बैतूल का आदिवासी बाहुल्य बाचा बना सौर-ऊर्जा से आत्म-निर्भर गांव

बैतूल का आदिवासी बाहुल्य बाचा बना सौर-ऊर्जा से आत्म-निर्भर गांव

बैतूल का आदिवासी बाहुल्य बाचा बना सौर-ऊर्जा से आत्म-निर्भर गांव

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IANS
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Betul tribal

(source : IANS)( Photo Credit : (source : IANS))

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर बनने के संकल्प को मध्य प्रदेश में वास्तविक स्वरुप देने की कोशिशें जारी हैं और उस दिशा में कदम भी बढ़ाए जा रहे हैं। बैतूल जिले का आदिवासी बाहुल्य गांव है बाचा। यह गांव सौर-ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बन गया है। इसी के चलते उसे देश में नई पहचान भी मिली है।

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जनजातीय बहुल बैतूल जिले की घोड़ाडोंगरी तहसील के बाचा गांव के गोंड जनजाति परिवार अपनी खुशहाली के लिये नई टेक्नोलॉजी को अपनाने में पीछे नहीं हैं। बाचा गांव सौर ऊर्जा समृद्ध गांव के रूप में देश भर में अपनी पहचान बना चुका है।

बाचा गांव के सौर-ऊर्जा दूत अनिल उईके बताते है कि यहां के लोग वर्षों से ऊर्जा की कमी की पीड़ा झेलते-झेलते आख्रिरकार ऊर्जा-सम्पन्न बन गये। हमारा गांव बाचा देश का पहला सौर-ऊर्जा आत्म-निर्भर गांव बन गया है।

ग्राम पंचायत के पंच शरद सिरसाम बताते है कि हमारे गांव के सभी 75 घरों में सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरणों का उपयोग हो रहा है। आईआईटी बाम्बे और ओएनजीसी ने मिलकर बाचा को तीन साल पहले ही इस काम के लिये चुना था। इतने कम वक्त में ही हम बदलाव की तस्वीर देख रहे हैं।

यहां पंच शांतिबाई उइके बदले हालात से खुश हैं, वे बताती हैं कि बाचा के सभी 75 घरों में अब सौर-ऊर्जा पैनल लग गये हैं। सबके पास सौर-ऊर्जा भंडारण करने वाली बैटरी, सौर-ऊर्जा संचालित रसोई है। इंडक्शन चूल्हे का उपयोग करते हुए महिलाओं ने खुद को प्रौद्योगिकी के अनुकूल ढाल लिया है।

उन्होंने आगे बताया कि सालों से हमारे परिवार मिट्टी के चूल्हों का इस्तेमाल कर रहे थे। आग जलाना, आंखों में जलन, घना धुआं और उससे खांसी होना आम बात थी। अब हम इंडक्शन स्टोव के उपयोग के आदी हो चुके हैं। बड़ी आसानी से इस पर खाना बना सकते हैं। हमारे पास एलपीजी गैस है, लेकिन इसका उपयोग अब कभी-कभार हो रहा है।

राधा कुमरे बताती हैं कि पारंपरिक चूल्हा वास्तव में एक तरह से समस्या ही था। मैं अब इंडक्शन स्टोव के साथ सहज हूं, जिसे किसी भी समय उपयोग में ला सकते हैं।

वन सुरक्षा समिति के अध्यक्ष हीरालाल उइके कहते हैं, सूर्य-ऊर्जा के दोहन के प्रभाव को गांव से लगे जंगल से मापा जा सकता है। समिति के सदस्य वन संपदा की रक्षा करते हैं। दिन-रात सतर्क रहते हैं ताकि कोई भी जंगल को नुकसान न पहुंचाए।

गांव के 80 साल के बुजुर्ग शेखलाल कवड़े बताते है कि मैं इस गांव का सबसे पुराना मूल निवासी हूं। मैंने करीब से देखा है कि चीजें कैसे बदली हैं।

बाचा गांव की सामूहिक भावना को साझा करते हुए, अनिल उइके का कहना है कि बिजली के बिल कम होने से हर कोई खुश है। कारण यह है कि बिजली की खपत में भारी कमी आई है। सौर ऊर्जा संचालित एलईडी बल्ब के साथ घरों की ऊर्जा आवश्यकताओं को सौर ऊर्जा से आसानी से पूरा किया जा रहा है।

ग्राम पंचायत के सरपंच राजेंद्र कवड़े बताते हैं कि बाचा ने आसपास के गांवों को प्रेरित किया है। खदारा और केवलझिर गांव के आसपास के क्षेत्रों में भी रुचि पैदा हुई है।

भावना शाहपुर गवर्नमेंट कॉलेज के बीएससी अंतिम वर्ष के छात्र अरुण कावड़े का कहना है कि हम धीरे-धीरे सौर ऊर्जा पर पूरी तरह निर्भर हो रहे हैं, क्योंकि ग्रिड द्वारा आपूर्ति की गई बिजली महंगी हो रही है और यह पर्यावरण के अनुकूल है।

जनपद पंचायत घोड़ाडोंगरी के सदस्य रूमी दल्लू सिंह धुर्वे बताते हैं कि बाचा के सामाजिक व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन साफ दिखाई दे रहा है। उदाहरण के लिए, ग्रामीणों को तकनीकी अपनाने की झिझक नहीं रही। वे सामाजिक समस्याओं से निपटने के लिए वैज्ञानिक नजरिया अपना रहे हैं।

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

Source : IANS

      
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