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Ambubachi Mela 2022: कामाख्या मंदिर में क्यों जुटे तंत्र-मंत्र के साधक

अंबुबाची मेला (Ambubachi Mela 2022) 26 जून को संपन्न होने वाला है. इस दिन मंदिर की साफ-सफाई और देवी मां कामाख्या की विशेष पूजा के बाद भक्तों के लिए कपाट खोला जाएगा. इसके बाद श्रद्धालु माता कामाख्या का दर्शन कर वापस लौटेंगे.

Updated on: 24 Jun 2022, 05:00 PM

highlights

  • कामाख्या मंदिर में 22-26 जून तक अंबुबाची मेला चल रहा है
  • ब्रह्मपुत्र के पास कामाख्या मंदिर में इन दिनों कपाट बंद रहते हैं
  • तंत्र-मंत्र की साधनाओं के लिए कामाख्या मंदिर दुनिया में प्रसिद्ध

नई दिल्ली:

पूर्वोत्तर भारत के असम राज्य में गुवाहाटी (Guwahati Assam) से लगभग 10 किलोमीटर दूर नीलांचल पहाड़ी पर स्थित प्राचीन मां कामाख्या शक्तिपीठ (Kamakhya Shaktipeeth) पर इन दिनों दुनिया भर के तंत्र-मंत्र साधकों की भीड़ उमड़ पड़ी है. 51 शक्तिपीठों में एक कामाख्या मंदिर में  22 जून से 26 जून तक के लिए अंबुबाची मेला (Ambubachi Mela 2022) चल रहा है. कोविड-19 महामारी के चलते दो साल बाद आयोजित मेले में देश भर के लोग जुटे हैं. ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित कामाख्या मंदिर में इन दिनों में कपाट बंद रहते हैं. 

बाढ़, महाराष्ट्र के MLAs और अंबुबाची मेला

असम में ब्रह्मपुत्र और बराक नदी में बढ़ते जलस्तर की वजह से कई जिलों में आए भीषण बाढ़ और महाराष्ट्र में चल रहे हाई प्रोफाइल पॉलिटिकल ड्रामे के दौरान पहुंचे महाविकास आघाड़ी के विधायकों की खबर के बीच अंबुबाची मेला का आयोजन भी सुर्खियों में है. धार्मिक-पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्मशान में साधना कर तांत्रिक सिद्धियों की इच्छा से जुटे तांत्रिकों-अघोड़ियों और नागाओं समेत बाकी श्रद्धालुओं से कामाख्या मंदिर के आसपास दिन और रात का अंतर लगभग समाप्त हो गया है.

अंबुबाची मेला 26 जून को संपन्न होने वाला है. इस दिन मंदिर की साफ-सफाई और देवी मां कामाख्या की विशेष पूजा के बाद भक्तों के लिए कपाट खोला जाएगा. इसके बाद श्रद्धालु माता कामाख्या का दर्शन कर वापस लौटेंगे. आइए, जानते हैं कि कामाख्या शक्ति पीठ की पौराणिक कथा क्या है और अंबुबाची मेला क्यों मनाया जाता है. 

शक्तिपीठों की पौराणिक कथा

शिव महापुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार भगवान शिव का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री देवी सती से हुआ था. शिव जी को प्रजापति दक्ष पसंद नहीं करते थे. उन्होंने हरिद्वार के कनखल में एक विशेष यज्ञ का आयोजन किया. उन्होंने इस पवित्र अनुष्ठान में सभी देवी-देवताओं और ऋषियों-मुनियों को आमंत्रित किया, लेकिन शिव जी और सती को न्योता नहीं भेजा. देवी सती इसके बावजूद पिता दक्ष के यहां यज्ञ में जाना चाहती थी. भगवान शिव ने उन्हें समझाया कि बिना बुलाए ऐसे किसी कार्यक्रम में नहीं जाना चाहिए. देवी सती ने तर्क दिया कि पिता के यहां जाने के लिए बुलावे की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए और वह जिद कर यज्ञ में चली गईं.

देवी सती का वियोग और शिवजी का क्रोध 

यज्ञ स्थल पर दक्ष प्रजापति ने शिव जी के लिए कुछ ऐसी बातें कही जो देवी सती को अपमानजनक लगीं. क्रोधित होकर उन्होंने वहीं यज्ञ कुंड की अग्नि में अपनी जीवन लीला को खत्म कर लिया. जानकारी मिलने भगवान शिव के क्रोध का पारावार नहीं रहा. उन्होंने दक्ष प्रजापति को दंड देने के लिए वीरभद्र से कहा. देवी सती के जलते शरीर को उठाकर क्रोध, शोक और वियोग में वह भटकने लगे. भगवान विष्णु ने उनका मोह दूर कर उन्हें शांत करने के लिए सुदर्शन चक्र से देवी सती के जलते शरीर को खंडित करने के लिए कहा.

51 शक्तिपीठों में एक है कामाख्या मंदिर

इस क्रम में देवी सती के शरीर के विभिन्न अंग कई स्थानों पर गिरे. उन स्थानों पर देवी के शक्तिपीठ स्थापित हो गए. भारत में ऐसे 51 प्रसिद्ध शक्ति पीठ हैं. कुछ शास्त्रों में इसकी संख्या 121 भी बताई गई है. विभाजन के बाद कुछ शक्तिपीठ पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान ( अब बांग्लादेश ) में स्थित हैं. मान्यता है कि असम में ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर नीलांचल पहाड़ी पर माता देवी सती के गोपनीय अंग गिरा था. इस स्थान पर कामाख्या मंदिर स्थापित है. 

क्यों मनाया जाता है अंबुबाची उत्सव या मेला

कामाख्या मंदिर में हर साल आषाढ़ महीने में यानी लगभग 22 जून से 26 जून तक अंबुबाची उत्सव या मेला मनाया जाता है. मान्यता है कि इन दिनों में देवी मां रजस्वला होती हैं. इस कारण अंबुबाची उत्सव के दौरान कामाख्या मंदिर का कपाट बंद कर दिया जाता है. इस बीच मंदिर में तंत्र-मंत्र की साधनाएं होती हैं. इन साधनाओं के लिए कामाख्या मंदिर दुनियाभर में काफी प्रसिद्ध है. यहां देवी त्रिपुरासुंदरी, मतांगी और कमला के साथ ही देवियों की मूर्तियां भी स्थापित हैं. मंदिर के पास स्थित भूतनाथ श्मशान में पूरी रात जलते शवों के बीच तंत्र साधनाओं के लिए बहुत भीड़ उमड़ती है. इस दौरान बड़ी संख्या में महिला तांत्रिकों की मौजूदगी भी होती है.

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मंदिर के पास कपड़ों में रहते हैं नागा साधू

रिपोर्ट्स के मुताबिक विश्व प्रसिद्ध कामाख्या मंदिर का अपना कोई ऑफिस नहीं है. परिसर में स्थित 10  मंदिरों का प्रशासन जूना और किन्नर अखाड़ा संभालता है. जूना अखाड़े में देशभर से नागा साधु जुटते हैं. महिला नागा साधु भी यहां साधना करने पहुंचती हैं. आमतौर पर बिना कपड़ों के रहने वाले नागा साधु इस मंदिर के आसपास पूरे कपड़ों में रहते हैं. वे सभी कहते हैं कि देवी कामाख्या उनकी मां हैं और मां के सामने वे बिना कपड़ों के नहीं रह सकते. 466 पंडों के पास मंदिर की पूजा-अर्चना की जिम्मेदारी है. इनमें से 25 पंडित कामाख्या मंदिर में शिफ्ट या रोस्टर के जरिए पूजा करते हैं. मंदिर के आसपास उन्हीं के मकान-दुकानों में लोग ठहरते और खरीदारी करते हैं.