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आईआईटी गांधीनगर का अविष्कार, वायरल संक्रमण पर करेगा प्रहार (आईएएनएस एक्सक्लूसिव)

आईआईटी गांधीनगर का अविष्कार, वायरल संक्रमण पर करेगा प्रहार (आईएएनएस एक्सक्लूसिव)

Updated on: 11 Jul 2021, 12:20 PM

नई दिल्ली:

आईआईटी गांधीनगर ने एक ऐसा अनोखा अविष्कार किया है जिससे वायरल संक्रमण को रोका जा सकता है। यह एक ऐसी एंटीवायरल कोटिंग है, जिसे किसी भी सतह पर आसानी से लगाया जा सकता है। यह कोटिंग लंबे समय तक वायरल संक्रमण को रोकने में सक्षम है।

वायरल संक्रमण खासतौर पर सर्दी, फ्लू, खसरा और चिकनपॉक्स जैसी बीमारियों का कारण बनते हैं। कभी-कभी ये वायरल संक्रमण गंभीर, संभावित रूप से जीवन-घातक जटिलताओं में भी परिवर्तित हो सकते हैं। डीहाइड्रेशन, निमोनिया आदि ऐसे ही संक्रमण हैं।

अब आईआईटी गांधीनगर के शोधकतार्ओं की एक टीम ने सफलतापूर्वक एक एंटी-वायरल सरफेस कोटिंग मटिरियल विकसित किया है। यह कोटिंग मटिरियल नॉन-पेथोजेनिक वायरस पर अत्यधिक प्रभावी है। साथ ही यह गैर-विषैला (नॉन-टॉक्सिक) और पर्यावरण के अनुकूल और पारदर्शी है।

आईएएनएस के सवाल पर आईआईटी गांधीनगर की ओर से जारी बयान में कहा गया है, यह नॉन टॉक्सिक सरफेस कोटिंग किसी भी इनडोर और बाहरी वस्तुओं जैसे कांच की खिड़कियों, लकड़ी और प्लास्टिक के फर्नीचर, वाहनों, ऑटोमोबाइल, दरवाजे के हैंडल, अन्य हैंडल आदि पर आसानी से लगाई जा सकती है।

यह अनूठा मटिरियल कुछ नैनोमीटर ही मोटा है। इसके लिए एक भारतीय पेटेंट भी दायर किया गया है। हालांकि अभी तक कोरोनावायरस के खिलाफ इस कोटिंग का परीक्षण नहीं किया गया है।

इसे बार-बार छुए जाने वाली सतह पर परीक्षण के बाद, टीम ने पाया कि इस कोटिंग की एंटी-वायरल क्षमता कई बार धोने के बाद भी लगभग अपरिवर्तित रहती है। इस प्रकार, यह वायरल संक्रमण और बार-बार छूने वाली सतहों से इसके संचरण को रोककर सार्वजनिक स्वास्थ्य परि²श्य को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।

कई मौजूदा एंटी-वायरल कोटिंग्स जो वायरस को निष्क्रिय करने के लिए उपयोग होती हैं वह तांबे या चांदी के आयनों को मुख्य तत्व के रूप में उपयोग करती हैं। इससे वह पर्यावरण और डिजाइन पहलुओं के हिसाब से मुश्किल बन जाती है क्योंकि तांबा एक ज्ञात विषाक्त (टॉक्सिक) पदार्थ है और गैर-पारदर्शी है। इसका अर्थ है इनडोर उपयोग के लिए इसका उपयोग करना बहुत चुनौतीपूर्ण होगा।

इस नए एंटी-वायरल सरफेस कोटिंग को बनाने वाली आईआईटी गांधीनगर की टीम में प्रोफेसर एमिला पांडा, एसोसिएट प्रोफेसर, मटिरियल्स इंजीनियरिंग; प्रोफेसर अभय राज सिंह गौतम, सहायक प्रोफेसर, मटिरियल्स इंजीनियरिंग, प्रोफेसर विरुपक्षी सोपिना, रामलिंगास्वामी फेलो, बायोलॉजिकल इंजीनियरिंग, निशाबेन एम पटेल, पीएचडी छात्र, बायोलॉजिकल इंजीनियरिंग और रवि तेजा मित्तिरेड्डी, पीएचडी छात्र, मटिरियल्स इंजीनियरिंग शामिल है।

यह मटिरीयल पर्यावरण के अनुकूल भी हो जाता है, जबकि गैर-स्टोइकोमेट्रिक आकार रहित टाइटेनियम ऑक्साइड के गैर-विषैले और आवश्यक तत्व, जो पृथ्वी की पपड़ी में ज्यादा उपस्थिति रखते हैं।

इसके अलावा, यह लगभग 45 नैनोमीटर मोटा है जो सभी प्रकार की सतहों पर आसानी से मिश्रित हो सकता है।

यह कोटिंग टिकाऊ, रासायनिक रूप से स्थिर पाई गई है और वह सब्सट्रेट के साथ मजबूती से चिपक जाता है। इसे कांच, धातु, स्टील, सिलिकॉन और टेफ्लॉन से लेकर विभिन्न इनडोर और आउटडोर सबस्ट्रेट्स पर आसानी से लगाया किया जा सकता है।

भविष्य के अनुप्रयोगों में इस नवाचार की उपयोगिता के बारे में बात करते हुए, प्रोफेसर एमिला पांडा, एसोसिएट प्रोफेसर, मटिरियल्स इंजीनियरिंग और शोध की प्रधान अन्वेषक (पीआई) ने कहा, इस मटिरियल द्वारा (सतह कोटिंग के लिए) दिखाए गए समग्र परिणाम आशाजनक हैं। पारदर्शी, कोस्ट-इफेक्टिव और पर्यावरण के अनुकूल होने के कारण, यह आने वाले दिनों में व्यावसायीकरण के लिए काफी बड़ी क्षमता रखता है। टीम फिलहाल इस कोटिंग का विभिन्न वायरल और बैक्टीरिया स्ट्रेन्स पर परीक्षण करने की प्रक्रिया में है। अगला कदम इसे बड़े स्तर पर तैयार करना हो सकता है।

टीम ने इस अनूठी एंटी-वायरल सतह कोटिंग और इसकी कोटिंग प्रक्रिया के लिए एक भारतीय पेटेंट भी दायर किया है। इसके अलावा, इस काम पर आधारित पांडुलिपि को एक अंतरराष्ट्रीय सहकर्मी-समीक्षा पत्रिका, एल्सेवियर के जर्नल ऑफ अलॉयज एंड कंपाउंड्स में प्रकाशित किया गया है।

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.