अजित पवार का NCP से 'बेवफाई' मजबूरी या फिर नाराजगी...जिसने बदल दी महाराष्ट्र की राजनीति
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के पास 71 सीटें थी और कांग्रेस के पास 69 सीट. महाराष्ट्र में दोनों मिलकर सरकार बनाने वाले थे. लेकिन मामला सीएम पद को लेकर फंस गया था.पूरा तय था कि अजित पवार को मुख्यमंत्री की कमान मिलेगी.
नई दिल्ली:
महाराष्ट्र में रातो-रात सत्ता की बाजी पलटने वाले अजित पवार (Ajit Pawar) अपने चाचा शरद पवार (Sharad Pawar) से 'बेवफाई' कर बैठे. जिनकी उंगली पकड़ कर कभी वो राजनीति की सीढ़ी चढ़ें होंगे...आज उन्हें बेगान करके बीजेपी के साथ हो गए हैं. अजित पवार को उनके चाचा शरद पवार मनाने की कोशिश में भी लगे हुए हैं, लेकिन वो हैं कि मानते नहीं. सवाल यह है कि अजित पवार का बेवफा हो जाना उनकी मजबूरी है या फिर नाराजगी.
सत्ता का नशा एक ऐसी चीज है जो लग जाए तो वो छूटती नहीं और अगर नहीं लगती तो उसे पाने के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए नेता तैयार होते हैं. अजित पवार के साथ भी कुछ ऐसा ही है...वो कभी सत्ता के करीब तो गए, लेकिन सिंहासन पर विराजमान होने की बजाय मंत्री पद से संतोष करना पड़ा. जिक्र 2004 की हो रही है, जब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के पास 71 सीटें थी और कांग्रेस के पास 69 सीट. महाराष्ट्र में दोनों मिलकर सरकार बनाने वाले थे. लेकिन मामला सीएम पद को लेकर फंस गया था. एनसीपी की दो सीट ज्यादा थी और उसकी मांग मुख्यमंत्री पद की थी. अजित पवारमान रहे थे कि वो मुख्यमंत्री के पद पर विराजमान होंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 16 दिन की जद्दोजहद के बाद अजित पवार का सपना टूट गया और कांग्रेस के विलासराव देशमुख ने सत्ता की कमान संभाल ली. शरद पवार मुख्यमंत्री पद के बदले दो कैबिनेट और एक राज्यमंत्री पद हासिल कर लिया. अजित पवार को मंत्री पद से संतोष करना पड़ा.
2004 का दर्द 2009 में और ज्यादा बढ़ा जब...
2004 का दर्द अजित पवार का 2009 में और ज्यादा बढ़ गया जब शरद पवार ने उनकी मांग को ठुकरा दी. अजित पवार अपने खेमे के लोगों को टिकट देना चाहते थे. लेकिन शरद पवार ने उन्हें ऐसा करने नहीं दिया. 2019 लोकसभा चुनाव में जब अजित पवार ने अपने बेटे पार्थ पवार को सियासत में उतारना चाहा और टिकट मांगी तो चाचा शरद पवार ने उनकी मांग को पहले तो मना कर दिया, लेकिन बाद में उनकी जिद को देखते हुए पार्थ को टिकट दिया गया.
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लेकिन शरद पवार पार्थ को जिताने के लिए ज्यादा कोशिश नहीं की, वहीं सुप्रिया सुले की जीत के लिए जी जान लगा दी. पार्थ के हारने के बाद अजित पवार को एनसीपी में अपने भविष्य का अंदाजा हो गया. इस बार के विधानसभा चुनाव में भी अजित पवार अनदेखी के शिकार हुए. विधानसभा चुनाव में वो अपने खेमे के कुछ लोगों को टिकट दिलाना चाहते थे, लेकिन पहले की तरह इस बार भी शरद पवार ने एक नहीं सुनी. इसके साथ ही उन्होंने अपने दूसरे परपोते रोहित पवार को विधानसभा का टिकट दिया और उसकी जीत को सुनिश्चित किया.
ईडी का नोटिस आया पर कोई नहीं अजित के साथ था खड़ा
अजित को झटका उस वक्त भी लगा जब ईडी का नोटिस उनके खिलाफ आया. तब ना तो उनके समर्थन में शरद पवार आए और ना ही एनसीपी का कोई नेता. विधानसभा चुनाव के पहले शरद का नाम जब ईडी की एफआईआर में आया तब उन्होंने ईडी दफ्तर जाने का निर्णय लिया जिससे काफी गहमागहमी हो गई. चाचा शरद पवार से से फोकस हटाने के लिए अजित पवार ने विधायक पद से इस्तीफा दिया जिससे दो दिनों तक चर्चा में रहे. लेकिन जब अजित को ईडी का नोटिस आया तो किसी ने साथ नहीं दिया.
उद्धव ठाकरे से जब शरद पवार की हुई डील अजित का टूटा सब्र
कई बार झटके पे झटका खाने वाले अजित पवार का सब्र उस वक्त टूट गया होगा जब एनसीपी-शिवसेना और कांग्रेस की गठबंधन वाली सरकार में उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री के रूप में शरद पवार ने आगे किया और ये बात अजित पवार को रास नहीं आई. जिसके बाद उन्होंने बीजेपी को समर्थन दे दिया. कहा जाता है कि अजित पवार कई बार बैठक में शरद पवार से बीजेपी को समर्थन देने की अपील की थी. लेकिन तब भी उनकी नहीं सुनी गई.
अजित पवार की नाराजगी से ज्यादा मजबूरी तो नहीं बेवफाई की वजह
अजित पवार की नाराजगी वाली बातें तो हो गई...अब मजबूरियों का भी जिक्र करना जरूरी है. अजित पवार पर 95,000 करोड़ के भ्रष्टाचार का आरोप है. सिंचाई विभाग घोटाला मामले उनसे पूछताछ होती रहती है. हाल ही में मुंबई पुलिस की अपराध शाखा ने 25000 करोड़ के गबन का मामला दर्ज किया था. इसमें 70 लोग आरोपी बनाए गए जिनमें से एक अजित पवार भी थे. ऐसे में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की आंच में सुलझ रहे अजित पवार बुझाने के लिए बीजेपी का हाथ तो नहीं पकड़ लिए.
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अजित पावर भले ही कहें कि वो अब भी एनसीपी के साथ है और फिर भी बीजेपी सरकार की मजबूती का दावा कर रहे हैं... तो ये कहना गलत नहीं होगा कि राजनीति के दो चेहरे होते हैं एक दिखाने वाला और दूजा करने वाला. अजित पवार की बेवफाई की वजहों का जिक्र हो चुका है. जनता समझदार है वो खुद ही तय कर लेगी कि उनकी 'बेवफाई' कितनी जायज है और कितनी नाजायज.
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