प्रोपेगेंडा से बिल्कुल साफ है कि चीन न तो पूर्वी लद्दाख से अपने सैनिकों को पूरी तरह से वापस हटाएगा और न ही भारतीय सेना को देपसांग के मैदानों या डेमचोक के चार्डिंग नाला जंक्शन पर गश्त करने देगा. गलवान और गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स में पेट्रोलिंग प्वाइंट 14, 15, 17 पर बफर जोन बनाकर पीएलए ने पूर्वी लद्दाख में 1597 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपने दावे को और मजबूत किया है.

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1962 युद्ध से बदल गए भारत-चीन के परस्पर रिश्ते
साठ साल पहले 16 अक्टूबर 1962 को चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी भारत के हिस्से में आने वाले दौलत बेग ओल्डी और गलवान पर हमले के लिए खुद को तैयार कर रही थी. चीन के इस हमले का उद्देश्य 1959 के एकतरफा सीमा रेखा को थोप पूर्वी लद्दाख में कार्टोग्राफिकल बदलाव लाना था. आधिकारिक युद्ध इतिहास के मुताबिक 22 सितंबर 1962 को भारत के तत्कालीन विदेश सचिव एमजे देसाई ने एक बैठक में बताया था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पूर्वी लद्दाख में कुछ इलाकों के रूप में नुकसान उठाने को तैयार थे. इसके बाद भारतीय सेना से तीन गुना बड़ी पीएलए ने 19 अक्टूबर 1962 की सुबह दौलत बेग ओल्डी औऱ गलवान पर हमला बोल द्विपक्षीय संबंधों को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया. गौरतलब है कि गलवान संघर्ष पीएलए के लिए एक आश्चर्य के रूप में सामने आया था. पीएलए को लग रहा था कि उसकी आक्रामकता से भारतीय सेना वापस लौट जाएगी,  जैसा मई 2020 में पैंगोंग त्सो झील पर हुआ था. ठीक वैसे ही 1962 के युद्ध में कर्नल बाबू और उनके बहादुर सैनिकों ने सर्वोच्च बलिदान से पले पीएलए को सीमित संसाधनों में मजा चखाया था. ऐसे में समय आ गया है कि चीन से हमदर्दी रखने वाले तथ्यों की जानकारी कर लें. 

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पाकिस्तान का इस्तेमाल कर घेरता रहेगा भारत को
शी जिनपिंग के आक्रामक भाषण के अलावा यह भी तय है कि चीन पाकिस्तान के जरिये भारत को लगातार घेरता रहेगा. इसके साथ ही वह न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप और इस जैसे बहुपक्षीय समूहों में भी भारत की सदस्यता में रोड़े अटकाता रहेगा. साथ ही अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान में आश्रय लिए और पल रहे आतंकवादियों और आतंकी समूहों को संयुक्त राष्ट्र में प्रतिबंधित आतंकी घोषित करने की प्रक्रिया में अपने वीटो पॉवर का इस्तेमाल भी जारी रखेगा. इसके अलावा चीन एप्पल के आईफोन 14 के निर्माण के लिए दक्षिण भारत जाने से भी खासा नाखुश है. इस क्रम में भी वह उम्मीद कर रहा है कि दक्षिण भारत में वास्तविक या सुनियोजित राजनीतिक उथल-पुथल एप्पल को अपनी गलती का अहसास कराए. सीसीपी की कांग्रेस में शी जिनपिंग के भाषण में आर्थिक सुधार या कोरोना प्रतिबंधों से राहत की कोई नई बात नहीं थी. ऐसे में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के भारत आने का सिलसिला और बढ़ सकता है. इस आलोक में मोदी सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि बाहरी ताकतों के उकसावे पर इन कंपनियों के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन नहीं होने पाए.