भारत में लोगों में धूम्रपान, गुटखे, पान मसाला का सेवन अनेक स्वास्थ्य संबंधी दिककतें पैदा कर रहा है और सिगरेट तथा तंबाकू के पैकेटों पर प्रकाशित किए जा रहे चेतावनी संदेशों को लोग गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।
देश में हर घंटे प्रत्येक पांच में एक व्यक्ति की मौत मुंह के कैंसर से हो रही है और इसके मामलों में लगातार बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है। यह विश्व में लोगों की मौत का एक बड़ा कारण बना हुआ है।
मुंह के कैंसर के व्यक्तिगत स्तर पर कई जोखिम कारक हो सकते हैं, जिनमें से कुछ पारिवारिक इतिहास हैं। कैंसर के कुछ पारिवारिक इतिहास वाले लोगों को कैंसर का उच्च जोखिम माना जाता है। शोध से यह भी पता चलता है कि विश्व स्तर पर मुंह के कैंसर से पीड़ित पांच में से चार लोगों ने तंबाकू का उपयोग किया था और लगभग 70 प्रतिशत अधिक शराब पीते थे। भारत में 27.49 करोड़ लोग तंबाकू का उपयोग करते हैं जो काफी चौंकाने वाले आंकडें़ हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5 के अनुसार 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी भारतीय पुरुषों में से 18.8 प्रतिशत शराब का सेवन करते हैं,जबकि 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की 1.3 प्रतिशत महिलाएं शराब का सेवन करती हैं। यह एक चिंताजनक तस्वीर पेश करता है।
मुंह का कैंसर मुख्य तौर पर होठों की भीतरी सीमा और जीभ के आगे के दो-तिहाई हिस्से सहित मौखिक गुहा की सभी सतहों में कोशिकाओं का बेहद अनियंत्रित प्रसार है। ये कैंसर मुख्य रूप से स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा के रूप में होते हैं, और अत्यधिक घातक तथा विकृत करने वाले प्रकृति के होते हैं।
मुख कैंसर का पता काफी देर से लगता है और इसके उपचार में देरी की वजह से मृत्यु दर विशेष रूप से अधिक पाई जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, कुछ सबसे सामान्य प्रकार के कैंसर, जैसे स्तन कैंसर, गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर, मुंह का कैंसर और कोलोरेक्टल कैंसर का पता अगर समय पर लग जाए और सर्वोत्तम विधियों के अनुसार इलाज हो जाए जो मरीज के बचने की संभावना बढ़ जाती है।
अगर किसी के परिवार में पहले किसी को मुंह का कैंसर रहा है तो उसे काफी सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
तंबाकू और सुपारी या पान सुपारी का सेवन, सिगरेट, बीड़ी, पाइप, सिगार, और चबाने वाले तंबाकू सहित तंबाकू के सभी रूपों के सेवन से मुंह के कैंसर की संभावना बढ़ सकती है। इसके जोखिम का आकलन करने के लिए समय-समय पर मुंह की जांच, डॉक्टर द्वारा नियमित जांच और अन्य नियमित स्वास्थ्य परीक्षण कैंसर का जल्द पता लगाने में मदद कर सकते हैं। इससे इलाज आसान हो जाता है। इसलिए अपने दंत चिकित्सक के पास नियमित तौर पर जाते रहें और इन दिनों इसकी जांच किट से कोई भी लक्षण पहचाना जा सकता है जो घर में कम, मध्यम या उच्च स्तर के जोखिम का आकलन करने में मदद कर सकता है।
. इसके अलावा चबाते या निगलते समय मुख गुहा, होंठ, जीभ, या गले में किसी भी छोटे संकेत, लक्षण या परेशानी को कभी भी अनदेखा न करें। इस समय अधिकांश रोगियों की मुंह की जांच के माध्यम से इसके लक्षणों का पता लगाया जा सकता है। लेकिन कई बार ये लक्षण काफी देर से सामने आते हैं और उस समय यह कैंसर दूसरी अवस्था मेटास्टासिस में चला जाता है जहां कैंसर ग्रस्त कोशिकाएं मूल स्थान से शरीर के अन्य हिस्सों में जाकर अन्य अंगों को निशाना बनाना शुरू कर देती हैं।
. विशेषज्ञों के अनुसार हमेशा स्वस्थ आहार और दंत स्वच्छता का पालन करना चाहिए और संतुलित पोषण शरीर को सुचारू रूप से और बेहतर तरीके से चलाने में मदद करता है। भोजन में सभी जरूरी सूक्ष्म पोषक तत्वों ,पर्याप्त फल और सब्जियां का शामिल होना जरूरी है। अतिरिक्त कैलोरी, चीनी और रेड मीट का अधिक मात्रा में सेवन मुंह के कैंसर के खतरे को बढ़ाते हैं और इनसे बचना चाहिए। रेड मीट, जैसे बीफ, लैंब और पोर्क को कैंसरकारक के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसका अर्थ है कि यह संभवत: कैंसर का कारण बनता है। रेड मीट खाने से भी कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
तंबाकू उत्पादों और शराब से दूरी बनाए रखना या कम मात्रा में रखना इससे बचने में काफी हद तक मददगार हो सकता है। यदि आप तंबाकू या शराब का सेवन नहीं करते हैं, तो इसे शुरू न करना एक अच्छा विचार है, और यदि आप करते हैं, तो इसे छोड़ने की दिशा में प्रयास करें। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, धूम्रपान न करने वालों को भी फेंफड़ों के कैंसर का जोखिम होता है लेकिन धूम्रपान करने वालों को अपने जीवनकाल में यह कैंसर होने की आशंका 22 गुना अधिक होती है।
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Source : IANS