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अल्लाह मालिक, आने वाले दिनों में पाकिस्तान का कोरोना संक्रमण नर्क बना सकता है

पाकिस्तान में कुछ जाहिल कोरोना को आदमजात पर गंभीर खतरा नहीं मानते हैं. इन्हें लगता है कि कोरोना संक्रमण को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया गया है. हद तो यह है कि पैसों के लालच में यह इस कदर अंधे हो चुके हैं कि रमजान (Ramzan) में मस्जिद बंद करने को तैयार न

Updated on: 29 Apr 2020, 07:54 AM

highlights

  • पैसों के लालच में रमजान में मस्जिद बंद करने को तैयार नहीं पाकिस्तानी.
  • पांच में से तीन पाकिस्तानी मानते हैं संक्रमण को बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया.
  • आने वाले दिनों में कोरोना संक्रमण नर्क बना सकता है पाकिस्तान को.

इस्लामाबाद:

पाकिस्तान (Pakistan) का भविष्य क्या होगा, इसको लेकर शायद ऊपर वाला भी दावे के साथ कुछ नहीं कह सकता है. उसकी बनाई इस खूबसूरत दुनिया को कैसे कुछ कट्टर और आंख के अंधे लोगों ने नर्क बनाया है, यह देख-देख कर वह भी शायद सोचता होगा कि कहीं उसने कोई गलती तो नहीं कर दी. अब कोरोना संक्रमण (Corona Infection) को ही लें. इस्लाम के सबसे बड़े केंद्र मक्का-मदीना तक को कोविड-19 (COVID-19) संक्रमण की वजह से बंद कर दिया गया है, लेकिन पाकिस्तान में कुछ जाहिल कोरोना को आदमजात पर गंभीर खतरा नहीं मानते हैं. इन्हें लगता है कि कोरोना संक्रमण को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया गया है. हद तो यह है कि पैसों के लालच में यह इस कदर अंधे हो चुके हैं कि रमजान (Ramzan) में मस्जिद बंद करने को तैयार नहीं हैं. ऐसा करने पर उन्हें भारी-भरकम राशि से हाथ धोना पड़ेगा, जो रमजान के पवित्र माह में अकीदतमंद अपनी श्रद्धा से मस्जिद को दान में देते हैं.

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हर पांच में से तीन कोरोना को नहीं मानते गंभीर खतरा
गौरतलब है कि पूरी दुनिया में दो लाख से अधिक लोगों को देखते ही देखते मौत की नींद सुला देने वाली बीमारी कोविड-19 को अधिकांश पाकिस्तानी बहुत बड़ा खतरा नहीं मानते. एक सर्वेक्षण में खुलासा हुआ है कि हर पांच में से तीन पाकिस्तानी का यह मानना है कि कोरोना वायरस जितना बड़ा खतरा है, उससे कहीं अधिक बढ़ा चढ़ाकर इसे पेश किया जा रहा है. पाकिस्तान में कोरोना का प्रकोप तेजी से फैल रहा है. मंगलवार शाम तक देश में कोरोना के 14504 पुष्ट मामले सामने आ चुके हैं और 312 लोग इसकी चपेट में आकर अपनी जान गंवा चुके हैं. आशंका जताई जा रही है कि आने वाले दिनों में यह बीमारी देश में और गंभीर रूप ले सकती है.

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बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया कोरोना को
इसके बावजूद, गैलप संस्था के एक सर्वे में पता चला कि मार्च के बाद से हर पांच में से तीन पाकिस्तानी को ऐसा लगा है कि कोरोना वायरस के खतरे को काफी बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जा रहा है. सर्वे में सवाल पूछा गया था, 'कृपया बताएं कि आप इस बात से कितने सहमत या असहमत हैं कि कोरोना वायरस के खतरे को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया गया है.' जवाब में 60 फीसदी लोगों ने कहा कि वे इससे सहमत हैं कि इस खतरे को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया गया है, जबकि 38 फीसदी लोगों ने कहा कि ऐसा नहीं है कि खतरा जितना बड़ा है, उसे इसी तरह से पेश किया गया है. सर्वे में पता चला कि राष्ट्रीय औसत भले 60 फीसदी हो लेकिन बलूचिस्तान प्रांत में तो 89 फीसदी लोगों ने कहा कि कोरोना का खतरा कोई इतना बड़ा नहीं है जितना इसे बताया जा रहा है.

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मस्जिदों को पड़ा धन का अकाल
एक तरफ पाकिस्तान में कोरोना वायरस प्रकोप के कारण मस्जिदों और मदरसों को लोगों से मिलने वाले आर्थिक योगदान में भारी कमी आई है. धन की कमी के कारण मस्जिदों और मदरसों का प्रबंधन मुश्किल हो रहा है. पाकिस्तानी मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्लेषकों का कहना है कि रमजान महीने में देश में मस्जिदों को बंद करने के विरोध की एक वजह यह भी है कि इसी महीने सबसे अधिक चंदा एकत्र किया जाता है, जिससे मस्जिदों और मदरसों का काम चलता है. अगर इस महीने मस्जिदें बंद रहतीं तो चंदे को एकत्र करना मुश्किल हो जाता. इसीलिए कोरोना के प्रसार की आशंका के बावजूद धार्मिक नेता मस्जिदों को बंद करने के प्रस्ताव के खिलाफ अड़ गए.

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जकात पहली बार सही हाथों में जाने से कट्टरपंथी खफा
'द न्यूज' ने एक रिपोर्ट के हवाले से अपनी रिपोर्ट में यह जानकारी दी है. गौरतलब है कि पाकिस्तान में मस्जिद व मदरसे लोगों द्वारा दी गई आर्थिक मदद से चलते हैं. रिपोर्ट में हामिद शरीफ नाम के मौलाना का जिक्र है जो कराची के ओरंगी टाउन में एक मस्जिद व मदरसा चलाते हैं. इस्लामी महीने शाबान और रमजान में इन्हें मस्जिद आने वालों और दो फैक्ट्री के मालिकों से इतना चंदा मिलता है कि वह पूरे साल का बजट बनाते हैं. कोरोना वायरस के कारण दोनों फैक्ट्री दो महीने से बंद है. फैक्ट्री मालिकों व आम लोगों ने कोरोना के कारण धर्मार्थ काम के लिए निकाला जाने वाला पैसा (जैसे जकात) उन लोगों को अधिक दिया जो लॉकडाउन के कारण खाने को मोहताज हो गए हैं.

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इसलिए कर रहे कोरोना से जंग में मस्जिद बंद करने का विरोध
इससे मौलाना शरीफ की मस्जिद और मदरसे को चंदा नहीं के बराबर मिला. शरीफ ने कहा कि अब उनके लिए मस्जिद के इमाम व अन्य कर्मियों व मदरसे के शिक्षकों को वेतन दे पाना मुमकिन नहीं हो रहा है. एक अन्य मदरसे के प्रधानाध्यापक मुफ्ती मुहम्मद नईम ने कहा, 'लोगों ने आर्थिक मदद का मुंह उन संस्थाओं की तरफ मोड़ दिया है जो कोरोना से प्रभावित लोगों के बीच राशन वितरण कर रही हैं. इस वजह से मस्जिदें और मदरसे बड़े आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं.' इन हालात में मस्जिद व मदरसा प्रबंधन से जुड़े लोगों की थोड़ी उम्मीद अब उन लोगों पर टिकी है जो नियमित नमाज पढ़ने मस्जिदों में आते हैं.