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Zydus Cadila: डीएनए से बनी Covid 19 की पहली वैक्सीन जल्द होगी लॉन्च

ZyCoV-D वैक्सीन का प्रयोग 12 साल से ऊपर के बच्चों और सभी वयस्क लोगों पर किया जा सकता है.  उम्मीद है कि इसी  साल दिसंबर में यह अस्पताल में उपलब्ध करा दी जाएगी. भारत सरकार ने इसके लिए एडवांस में बुकिंग कर दी है.

Updated on: 26 Nov 2021, 08:37 PM

नई दिल्ली :

ZyCoV-D दुनिया की पहली डीएनए से बनी हुई कोविड-19 की वैक्सीन है. जिसकी तीन डोज देने के बाद टीकाकरण पूरा होगा. आपको बता दें कि इसके  लिए विशेष प्रकार के इंजेक्टर का प्रयोग किया जाता है जिसमें इंजेक्शन लगाने, या दर्द होने की समस्या का सामना आपको नहीं करना पड़ेगा. आपको एक मुख्य बात बता दें कि इंजेक्टर की तस्वीर अभी तक ऑफिशियली दिखाई नहीं गई है.ZyCoV-D वैक्सीन का प्रयोग 12 साल से ऊपर के बच्चों और सभी वयस्क लोगों पर किया जा सकता है.  उम्मीद है कि इसी  साल दिसंबर में यह अस्पताल में उपलब्ध करा दी जाएगी.

भारत सरकार ने इसके लिए एडवांस में बुकिंग कर दी है. ZyCoV-D वैक्सीन बनाने के लिए इसको सबसे पहले जेनेटिक मॉडिफाइड डीएनए के जरिए सेल में इंजेक्ट किया जाता है. जिसके बाद वह एमआरएनए बनाता है, जो आगे चलकर स्पाइप प्रोटीन बनाने के काम में आता है जिससे एंटीबॉडी तैयार होती है.

इस साल अप्रैल और मई में आई कोरोना दूसरी की लहर में देश भर के लाखों लोगों ने अपनी जान गंवा दी, ऑक्सीजन की कमी रही और कोरोना के खिलाफ कारगर दवाई मौजूद नहीं थी. अब तीसरी लहर से पहले ऐसी दवाई पर काम किया जा रहा है जो इस महामारी के खिलाफ किसी संजीवनी से कम नहीं है. इसके लिए आईसीएमआर, सीआरआई वायरोलॉजी लैबोरेट्री पुणे ने एक एमओयू करार किया है. जिसमें सबसे पहले पुणे से आए डेड वायरस के जरिए घोड़ों को इनफैक्ट किया जाता है. उसके बाद घोड़ों के ब्लड से एंटीबॉडी निकाली जाती है अगर वही एंटीबॉडी किसी गंभीर रूप से बीमार कोरोना पीड़ित व्यक्ति को दी जाए तो उसकी जान बचाई जा सकती है. यह प्रक्रिया काफी हद तक प्लाज्मा थेरेपी जैसी है लेकिन प्लाज्मा से कई गुना बेहतर.

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सीआरआई की एनिमल ट्रायल ब्रांच के पास भारतीय सेना से घोड़े पहुंचे हैं. इन्हीं पर प्रयोग करके एंटीबॉडी तैयार की जा चुकी है. जिसकी न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी प्रभाव को जानने के लिए सैंपल वायरोलॉजी लैबोरेट्री पुणे भेज दिए गए हैं अगर उसमें सफलता मिली तो यह कोरोना महामारी के खिलाफ विश्व का सबसे कारगर हथियार साबित हो सकता है.

दरअसल इंसान के शरीर में वैक्सीन की दोनों डोज लगने की 14 दिनों के बाद एंटीबॉडी बनती है, लेकिन अगर घोड़ों के ब्लड कि एंटीबॉडी कामयाब रही तो वह एंटीबॉडी कई महीनों की जगह चंद घंटों के अंदर संभव है,  जिससे कोरोना की तीसरी लहराने की स्थिति में कीमती इंसानी जिंदगी बचाई जा सकती है.