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IIT: सोलर पैनल के सतह की सफाई के लिए एक नई कोटिंग टेक्नोलॉजी विकसित

आईआईटी जोधपुर के शोधकतार्ओं ने सोलर पैनल की सतहों की सफाई के लिए एक नई कोटिंग टेक्नोलॉजी विकसित की है. यह कोटिंग पारदर्शी, स्केलेबल, टिकाऊ और सुपरहाइड्रोफोबिक है. यह सोलर पैनलों पर धूल जमना कम करती है और बहुत कम पानी से अपने आप साफ होने की सुविधा देती है. इन्हें सोलर पैनल निर्माण संयंत्रों के साथ आसानी से जोड़ा जा सकता है. इस प्रौद्योगिकी को पेटेंट की मंजूरी के लिए भेजा गया है.

Updated on: 21 Nov 2022, 07:16 PM

नई दिल्ली:

आईआईटी जोधपुर के शोधकतार्ओं ने सोलर पैनल की सतहों की सफाई के लिए एक नई कोटिंग टेक्नोलॉजी विकसित की है. यह कोटिंग पारदर्शी, स्केलेबल, टिकाऊ और सुपरहाइड्रोफोबिक है. यह सोलर पैनलों पर धूल जमना कम करती है और बहुत कम पानी से अपने आप साफ होने की सुविधा देती है. इन्हें सोलर पैनल निर्माण संयंत्रों के साथ आसानी से जोड़ा जा सकता है. इस प्रौद्योगिकी को पेटेंट की मंजूरी के लिए भेजा गया है.

सोलर पैनल निमार्ताओं का दावा है कि ये पैनल 20 से 25 वर्षों तक अपनी 80 से 90 प्रतिशत क्षमता से काम कर सकते हैं. सोलर पैनलों पर धूल और मिट्टी जमा होने से उनका काम प्रभावित होता है. इस वजह से चंद महीनों में धूल जमा होने के कारण सोलर पैनल अपनी क्षमता शुरूआती क्षमता से 10 से 40 प्रतिशत तक खो देते हैं. यह निर्भर करता है कि सौर ऊर्जा संयंत्र कहां है और वहां कि जलवायु कैसी है.

वहीं सोलर पैनल साफ करने की प्रचलित विधियां महंगी, और अधिक कारगर नहीं हैं. इस तरह सोलर पैनल के उपयोग में कई व्यावहारिक समस्याएं और परिणामस्वरूप सोलर पैनल की खराबी को ठीक करना कठिन होता है. आईआईटी जोधपुर के शोधकतार्ओं ने इस वास्तविक समस्या से प्रेरणा ली और सुपरहाइड्रोफोबिक सामग्री का उपयोग कर सेल्फ-क्लीनिंग कोटिंग का विकास किया.

सेल्फ-क्लीनिंग कोटिंग पर काम करने वाले शोधकर्ता, आईआईटी जोधपुर में एसोसिएट प्रोफेसर और मेटलर्जी एवं मटीरियल्स इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख डॉ. रवि के.आर. हैं.

आईआईटी जोधपुर में विकसित सुपरहाइड्रोफोबिक कोटिंग में सेल्फ-क्लीनिंग का बेजोड़ गुण है और इससे ट्रांसमिटेंस या बिजली रूपांतरण क्षमता में कोई हानि नहीं दिखी है. तीव्र गति से प्रयोगशाला स्तरीय परीक्षणों से पता चला है कि यह कोटिंग मैकेनिकल और पर्यावरण स्तर पर बहुत अधिक टिकाऊ है. वर्तमान में प्रचलित फोटोवोल्टिक बिजली उत्पादन में यह कोटिंग कारगर और आसान है. इसे बस स्प्रे और वाइप करना होता है. सुपरहाइड्रोफोबिक कोटिंग की सेल्फ-क्लीनिंग में पानी की आवश्यकता कम होती है. इस तरह यह कम खर्च पर उन क्षेत्रों में भी उपयोगी है जहां पानी की कमी रहती है.

डॉ. रवि के.आर ने कहा, इस प्रौद्योगिकी को वास्तविक उपयोग में शामिल करने के लिये शिक्षाविदों और उद्योग जगत की भूमिका महत्वपूर्ण है. शिक्षा और उद्योग जगत का संबंध केवल प्रौद्योगिकी देने लेने का नहीं है बल्कि परस्पर संवाद, सहयोग और भागीदारी के साथ एक-दूसरे के काम और योगदान को महत्व देना भी है. इसलिए हमारी शोध टीम चाहती है कि उद्योग के साथ मिलकर काम करते हुए पीवी मार्केट में इस आसान कोटिंग प्रौद्योगिकी को पेश करे और व्यापक लाभ के लक्ष्य से बड़े पैमाने पर उत्पादन सुनिश्चित करे.

शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि आने वाले समय में देश के अलग-अलग क्षेत्रों जैसे शुष्क और अर्ध-शुष्क रेगिस्तानी तटीय क्षेत्रों और ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में यह अध्ययन हो कि सेल्फ-क्लीनिंग कोटिंग कितना टिकाऊ है. शोधकर्ता कोटिंग के अन्य विकल्पों पर भी काम कर रहे हैं ताकि उपयोग के दौरान किसी नुकसान का निदान करना भी आसान हो. आईआईटी जोधपुर के शोधकर्ता सोलर पैनल पर धूल-मिट्टी जमा होने से सौर ताप के उपयोग में आई कमी कम करने पर भी काम करेंगे.

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.