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क्या आप जानते हैं कि एक गूगल सर्च से कितनी बिजली होती है खर्च, जानकर रह जाएंगे हैरान

उपयोगकर्ता इस बात से अंजान हैं कि इंटरनेट पर बढ़ती अत्यधिक निर्भरता उनके विनाश का कारण भी साबित हो सकती है.

Updated on: 05 Feb 2020, 07:25 AM

New Delhi:

दुनियाभर के देश कार्बन उत्सर्जन (Carbon Emission) को कम करने को लेकर पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं. ऐसे में कई लोगों के लिए यह बात हैरान करने वाली होगी, लेकिन इंटरनेट(Internet) का उपयोग कार्बन उत्सर्जन (Carbon Emission) का एक बड़ा कारण है. उपयोगकर्ता इस बात से अंजान हैं कि इंटरनेट पर बढ़ती अत्यधिक निर्भरता उनके विनाश का कारण भी साबित हो सकती है.

जर्मनी की कंपनी ने किया शोध

जर्मनी की इंटरनेट कंपनी ‘स्ट्राटो’ ने अपने एक बयान में बताया था कि गूगल (Google) के डाटा सेंटरों (Data centers), सर्वरों (Servers) और खोज अनुरोधों पर गौर किया जाए तो पता चलता है कि एक गूगल सर्च (Google search) पर खर्च होने वाली बिजली से 11 वॉट का एक सीएफएल बल्ब (CFL Bulb) एक घंटे तक जल सकता है.

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हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने भी दावे को माना सही

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने अपने अध्ययन में दावा किया है कि एक कप चाय उबालने में जितनी कार्बन डाईऑक्साइड पैदा होती है, लगभग उतनी ही गूगल पर दो बार खोज करने से हो जाती है. इस तथ्य को कई वैज्ञानिकों ने सही ठहराया है. एक कप चाय उबालने से लगभग 15 ग्राम कार्बन डाईऑक्साइड पैदा होती है, तो सोचा जा सकता है कि एक बार नेट सर्फिंग से कितनी कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन हो रहा है? हम स्वयं अपने व्यवहार का आकलन करें तो पाएंगे कि प्रतिदिन छोटी से छोटी बातों को खोजने के लिए कितनी बार हम इंटरनेट पर सर्च करते हैं. स्थिति यह है कि इस बात को लेकर गूगल को भी स्पष्टीकरण देना पड़ा था.

गूगल ने भी माना

दुनिया का सबसे लोकप्रिय सर्च इंजन इंटरनेट पर 40 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है. गूगल सर्च से एक सेकेंड में 500 किलोग्राम कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन होता है. इस मामले में उल्लेखनीय है कि गूगल ने इस बात को अस्वीकार नहीं किया कि डाटा सेंटर कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन में इजाफा कर रहे हैं. गूगल को स्वीकार करना पड़ा कि भले ही उसकी खोज से उतनी ज्यादा कार्बन डाईऑक्साइड पैदा नहीं होती, मगर होती जरूर है और दुनिया का तापमान बढ़ाने में उसका कुछ न कुछ योगदान भी होता है. इंटरनेट अपनेआप में एक क्लाउड है, लेकिन यह वास्तव में डाटा सेंटर के लाखों सर्वर पर निर्भर रहता है.

फेसबुक भी है लाइन में

फेसबुक की इस मामले में बात की जाए तो उसने वर्ष 2016 में अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि उसके डाटा सेंटर और बिजनेस ऑपरेशंस से 7.18 लाख मीट्रिक टन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ है. दुनियाभर में गूगल बहुत बड़ा डाटा सेंटर ऑपरेट करता है, जिसके लिए बहुत ऊर्जा की आवश्यकता होती है. ये सभी सर्वर राउटर, स्विचेस और समुद्र के भीतर केबल या अंडरसी केबल यानी समुद्र के भीतर केबल के जरिये जुड़े होते हैं और इन सभी को चालू रखने के लिए बहुत अधिक ऊर्जा की जरूरत पड़ती है. गूगल के सर्च इंजन पर परिणाम बहुत तेजी से सामने आते हैं, जिसका अर्थ है कि काफी ज्यादा मात्रा में ऊर्जा का दोहन होता है. दुनिया भर में आज भी अधिकांश बिजली उन स्नोतों से आ रही है जो काफी मात्रा में कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन कर रहे हैं. जब ऊर्जा की अधिक मांग होती है, तो कोयला और जीवाश्म ईंधन से संचालित ये ऊर्जा संयंत्र और भी अधिक कार्बन उत्सर्जन करते हैं.

एक गूगल सर्च पर 11 वॉट सीएफएल जितनी बिजली की खपत

इंटरनेट उपयोग करने वालों के समय की बात की जाए तो एक संबंधित रिपोर्ट यह बताती है कि एक भारतीय किशोर इंटरनेट पर औसतन 1.41 घंटे प्रतिदिन व्यतीत करता है. एक रिपोर्ट में तो यह भी सामने आया कि वर्ष 2019 में जनवरी माह के दौरान यानी केवल एक माह में पूरी दुनिया के इंटरनेट उपयोगकर्ताओं ने 120 करोड़ वर्ष से ज्यादा समय ऑनलाइन रहकर बिता दिया.

फिलीपींस और ब्राजील इंटरनेट के इस्तेमाल में आगे

फिलीपींस के लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करने में सबसे आगे हैं. यहां के लोग प्रतिदिन औसतन 10 घंटे इंटरनेट का प्रयोग करते हैं. ब्राजील के लोगों ने वर्ष 2018 के दौरान प्रतिदिन औसतन साढ़े नौ घंटे इंटरनेट का प्रयोग किया. वहीं थाईलैंड के लोगों ने प्रतिदिन औसतन नौ घंटे 11 मिनट इंटरनेट पर बिताए हैं. इसके बाद चौथे और पांचवें नंबर पर क्रमश: कोलंबिया (नौ घंटे) और इंडोनेशिया (आठ घंटे 36 मिनट) जैसे देश हैं. सोशल मीडिया मैनेजमेंट प्लेटफॉर्म ‘हूटसूईट’ और डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी ‘वीआर सोशल’ द्वारा तैयार की गई ‘द डिजिटल 2019’ रिपोर्ट में पूरी दुनिया में प्रतिदिन इंटरनेट उपयोग का औसत छह घंटे 42 मिनट आया है. ये तमाम आंकड़े हमारी चिंताओं को और बढ़ा देते हैं. आज का समय तो 4जी इंटरनेट का समय है, इस हिसाब से 5जी के समय स्थिति क्या होगी इस बात का अभी केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है.


रोजाना साढ़े तीन अरब बार गूगल सर्च

गूगल पर रोजाना साढ़े तीन अरब खोज प्रविष्टियां आती हैं यानी करीब एक दिन में लोग साढ़े तीन अरब बार कुछ न कुछ सर्च करते हैं. गूगल की ओर से भी यह बताया गया है कि एक उपयोगकर्ता को एक महीने गूगल की सेवा देने में उतना ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जितना कि एक कार 1.6 किलोमीटर चलने में करती है. वर्ष 2018 में आइएएम की एक कॉन्फ्रेंस के दौरान मोल नामक एक शोधकर्ता ने कहा था, ‘गूगल पर हर सेकेंड खोज परिणाम लोगों तक पहुंचाने के लिए 23 पेड़ों को अपनी कार्बन सोखने की क्षमता का इस्तेमाल करना पड़ता है और दुनियाभर में पेड़ों की संख्या लगातार कम होती जा रही है. अब जरूरत है कि सभी डाटा सेंटर अक्षय ऊर्जा या नवीकरणीय ऊर्जा से संचालित किए जाएं.

गूगल डाटा सेंटर को हरित बनाने की पहल में लगा हुआ है. जैसे गूगल ‘कार्बन न्यूट्रल’ को बढ़ावा दे रहा है, कार्बन न्यूट्रल यानी न्यूनतम कार्बन डाईऑक्साइड पैदा करने वाली कंपनियां. इतना ही नहीं, वर्ष 2007 में आइबीएम ने प्रोजेक्ट ‘बिग ग्रीन’ के नाम से डाटा सेंटरों और सर्वरों में बिजली की खपत सीमित करने संबंधी परियोजना पर अमल शुरू किया था.

इंटरनेट हॉटस्पॉट से भारत में भी बढ़ेगा खतरा

संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में महज 16 वर्ष की किशोरी ग्रेटा थनबर्ग के आरोपों को बेबुनियाद नहीं माना जा सकता है, जिन्होंने दुनिया भर के देशों के हुक्मरानों पर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से निपटने में अक्षम रहने की बात कही थी. ग्रेटा थनबर्ग का कहना साफ था कि इस तरह नेताओं के द्वारा युवा पीढ़ी के साथ न केवल विश्वासघात किया गया है, वरन उनका बचपन भी छीन लिया गया है. आज महानगरों में सर्दियों में स्मॉग जैसी समस्या की मूल वजह क्या है! अनेक वन्य जीवों की प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर हैं. दूसरी ओर दिल्ली सरकार मुफ्त में इंटरनेट के लिए हॉटस्पॉट शुरू कर रही है. ऐसे में यह तय हमें करना है कि हमारी प्राथमिकता प्रकृति का संरक्षण है या हमारे कृत्यों से प्रकृति का विनाश. क्योंकि देर ही सही पर मानव जात को उसके किए कि सजा प्रकृति गिन-गिनकर देगी. इसलिए प्रकृति के कोप से बेहतर होगा हम अपने जीवन शैली में बदलाव करें नहीं तो हमारा वजूद ही खतरे में आ जाएगा.