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चंद्रयान 2: आज आर्बिटर से अलग होगा लैंडर विक्रम, पढ़ें पूरी Detail

देश के दूसरे चंद्रमिशन चंद्रयान-2 ने चंद्रमा की कक्षा में 20 अगस्त को प्रवेश किया था. जबकि ये मिशन 22 जुलाई 2019 को शुरू हुआ था.

Updated on: 02 Sep 2019, 07:47 AM

highlights

  • आज अपने लैंडर से अलग होगा रोवर विक्रम.
  • 1 सितंबर को चांद की पांचवीं कक्षा में हुआ है प्रवेश. 
  • अभी तक कोई चांद के साऊथ पोल पर नहीं रख पाया है कदम.

नई दिल्ली:

ISRO Moon Mission, Chandrayaan-2: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) को चंद्रमा (Moon Mission) की पांचवीं कक्षा में 1 सितंबर 2019 को सफलतापूर्वक प्रवेश करा चुका है. इसके बाद इसरो आज 2 सितंबर यानी की आज को चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से लैंडर ‘विक्रम’ को अलग करने की प्रक्रिया करने वाला है. यह प्रक्रिया आज दोपहर 12 बजकर 45 मिनट से एक बजकर 45 मिनट के बीच की जाएगी. चंद्रयान 2 का लैंडर ‘विक्रम’ (Lander Vikram) सात सितंबर को तड़के डेढ़ बजे से ढाई बजे के बीच चंद्रमा की सतह पर उतरेगा. देश के दूसरे चंद्रमिशन चंद्रयान-2 ने चंद्रमा की कक्षा में 20 अगस्त को प्रवेश किया था. जबकि ये मिशन 22 जुलाई 2019 को शुरू हुआ था.

दो सितंबर को लैंडर ‘विक्रम’ ऑर्बिटर से अलग होने के बाद यह सात सितंबर को चांद के साऊथ पोल एरिया में ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करेगा और इसी के साथ देश की स्पेस एजेंसी नासा के नाम एक और बड़ी उपलब्धि जुड़ जाएगी. ऐसा करके भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा.

भारत (India) से पहले रूस, अमेरिका और चीन चांद पर पहुंच चुके हैं लेकिन वे चंद्रमा South pole Area में नहीं पहुंच पाए थे. लैंडर के चंद्रमा की सतह पर उतरने के बाद इसके भीतर से ‘प्रज्ञान’ नाम का रोवर (Pragyan

इसरो के चेयरमैन के सिवान के मुताबिक, हम चांद पर एक ऐसी जगह जा रहे हैं, जो अभी तक दुनिया से अछूती रही है. यह है चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव.अंतरिक्ष विभाग की ओर से जारी एक बयान के मुताबिक, इस मिशन के दौरान ऑर्बिटर और लैंडर आपस में जुड़े हुए होंगे. इन्हें इसी तरह से GSLV MK III लॉन्च व्हीकल के अंदर लगाया जाएगा. रोवर को लैंडर के अंदर रखा जाएगा.लॉन्च के बाद पृथ्वी की कक्षा से निकलकर यह रॉकेट चांद की कक्षा में पहुंचेगा.

इसके बाद धीरे-धीरे लैंडर, ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा. इसके बाद यह चांद के दक्षिणी ध्रुव के आस-पास एक पूर्वनिर्धारित जगह पर उतरेगा. बाद में रोवर वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए चंद्रमा की सतह पर निकल जाएगा.