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देश के कानून के अनुसार ऑल्ट न्यूज के लेन-देन का विवरण साझा किया : रेजरपे

देश के कानून के अनुसार ऑल्ट न्यूज के लेन-देन का विवरण साझा किया : रेजरपे

Updated on: 07 Jul 2022, 06:25 PM

नई दिल्ली:

अग्रणी डिजिटल पेमेंट गेटवे रेजरपे ने गुरुवार को कहा कि कंपनी ने भारतीय कानून के प्रावधानों के तहत सख्ती से संबंधित अधिकारियों के साथ तथ्य-जांच वेबसाइट ऑल्ट न्यूज के लेनदेन डेटा को साझा किया।

ऑल्ट न्यूज ने दावा किया था कि रेजरपे ने पोर्टल को सूचित किए बिना दिल्ली पुलिस के साथ अपने डोनर डेटा को यह कहते हुए साझा किया कि उसकी ओर से किसी भी उल्लंघन की कोई प्रारंभिक जांच नहीं हुई है।

एक बयान में, रेजरपे के प्रवक्ता ने कहा कि वे डेटा सुरक्षा के उच्चतम मानक को जारी रखेंगे, हर समय अपने ग्राहकों की रक्षा करेंगे और भारत के कानूनों और विनियमों का पालन करना भी जारी रखेंगे।

कंपनी के प्रवक्ता ने आईएएनएस को बताया, हमें सीआरपीसी की धारा 91 के तहत एक वैध कानूनी आदेश प्राप्त हुआ, जिसने हमें भारतीय कानून के प्रावधानों के तहत रेजरपे पर हुए लेनदेन के बारे में कुछ विवरण साझा करने के लिए अनिवार्य किया। हमने जांच के दायरे का अधिक विवरण प्राप्त करने के लिए खाते को अस्थायी रूप से अक्षम कर दिया और यह सुनिश्चित किया कि ये भुगतान करने वाले उपभोक्ता इससे प्रभावित न हों।

रेजरपे ने कहा कि उसने डोनर विशिष्ट व्यक्तिगत पहचान योग्य जानकारी (पीआईआई) जैसे बैंक खाता, पैन, पता, जि़प कोड इत्यादि साझा नहीं किया।

प्रवक्ता ने कहा, एक चल रही जांच में सहायता के लिए डोनर डेटा का केवल एक छोटा सा हिस्सा साझा किया गया था, सभी नहीं। हमने जांच पूरी होने तक भुगतान स्वीकार करना जारी रखने के व्यवसाय के अधिकार का भी बचाव किया और एक बार जब हमें वह स्पष्टता मिल गई तो हमने फिर से उनके लिए भुगतान सक्षम कर दिया।

ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर वर्तमान में पुलिस हिरासत में हैं और उनके एक आपत्तिजनक ट्वीट को लेकर पूछताछ की जा रही है जिसे उन्होंने 2018 में पोस्ट किया था।

दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी के अनुसार, उसने जानबूझकर समाज में शांति भंग करने के लिए सामग्री को ट्वीट किया।

रेजरपे ने कहा कि वे भारत के सभी आवश्यक कानूनों और विनियमों का पूरी तरह से पालन और अनुपालन कर रहे हैं।

कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, पुलिस और प्रवर्तन एजेंसियों के पास सूचना या डेटा मांगने का अधिकार है लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि प्राथमिकी किन प्रावधानों के तहत दर्ज की गई है।

विशेषज्ञों ने कहा, आम तौर पर इस तरह के डेटा को आयकर अधिकारियों द्वारा मांगा जाना चाहिए। अगर पुलिस द्वारा डेटा प्राप्त करने की इस प्रथा को अनुमति दी जाती है, तो यह दाताओं और अन्य नागरिकों के गोपनीयता अधिकारों को नुकसान पहुंचा सकता है।

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.