Russia Ukraine War: अमेरिका का बड़ा ऑफर, भारत -रूस रिश्ते पर कितना असर 

अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर से भारत के सामने रक्षा आपूर्ति (Defence Supply) से जुड़े एक बड़े सौदे की पेशकश की है. अमेरिका ने रूस निर्मित हथियारों (Russian Weapons) की आलोचना करते हुए कहा है कि वो रक्षा क्षेत्र में भारत की बड़ी मदद करने के लिए तैयार है.

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Keshav Kumar
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पश्चिम को असहज करती भारत-रूस की दोस्ती( Photo Credit : News Nation)

रूस और यूक्रेन युद्ध ( Russia Ukraine War) के दौरान भारत ने हिंसा रोकने और शांति कायम करने की अपील की है. इसके अलावा अभी तक सीधे तौर पर रूस की आलोचना नहीं की है. दूसरी ओर अमेरिका सीधे तौर यूक्रेन के साथ और रूस के खिलाफ लगातार बयान दे रहा है. भारत की रूस से निकटता को देखते हुए अमेरिका ने अब एक नई चाल चली है. अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर से भारत के सामने रक्षा आपूर्ति (Defence Supply) से जुड़े एक बड़े सौदे की पेशकश की है. अमेरिका ने रूस निर्मित हथियारों (Russian Weapons) की आलोचना करते हुए कहा है कि वो रक्षा क्षेत्र में भारत की बड़ी मदद करने के लिए तैयार है.
 
अमेरिका का कहना है कि रक्षा आपूर्ति के लिए रूस पर भारत की निर्भरता को हम समझते हैं, लेकिन अब समय बदल गया है. हम अपने सहयोगी भारत के साथ रक्षा क्षेत्र में अधिक से अधिक सहयोग करने के लिए बहुत उत्सुक हैं. सैन्य हथियारों को लेकर भारत की रूस पर निर्भरता को देखते हुए अमेरिका की इस पेशकश के बाद सबसे बड़ा प्रश्न उठ खड़ा हुआ है कि नई दिल्ली-मॉस्को के रिश्ते पर इससे क्या असर होगा? क्या रूस-यूक्रेन जंग के बीच भारत अपने रुख में  कोई बदलाव करेगा?

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अमेरिका ने की रूस के हथियारों की आलोचना

राजनीतिक मामलों पर अमेरिका की विदेश सचिव और टॉप डिप्लोमैट विक्टोरिया नुलैंड ने बुधवार को एक इंटरव्यू में कहा कि भारत को ये सोचने की जरूरत है कि क्या हथियारों के लिए रूस पर उसकी निर्भरता ठीक है. क्योंकि रूस की लगभग 60 फीसदी मिसाइल काम करने की स्थिति में नहीं हैं. उन्होंने कहा कि भारत देखे कि रूस के हथियार युद्ध के मैदान में कितना खराब प्रदर्शन कर रहे हैं.  

चीन की रूस से बढ़ती नजदीकी की दी दुहाई 

रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर विक्टोरिया नुलैंड ने बताया कि उन्होंने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर और विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला से बातचीत की है.  रूस और चीन की बढ़ती नजदीकी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यूक्रेन पर हमले के बीच रूस ने चीन से मदद की मांग की है.  रूस चीन से पैसों और हथियारों की मदद मांग रहा है. इससे रूस और चीन की नजदीकी बढ़ रही है. यह न तो अमेरिका के लिए सही है और न ही भारत के लिए ठीक है. उन्होंने कहा कि भारत को रक्षा आपूर्ति के लिए रूस पर निर्भरता खत्म करने में मदद करने के लिए अमेरिका तैयार है. 

रासायनिक और जैविक हथियारों का खतरा

अमेरिका की विदेश सचिव विक्टोरिया नुलैंड ने कहा कि रासायनिक और जैविक हथियारों के इस्तेमाल को लेकर रूस लगतार गैर-जिम्मेदाराना बयान दे रहा है. जब अतिवादी ताकतें एक हो रही हैं तो ऐसे वक्त में भारत और अमेरिका जैसे लोकतांत्रिक देशों के लिए साथ खड़े होने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि अमेरिका समझता है कि भारत-रूस के बीच ऐतिहासिक संबंध रहे हैं, लेकिन ये बात बेहद अहम है कि हम दोनों और यूक्रेन-रूस के मुद्दे पर एक साथ खड़े हों. 

विश्वसनीय रक्षा आपूर्तिकर्ता नहीं रह पाएगा रूस

नुलैंड ने कहा कि रक्षा आपूर्ति के लिए रूस पर भारत की निर्भरता को भी हम समझते हैं. अब समय बदल गया है. भारत के साथ रक्षा क्षेत्र में हम अधिक से अधिक सहयोग करने के लिए बहुत उत्सुक हैं. भारत के साथ हमारे दूसरे यूरोपीय सहयोगी और भागीदार भी ऐसा करने के लिए उत्सुक हैं. उन्होंने पूछा कि क्या रूस वास्तव में भारत के लिए एक विश्वसनीय रक्षा आपूर्तिकर्ता है? साथ ही युद्ध के बाद क्या रूस के पास किसी को देने के लिए हथियार होंगे? वहीं दूसरी ओर उन्होंने कहा कि अगर अमेरिका रूस से लड़ने के लिए यूक्रेन को हथियारों की सहायता दे सकता है तो भारत को क्यों नहीं दे सकते?

अमेरिकी विदेश सचिव ने की पुतिन की आलोचना

अमेरिकी विदेश सचिव ने साफ कहा कि आप पुतिन जैसे इंसान पर निर्भर नहीं रहना चाहते होंगे? ऐसे में विकल्प के तौर पर हम आपका साथी बनने के लिए उत्सुक हैं. हालांकि विक्टोरिया नुलैंड ने पुतिन के मुकाबले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की खुली तारीफ से परहेज किया. इसके बाद ये सवाल अहम हो गया कि नई दिल्ली और मॉस्को के रिश्ते पर क्या कोई असर पड़ सकता है. हालांकि, भारत सरकार की ओर से इस मामले में कोई बयान सामने नहीं आया है.

ये भी पढ़ें - Russia Ukraine War : पुतिन की Nuclear Attack की धमकी में कितना दम?

पश्चिम को असहज करती भारत-रूस की दोस्ती

यूक्रेन संकट के बीच भारत की तटस्थता को रूस का साथ माना जा रहा है. रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान शुरुआती आठ दिनों में व्लादिमीर पुतिन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो बार बात कर चुके थे. यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को सुरक्षित गलियारा देने में भी रूस की सेना ने भारत सरकार की मदद की. विघटन से पहले सोवियत संघ के नेता मिखाइल गोर्बाचेव और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 27 नवंबर 1986 को दिल्ली घोषणापत्र ( Delhi Declearation ) से भी अमेरिका और यूरोप सन्न रह गए थे.

HIGHLIGHTS

  • अमेरिका ने भारत के सामने रक्षा आपूर्ति में बड़े सहयोग की पेशकश की है
  • सवाल उठा है कि नई दिल्ली-मॉस्को के रिश्ते पर इससे क्या असर होगा
  • यूक्रेन पर हमले के बीच रूस ने चीन से रकम-हथियारों की मदद की मांग की
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