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corona virus( Photo Credit : (सांकेतिक चित्र))
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corona virus( Photo Credit : (सांकेतिक चित्र))
सी-वोटर के देशव्यापी सर्वेक्षण से पता चला है कि भारतीयों का सोशल मीडिया (Social Media) पर विश्वास का स्तर काफी कम है, खासकर अखबार और टीवी चैनल जैसे मुख्यधारा की मीडिया से तुलना करने पर यह स्तर काफी कम है. कोविड-19 (CoronaVirus Covid-19) जैसी महामारी के बीच एक खतरनाक प्रचलन सोशल मीडिया मंचों के जरिए गलत सूचनाओं का फैलना है. लेकिन सी-वोटर द्वारा 23 अप्रैल से 30 अप्रैल के बीच किए गए देशव्यापी सर्वे से नीति निर्माता राहत की सांस ले सकते हैं.
सी-वोटर सर्वेक्षण के अनुसार, जो भारतीय सोशल मीडिया पर बहुत अधिक भरोसा करते थे, उनमें भारी कमी आई है, खासकर के जब अखबार, टीवी चैनल जैसे मुख्यधारा की मीडिया से तुलना की आती है तो, इसमें भारी कमी आई है.
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राष्ट्रीय स्तर पर, केवल 12.5 प्रतिशत प्रतिक्रियादाताओं ने कहा कि उन्हें सोशल मीडिया पर काफी विश्वास है, जबकि 30.8 प्रतिशत लोगों ने स्वीकार किया है कि उन्हें सोशल मीडिया पर जरा सा भी विश्वास नहीं है. वहीं 34 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें अखबारों पर काफी विश्वास है, जबकि 6.8 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हे अखबारों पर जरा सा भी विश्वास नहीं है. यहां यह बताना जरुरी है कि लॉकडाउन की सख्ती की वजह से अखबार बड़ी संख्या में लोगों के घरों तक नहीं पहुंच पा रहा है. इस मामले में टेलीविजन को लेकर प्रतिशत में काफी बढ़ोतरी हुई है. 42.3 प्रतिशत लोगों का कहना है कि उन्हें टीवी पर बहुत भरोसा है, जबकि 16.1 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें इस माध्यम पर भरोसा नहीं है.
सोशल मीडिया के प्रति विश्वास में कमी भौगोलिक क्षेत्रों और विभिन्न आय, शिक्षा, उम्र समूहों में है. आश्चर्यजनक रूप से जो भारतीय सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं, वे ही सोशल मीडिया पर कम विश्वास करते हैं. वहीं 25 साल से कम उम्र के भारतीय, जो बमुश्किल ही कभी प्रिंट अखबार पढ़ते हैं, उनका कहना है कि उनका सोशल मीडिया पर कोई विश्वास नहीं है. जबकि केवल 11 प्रतिशत का मानना है कि उनका सोशल मीडिया पर बहुत विश्वास है.
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वहीं 60 वर्ष से अधिक उम्र के भारतीयों में सोशल मीडिया को लेकर 'जरा सा भी विश्वास नहीं' प्रतिशत 20 से भी कम है. अन्यथा, सभी श्रेणियों के भारतीयों ने सोशल मीडिया में विश्वास की कमी को प्रदर्शित किया. उदाहरण के लिए, 35.2 प्रतिशत दलित सोशल मीडिया पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं करते हैं, जबकि 41 प्रतिशत सेमी-अर्बन भारतीयों ने ऐसे ही विचार व्यक्त किए.