मंगल ग्रह के बाद अब इस ग्रह पर जीवन की संभावना, NASA का यह है प्‍लान

नासा 2023 में Europa Clipper spacecraft अंतरिक्ष में भेजेगा. नासा 2015 से ही इसकी तैयारी कर रहा है

नासा 2023 में Europa Clipper spacecraft अंतरिक्ष में भेजेगा. नासा 2015 से ही इसकी तैयारी कर रहा है

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Drigraj Madheshia
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मंगल ग्रह के बाद अब इस ग्रह पर जीवन की संभावना, NASA का यह है प्‍लान

प्रतिकात्‍मक तस्‍वीर (NASA)

मंगल ग्रह के बाद अब वैज्ञानिकों को बृहस्पति ग्रह पर जीवन की उम्‍मीद दिख रही है. बृहस्पति ग्रह के चंद्रमा पर जीवन का पता लगाने के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) ने अपने यूरोपा क्लिपर मिशन के अगले चरण का खुलासा किया है. इसके तहत नासा (NASA) 2023 में Europa Clipper spacecraft अंतरिक्ष में भेजेगा. नासा (NASA) 2015 से ही इसकी तैयारी कर रहा है. यह बृहस्पति के चंद्रमा यूरोपा पर जीवन का पता लगाएगा. 

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अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा है कि अंतरिक्ष यान (Europa Clipper spacecraft) 2023 के शुरुआत में लॉन्च होने के लिए तैयार हो जाएगा. यूरोपा क्लिपर मिशन का प्रबंधन नासा (NASA) के मार्श स्पेस फ्लाइट सेंटर में प्लैनेटरी मिशन प्रोग्राम कार्यालय द्वारा किया जा रहा है. हंट्सविले, अलबामा और जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी एप्लाइड फिजिक्स लेबोरेटरी के सहयोग से पसादेना, कैलिफोर्निया में जेट प्रोपल्सन प्रयोगशाला द्वारा इसका विकास किया जा रहा है. नासा (NASA) का यूरोपा क्लिपर मिशन बृहस्पति के चंद्रमा पर "जीवन के लिए उपयुक्त परिस्थितियों" को खोजने में मदद कर सकता है.

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वॉशिंगटन में नासा (NASA) मुख्यालय में विज्ञान मिशन निदेशालय के एसोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर थॉमस ज़ुर्बुचेन ने एक बयान में कहा, "हम इस फैसले से उत्साहित हैं, जो यूरोपा क्लिपर मिशन को इस सोलर सिस्‍टम के रहस्यों को खोलने के करीब ले जाता है." "हम प्रमुख गैलीलियो और कैसिनी अंतरिक्ष यान से प्राप्त वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि पर निर्माण कर रहे हैं और हमारे ब्रह्मांडीय मूल की समझ और यहां तक ​​कि जीवन को आगे बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं."

यूरोपा क्लिपर मिशन का उद्देश्य बृहस्पति के बर्फीले चंद्रमा की खोज करना है और यह पता लगाना है कि क्या यह अलौकिक जीवन के लिए उपयुक्त है. हालांकि नासा (NASA) अपने अंतरिक्ष यान को 2023 तक लॉन्च करने के लिए तैयार करने की योजना बना रहा है, लेकिन वह 2025 में मिशन को आधिकारिक तौर पर लॉन्च कर सकता है.

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जून 2015 में यूरोपा क्लिपर मिशन ने अपने विकास के प्रथम चरण में प्रवेश किया था. उसी वर्ष नासा (NASA) के वैज्ञानिकों ने यूरोपा पर समुद्री नमक की खोज की थी. इसी की वजह से बर्फीले चंद्रमा पर जीवन की उम्‍मीद जगी थी., और ग्रहों के निवास के क्षेत्र में नए विचारों को सामने रखा गया था.

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बता दें मौजूदा समय में लोग मंगल ग्रह पर एक स्थाई मानव कॉलोनी बसाने के लिए काम कर रहे हैं. इसका तर्क इस प्रकार है- पर्यावरण की दृष्टि से पृथ्वी के सबसे अधिक नजदीक मंगल ग्रह है. इसका एक वातावरण है, हालांकि ये पूरी तरह से कॉर्बन डाई ऑक्साइड से बना है. इसके एक दिन में करीब साढ़े 24 घंटे होते हैं जो लगभग पृथ्वी के ही समान है.

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ये पृथ्वी के आकार का लगभग आधा है, इसलिए इसके गुरुत्वाकर्षण में बहुत ज्यादा फर्क नहीं होगा, हालांकि यह पृथ्वी के मुकाबले कम है. पृथ्वी पर किसी 50 किलो के इंसान का वजन मंगल पर 20 किलो से कम होगा. सौरमंडल के बाकी दूसरे ग्रह पृथ्वी से काफी अलग हैं. वो सूरज से बहुत दूर हैं और ठंडे हैं; जैसे- वृहस्पति, जो आकार में काफी बड़ा हैं और उसका गुरुत्वाकर्षण भी काफी ज्यादा है, तो वहीं कुछ का वातावरण जहरीला है.

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मंगल पर बर्फ के रूप में काफी पानी है. और चूंकि यहां कार्बन डाई ऑक्साइड भी मौजूद है, इसलिए वहां मौजूद तत्वों से प्लास्टिक जैसे हाइड्रोकार्बन बनाए जा सकते हैं. अंतरिक्ष यात्रा में दूसरी सबसे बड़ी जरूरत ईंधन की होती है, और आज के समय में जो रॉकेट बनाए जा रहे हैं वो मीथेन और लिक्विड ऑक्सीजन से संचालित होंगे, और ये दोनों मंगल पर उत्पादित किए जा सकते हैं.

Source : दृगराज मद्धेशिश

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