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ई-कचरे से निकल सकेगा 50 फीसदी सोना-चांदी, आईआईटी दिल्ली की खोज

आईआईटी दिल्ली के मुताबिक विश्व में ई-कचरा 3 से 5 प्रतिशत की वार्षिक दर के साथ बढ़ रहा है. ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर रिपोर्ट 2020 का कहना है कि वैश्विक स्तर पर 2019 में 53.7 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) कचरा उत्पन्न हुआ था.

Updated on: 02 Mar 2021, 08:56 AM

highlights

  • आईआईटी दिल्ली के मुताबिक विश्व में ई-कचरा 3 से 5 प्रतिशत की वार्षिक दर के साथ बढ़ रहा है
  • भारत ई-कचरे का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक, 2019 में भारत में 3.23 एमएमटी ई-कचरा उत्पन्न  

नई दिल्ली :

आईआईटी दिल्ली (IIT Delhi) की शोधकर्ताओं की एक टीम ने ई-कचरे (E-Waste) के प्रबंधन और पुर्नचक्रण के लिए स्थायी तकनीक विकसित की है. आईआईटी द्वारा विकसित यह तकनीक केंद्र सरकार की पहल 'स्मार्ट शहर', 'स्वच्छ भारत अभियान', और 'आत्मनिर्भर भारत' की आवश्यकता को पूरा करेगी. आईआईटी दिल्ली के मुताबिक विश्व में ई-कचरा 3 से 5 प्रतिशत की वार्षिक दर के साथ बढ़ रहा है. ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर रिपोर्ट 2020 का कहना है कि वैश्विक स्तर पर 2019 में 53.7 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) कचरा उत्पन्न हुआ था और यह 2030 तक 74.7 एमएमटी तक पहुंचने की उम्मीद है. भारत ई-कचरे का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और अकेले 2019 में ही भारत में 3.23 एमएमटी ई-कचरा उत्पन्न किया है. भारत में बढ़ते उपभोक्तावाद के बीच ई-कचरा प्रबंधन कमजोर स्थिति में है.

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आईआईटी दिल्ली के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग में कैटेलिटिक रिएक्शन इंजीनियरिंग प्रयोगशाला में यह शोध प्रोफेसर केके पंत के नेतृत्व में किया गया. इस परियोजना को भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषित किया गया है. ई-कचरे में विषाक्त पदार्थ होते हैं और इसके अनियमित संचय, लैंडफिलिंग, या अनुचित रीसाइक्लिंग प्रक्रियाएं से मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को खतरा है। आईआईटी दिल्ली ने कहा कि इन ई-कचरे को धातु वसूली और ऊर्जा उत्पादन के लिए 'शहरी खान' भी माना जा सकता है. आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ताओं द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली एक तीन-चरण प्रक्रिया है। सबसे पहले, ई-कचरे को तरल और गैसीय ईंधन प्राप्त करने के लिए बांटा जाता है। यह धातु से समृद्ध ठोस अंश को अलग कर देता है। अलग होने पर, बचे हुए ठोस अवशेषों से 90-95 प्रतिशत शुद्ध धातु मिश्रण और कुछ सामग्री प्राप्त होती है.

कार्बनस्पेस सामग्री आगे तेल रिसाव की सफाई, डाई हटाने, कार्बन डाइऑक्साइड कैप्चर और सुपरकैपेसिटर में उपयोग के लिए एयरगेल में बदल जाती है. अगले चरण में, धातु मिश्रण से अलग-अलग धातुओं जैसे तांबा, निकल, सीसा, जस्ता, चांदी और सोने को पुनप्र्राप्त करने के लिए एक कम-तापमान वाली तकनीक का उपयोग किया जाता है. इस तकनीक के जरिये लगभग 93 फीसदी तांबा, 100 फीसदी निकेल, 100 फीसदी जिंक, 100 फीसदी सीसा और 50 फीसदी सोना और चांदी ई-कचरे से हासिल की जा सकती है. यह एक इको फ्रैंडली प्रक्रिया है, जिसमें कोई भी जहरीले रसायनों को पर्यावरण में नहीं छोड़ा जाता है.

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आईआईटी दिल्ली केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख प्रोफेसर केके पंत ने कहा, 'इलेक्ट्रॉनिक कचरा (ई-कचरा) उत्पन्न होना अपरिहार्य है और अगर अभी समस्या का समाधान नहीं किया जाता है, तो यह ठोस कचरे के पहाड़ों को जन्म देगा। हमारे अनुसंधान समूह द्वारा अग्रणी प्रौद्योगिकी एक एकीकृत दृष्टिकोण है जो ई-कचरे से धातु निकालने और ईंधन उत्पादन के अतिरिक्त लाभ के साथ ई-कचरे के उपचार के लिए पर्यावरण के अनुकूल समाधान प्रदान करती है. इस प्रोजेक्ट के लिए आईआईटी दिल्ली की टीम को गांधीवादी युवा तकनीकी नवाचार से सम्मानित किया गया। इस प्रौद्योगिकी का पेटेंट भी कराया गया है और इसे अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित किया गया है.