फल और सब्जियों का सेवन हर उम्र के लोगों के लिए लाभदायक होता है और डॉक्टर भी यह सलाह देते हैं कि सभी को शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अपने खाने में इन्हें पर्याप्त मात्रा में शामिल करना चाहिए।
अमेरिका की ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी के ताजा शोध से पता चला है कि फल और सब्जियों के सेवन से मानसिक स्वास्थ्य में भी सुधार आने की गुंजाइश रहती है। शोध में कहा गया है कि अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिस्ऑर्डर (एडीएचडी) से ग्रसित बच्चों के ध्यान न दे पाने के लक्षणों में फल और सब्जियों के सेवन से कमी आ सकती है।
एडीएचडी से ग्रसित बच्चे बहुत अधिक सक्रिय होते हैं। उन्हें किसी भी चीज पर फोकस करने में परेशानी होती है और वे अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में या चीजों को याद करने में मुश्किल का सामना करते हैं।
यूनिवर्सिटी में ह्युमैन न्यूट्रिशन विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर इरीन हात्सु ने कहा कि शोध के दौरान देखा गया कि अगर इन बच्चों को पर्याप्त मात्रा में फल और सब्जियां खिलाई जायें, तो उनमें ध्यान न दे पाने यानी फोकस न कर पाने के गंभीर लक्षण कम हो जाते हैं।
उन्होंने बताया कि फल और सब्जियों समेत संतुलित आहार लेना एडीएचडी के लक्षणों में कमी लाने का एक तरीका हो सकता है। यह शोध रिपोर्ट जर्नल न्यट्रिशनल न्यूरोसाइंस में ऑनलाइन प्रकाशित हुई है।
शोध के दौरान एडीएचडी से ग्रसित 134 बच्चों के माता-पिता को एक प्रश्नावली भरने के लिए दी गयी। इसमें पूछा गया था कि उनके बच्चे आमतौर पर क्या खाते हैं और एक बार में कितना खा पाते हैं।
शोधकर्ताओं का मानना है कि एडीएचडी दिमाग में मौजूद कुछ न्यूरोट्रांसमिटर्स के कम स्तर से जुड़ा है। इसमें विटामिन और मिनरल भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं क्योंकि ये ही शरीर को न्यूरोकेमिकल बनाने में मदद करते हैं।
हात्सु ने बताया कि भूख लगने पर किसी का भी चिड़चिड़ा होना स्वाभाविक होता है और एडीएचडी से ग्रसित बच्चे भी कोई अपवाद नहीं हैं। अगर उन्हें पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा है तो उनके लक्षण गंभीर हो सकते हैं।
शोध रिपोर्ट के अनुसार अगर माता-पिता अपने बच्चे को पर्याप्त भोजन न दे पाने के कारण परेशान होते हैं, तो इससे परिवार में तनाव उत्पन्न होने लगता है, जिससे एडीएचडी से ग्रसित बच्चों के लक्षण और गंभीर हो सकते हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि आमतौर पर जब एडीएचडी से ग्रसित बच्चे अधिक लक्षण दिखाने लगते हैं तो डॉक्टर उनके दवा की डोज बढ़ा देते हैं और अगर वे पहले से दवा न लेते हों, तो उन्हें दवा दी जाने लगती है।
शोधकर्ताओं ने सलाह दी है कि उपचार की इस प्रक्रिया के बीच यह भी देखा जाना चाहिए कि बच्चे कितना और क्या खा पा रहे हैं। बच्चे जो खा रहे हैं, उसकी गुणवत्ता भी देखी जानी चाहिए कि कहीं, उसकी वजह से ही तो उनके लक्षण गंभीर नहीं हो रहे हैं।
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Source : IANS