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पृथ्वी का औसत तापमान 2030 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ेगा : UN रिपोर्ट

संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि 2030 तक पृथ्वी के औसत तापमान में पूर्व-औद्योगिक स्तरों से ऊपर 1.5 डिग्री सेल्सियस की औसत वृद्धि होगी.

Updated on: 08 Oct 2018, 08:25 PM

नई दिल्ली:

संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि 2030 तक पृथ्वी के औसत तापमान में पूर्व-औद्योगिक स्तरों से ऊपर 1.5 डिग्री सेल्सियस की औसत वृद्धि होगी, जिससे अत्यधिक सूखे, जंगलों में आग, बाढ़ और करोड़ों लोगों के लिए खाद्यान्न की कमी का खतरा बढ़ जाएगा. संयुक्त राष्ट्र के 'जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल' (आईपीसीसी) ने कहा कि वैश्विक स्तर पर जलवायु में हो रही उथल-पुथल से बचाव के लिए समाज और विश्व अर्थव्यवस्था को 'अभूतपूर्व स्तर' पर बहुत बड़े बदलाव से गुजरना होगा.

संयुक्त राष्ट्र ने रिपोर्ट में यह बात कही जिसमें आगाह किया गया है कि इस आपदा से निपटने के लिए बहुत ही जल्दी कदम उठाने होंगे. धरती की सतह का तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है और यह बहुत जल्द तीन से चार डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है. ऐसा होने पर धरती पर रहना लगभग असंभव हो जाएगा. सतह का तापमान एक डिग्री तक बढ़ना महासागरों में भयावह तूफान लाने से लेकर, बाढ़ एवं सूखे जैसी आपदाओं के लिए काफी है.

ये आंकड़े ग्रीन हाउस गैसों के वर्तमान उत्सर्जन स्तर के आधार पर तैयार किए गए हैं. रिपोर्ट के अनुसार, गृह के दो-तिहाई हिस्से का तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ने से वह हिस्सा पहले ही उस ओर बढ़ चला है. इसे और अधिक गर्म होने से बचाने के लिए हमें आगामी कुछ सालों में ही महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे.

वर्ष 2030 तक वातावरण सामान्य करने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड का वैश्विक उत्सर्जन 2010 के बाद से 45 फीसदी कम होता और 2050 तक औसत तापमान 1.5 डिग्री तक रखने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन शून्य करना पड़ता.

'आईपीसीसी कार्यकारी दल एक' के सह अध्यक्ष पानमाओ झाई ने कहा, 'इस रिपोर्ट से प्रमुख संदेश यही आया है कि और तेज मौसम, समुद्र तल के बढ़ने और आर्कटिक सागर की बर्फ पिघलने से हम पहले ही ग्लोबल वार्मिग में एक फीसदी वृद्धि देख रहे हैं.'

उन्होंने कहा कि इससे मूंगे की चट्टानें भी बुरी तरह प्रभावित होंगी जिनमें ऑस्ट्रेलिया की 'ग्रेट बेरियर रीफ' सहित 70 से 90 फीसदी चट्टानों के नष्ट होने की संभावना है. सोमवार को आई यह रिपोर्ट तीन साल से बन रही थी जो 2015 में हुए पेरिस जलवायु समझौते का परिणाम है.

दक्षिण अफ्रीका के डर्बन के पर्यावरणीय योजना एवं जलवायु संरक्षण विभाग की प्रमुख और आईपीसीसी की सह-प्रमुख डेब्रा रॉबर्ट्स ने कहा, 'अगले कुछ साल मानव इतिहास में संभवत: सबसे महत्वपूर्ण साल होंगे.'

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हालांकि आईपीसीसी की रिपोर्ट दिखाती है कि ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव जल्दी सामने आए और अनुमान से कहीं ज्यादा प्रभावी हैं.

ग्रीनपीस इंटरनेशनल की कार्यकारी निदेशक जेनिफर मोर्गन ने कहा, 'वैज्ञानिकों ने भविष्य में जो कुछ भी घटनाक्रम होने की बातें कही थीं, वह अभी हो रही हैं.' 400 पन्नों की इस रिपोर्ट को सर्वसम्मति से सभी देशों ने स्वीकार किया.

(IANS इनपुट्स के साथ)

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