कानपुर, 8 जून (आईएएनएस)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने रविवार को शिक्षार्थियों के साथ विशेष संवाद में कहा कि संघ का कार्य व्यक्ति निर्माण के माध्यम से समाज और राष्ट्र के प्रति कर्तव्यबोध जागृत करने का है। उन्होंने जोर देकर कहा कि शाखा क्षेत्र के प्रत्येक परिवार तक संघ का संपर्क पहुंचना चाहिए।
संवाद के दौरान भागवत ने शिक्षार्थियों से उनके कार्यक्षेत्र में संचालित शाखाओं, सेवा प्रकल्पों और संपर्क गतिविधियों की जानकारी ली। उन्होंने कहा कि संघ के लिए व्यक्ति निर्माण का अर्थ केवल आत्मविकास नहीं, बल्कि समाज, राष्ट्र और सम्पूर्ण मानव जाति के प्रति दायित्व की अनुभूति है। सरसंघचालक ने कहा कि संघ अपने शताब्दी वर्ष की ओर अग्रसर है और इस कालखंड में वसुधैव कुटुंबकम् यानी विश्व एक परिवार है के विचार को व्यवहार में उतारने के लिए कार्यरत है।
उन्होंने कहा कि संघ कार्यकर्ता समाज जीवन के विविध क्षेत्रों में सेवा, संस्कार और समरसता के माध्यम से प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं। देशभर में संचालित लाखों सेवा प्रकल्प इस संकल्प की मिसाल हैं। भागवत ने बदलावों पंच परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ने का आह्वान किया।
उन्होंने इसे राष्ट्र निर्माण का आधार बताया। पंच परिवर्तन के पांच प्रमुख आयाम इस प्रकार हैं। उन्होंने आयामों की चर्चा करते हुए उन्हें इस बारे में बताया भी। इस दौरान राष्ट्र के प्रति जागरूक समाज, पर्यावरण के अनुरूप जीवनशैली, जातिगत विषमता से मुक्ति, सामाजिक समता और सार्वजनिक संसाधनों पर समान अधिकार और जीवन में सेवा भाव का समावेश को समझाया।
उन्होंने कहा कि यह परिवर्तनात्मक दृष्टिकोण भारत को एक संगठित, समरस और आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में स्थापित करेगा। संघ की कार्यपद्धति को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि शाखा दरअसल व्यक्ति निर्माण की प्रयोगशाला है, जहां शारीरिक, बौद्धिक और चारित्रिक विकास के साथ सामाजिक और सांस्कृतिक संस्कार भी विकसित होते हैं।
ज्ञात हो कि अप्रैल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत पांच दिवसीय प्रवास पर कानपुर पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने संघ भवन का उद्घाटन किया था। मोहन भागवत ने कहा कि भारत का इतिहास आपसी मतभेदों से भरा रहा है, जिसका लाभ विदेशी आक्रांताओं ने उठाया।
उन्होंने कहा कि हम विभाजन और वैमनस्य में उलझे रहे और इसी कारण भारत को न केवल लूटा गया बल्कि अपमानित भी किया गया। आज जब कोई स्वयं को हिंदू कहता है, तो उसकी जिम्मेदारी बनती है कि वह भारत के पुनर्निर्माण में अपना योगदान दे। उन्होंने स्पष्ट किया कि हिन्दू समाज को संगठित करना आज की आवश्यकता है और यही कार्य संघ वर्षों से करता आ रहा है।
--आईएएनएस
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