आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों ने सेप्सिस में प्रतिरक्षा कोशिकाओं की भूमिका का पता लगाया
आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों ने सेप्सिस में प्रतिरक्षा कोशिकाओं की भूमिका का पता लगाया
रुड़की:
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रुड़की के शोधकतार्ओं ने गंभीर संक्रमण और सेप्सिस में विशेष प्रतिरक्षा सेल मार्करों की भूमिका का पता लगाया है।हमारे रक्त में न्यूट्रोफिल, मोनोसाइट्स और मैक्रोफेज प्रकार की श्वेत रक्त कोशिकाएं होती है जो जो मृत कोशिकाओं, बैक्टीरिया और अन्य बाहरी रोगजनकों को मारकर साफ सफाई का कार्य करती हैं। ये कोशिकाएं शरीर में बाहरी संक्रमण होते ही रक्त से शरीर के उसी क्षेत्र में जाकर उनसे लड़ने लगती हैं ।
लेकिन अनियंत्रित और गंभीर संक्रमण जिसे आमतौर पर सेप्सिस कहा जाता है उस हालत में इन प्रतिरक्षा कोशिकाओं की संख्या असामान्य रूप से बढ़ जाती है और ये सक्रिय होकर क्षेत्र विशेष में जमा होने लगती है।
नतीजतन, ये कोशिकाएं समूह बनाकर शरीर के चारों ओर घूमती हुई फेफड़े, गुर्दे और यकृत जैसे महत्वपूर्ण अंगों में जमा हो जाती हैं, जिससे शरीर के कई अंग काम करना बंद कर देते हैं और व्यकित की मौत भी हो सकती है।
आईआईटी रुड़की की बायोसाइंसेज और बायोइंजीनियरिंग विभाग की प्रो. प्रणिता पी. सारंगी ने शुक्रवार को एक बयान में कहा सेप्सिस में मोनोसाइट्स, मैक्रोफेज और न्यूट्रोफिल के महत्व को देखते हुए, सूजन और सेप्सिस के चरणों का पता लगाने के लिए ऐसी कोशिकाओं के शरीर में प्रवास को समझना महत्वपूर्ण है।
जब ये प्रतिरक्षा कोशिकाएं रक्त वाहिकाओं से संक्रमित/सूजन वाली जगह तक पहुंचती हैं, तो वे कोलेजन या फाइब्रोनेक्टिन जैसे प्रोटीन से बंध जाती हैं। यह बंधन कोशिका सतहों पर मौजूद इंटीग्रिन नामक रिसेप्टर अणुओं के माध्यम से होता है। इंटीग्रिन रिसेप्टर्स प्रतिरक्षा कोशिकाओं और आसपास के मैट्रिक्स के बीच संचार को सक्षम करते हैं, जो कोशिकाओं के आने जाने और अन्य कार्यों में मदद करता है। उनकी अति-सक्रियता हाइपर-एक्टिवेशन के परिणामस्वरूप समस्याएं हो सकती हैं।
इस शोध अध्ययन में, टीम ने सेप्सिस में इंटीग्रिन की भूमिका दिखाने के लिए सेप्सिस के दो माउस मॉडल का इस्तेमाल किया। जब कोई संक्रमण होता है, तो मोनोसाइट्स रक्त परिसंचरण और अस्थि मज्जा से संक्रमित/सूजन वाले ऊतक की ओर चले जाते हैं।
ऊतकों के अंदर, ये मोनोसाइट्स मैक्रोफेज में परिपक्व हो जाते हैं और संक्रमण युक्त माहौल से संकेतों को ग्रहण करते हुए, ये कोशिकाएं धीरे-धीरे इम्यूनोसप्रेसिव के तौर पर बदल जाती हैं जो उनके इंटीग्रिन एक्सप्रेशन प्रोफाइल से संबंधित होते हैं।
विश्वविद्यालय में डॉक्टरेट छात्र, प्रमुख शोधकर्ता शीबा प्रसाद दास ने कहा, इन निष्कर्षों से सेप्सिस के चरणों का पता लगाने और उचित उपचार में मदद मिलेगी।
ये शोध निष्कर्ष जर्नल ऑफ इम्यूनोलॉजी में प्रकाशित किए गए हैं।
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