प्लाज्मा‍ टेक्‍नोलॉजी (Plazma Technology) बन सकती है कोरोना वायरस (Corona Virus) के खिलाफ बड़ा हथियार, आखिर क्‍या है यह तकनीक

दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में कोविड-19 (Covid-19) के गंभीर रूप से बीमार मरीजों के इलाज के लिए प्रायोगिक तौर पर पहली बार प्लाज्मा‍ प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जाएगा.

दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में कोविड-19 (Covid-19) के गंभीर रूप से बीमार मरीजों के इलाज के लिए प्रायोगिक तौर पर पहली बार प्लाज्मा‍ प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जाएगा.

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Sunil Mishra
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प्लाजमा टेक्‍नोलॉजी बन सकती है कोरोना वायरस के खिलाफ बड़ा हथियार( Photo Credit : ANI Twitter)

दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में कोविड-19 (Covid-19) के गंभीर रूप से बीमार मरीजों के इलाज के लिए प्रायोगिक तौर पर पहली बार प्लाज्मा‍ प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जाएगा. अधिकारियों ने बुधवार को यह जानकारी दी. एक अधिकारी ने बताया कि प्लाज्मा‍ प्रौद्योगिकी का क्लीनिकल परीक्षण ‘‘इन्स्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बाइलरी साइंसेज ’’ (आईएलबीएस) में किया जाएगा. प्लाज्मा‍ तकनीक (Plazma Technology) में कोरोना वायरस (Corona Virus) के संक्रमण से उबर चुके व्यक्ति के रक्त की एंडीबॉडी का इस्तेमाल, कोविड-19 से गंभीर रूप से संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए किया जाता है.

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इस प्रौद्योगिकी का उद्देश्य कोविड-19 के मरीजों में संक्रमण की वजह से होने वाली समस्याओं को सीमित करने के लिए कॉनवेलेसेन्ट प्लाज्मा‍ के प्रभाव का आकलन करना है. कॉनवेलेसेन्ट प्लाज्मा‍ कोरोना वायरस के मरीजों के लिए एक प्रायोगिक प्रक्रिया है. उप राज्यपाल अनिल बैजल (LG Anil Baijal) ने ट्वीट किया कि संबद्ध अधिकारियों को कोविड-19 के मरीजों के इलाज के दौरान, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों और मानकों का कड़ाई से पालन करने को कहा गया है.

उन्होंने ट्वीट किया ‘‘कोविड-19 के गंभीर रूप से बीमार मरीजों का जीवन बचाने के लिए दिल्ली में इलाज के वास्ते प्लाजमा प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जाएगा. संबद्ध अधिकारियों को कोविड-19 के मरीजों के इलाज के दौरान, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों और मानकों का कड़ाई से पालन करने को कहा गया है.’’

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अधिकारी ने बताया कि आईएलबीएस (ILBS) के निदेशक एस के सरीन की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय एक समिति ने कोरोना वायरस के गंभीर रूप से बीमार मरीजों के इलाज के लिए इस प्लाज्मा‍ थैरेपी का इस्तेमाल किए जाने का परामर्श दिया था.

प्‍लाज्‍मा थेरेपी कैसे काम करती है

हाल ही में बीमारी से उबरने वाले मरीजों के शरीर में मौजूद इम्यून सिस्टम से एंटीबॉडीज बनता है, जो ताउम्र रहते हैं. ये एंटीबॉडीज ब्लड प्लाज्मा में मौजूद रहते हैं. इसे दवा में तब्दील करने के लिए ब्लड से प्लाज्मा को अलग किया जाता है और बाद में एंटीबॉडीज निकाली जाती है. ये एंटीबॉडीज नए मरीज के शरीर में इंजेक्ट की जाती हैं इसे प्लाज्मा डेराइव्ड थैरेपी कहते हैं. ये एंटीबॉडीज शरीर को तब तक रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है, जब तक शरीर खुद इस लायक न बन जाए.

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क्या हैं एंटीबॉडीज?

एंटीबॉडीज प्रोटीन से बनीं खास तरह की इम्यून कोशिकाएं होती हैं. इसे बी-लिम्फोसाइट भी कहते हैं. शरीर में कोई बाहरी चीज (फॉरेन बॉडीज) के आते ही ये अलर्ट हो जाती हैं. बैक्टीरिया या वायरस द्वारा रिलीज किए गए विषैले पदार्थों को निष्क्रिय करने का काम यही एंटीबॉडीज करती हैं. कोरोना से उबर चुके मरीजों में खास तरह की एंटीबॉडीज बन चुकी हैं. अब इसे ब्लड से निकालकर दूसरे संक्रमित मरीज में इजेक्ट किया जाएगा तो कोरोना वायरस के संक्रमण से मुक्‍त हो जाएगा.

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कब तक शरीर में रहेंगी एंटीबॉडीज?

एंटीबॉडी सीरम देने के बाद कोरोना मरीज के शरीर में 3 से 4 दिन तक रहेंगी. इतने समय में मरीज रिकवर हो सकेगा. चीन और अमेरिका की रिसर्च के अनुसार, प्लाज्मा का असर शरीर में 3 से 4 दिन में दिख जाता है. सबसे पहले कोरोना सर्वाइवर की हेपेटाइटिस, एचआईवी और मलेरिया जैसी जांच की जाएगी, तभी रक्तदान की अनुमति दी जाएगी. रक्त से जिस मरीज का ब्लड ग्रुप मैच करेगा, उसका ही इलाज किया जाएगा.

Source : Bhasha

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