अमेरिका, रूस, कनाडा के साथ वीनस पर शोध करने जा रहे हैं बीएचयू के भारतीय वैज्ञानिक
अमेरिका, रूस, कनाडा के साथ वीनस पर शोध करने जा रहे हैं बीएचयू के भारतीय वैज्ञानिक
नई दिल्ली:
एक अंतरराष्ट्रीय टीम वीनस (शुक्र ग्रह) पर विभिन्न मैग्मेटिक इकाईयों जैसे, ज्वालामुखी प्रवाह और दरार क्षेत्र का भूवैज्ञानिक व अनुसंधान कर रही है। इंटरनेशनल वीनस रीसर्च ग्रुप आईवीआरजी में रूस, कनाडा और अमेरिका जैसे देश काम कर रहे हैं। वहीं अब भारत भी वीनस की सतह का अध्ययन करने वाले अंतरराष्ट्रीय शोध समूह टीम वीनस का हिस्सा है। इस टीम में भारत का प्रतिनिधित्व बीएचयू कर रहा है।भारत से यह एकमात्र टीम है जो इस तरह के अत्यंत आधुनिक शोध में शामिल है। बीएचयू की टीम शुक्र ग्रह पर दर्ज मैग्मेटिक ज्वालामुखी गतिविधियों की पहचान करने में मदद करेगी, जो महत्वपूर्ण है क्योंकि शुक्र आकार और आंतरिक संरचना में पृथ्वी की तरह है, लेकिन इसमें कई अंतर भी है। इसमें प्रमुख अंतर यह है कि शुक्र पर कोई प्लेट विवर्तनिक गतिविधि नहीं है। यहां वायुमण्डल में 96 प्रतिशत कार्बन डाई आक्साइड है, जो पृथ्वी के वायुमण्डल से 90 गुना सघन है, और सतह का तापमान 450 डिग्री सेल्सियस है, इसलिए शुक्र ग्रह पर जल इकाइयों का अभाव है। फलस्वरूप यहां कोई क्षरण नहीं हुआ है।
बीएचयू के प्रोफेसर राजेश कुमार श्रीवास्तव ने आईएएनएस से कहा कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग की एक शोध टीम शुक्र ग्रह पर विभिन्न मैग्मेटिक इकाईयों जैसे, ज्वालामुखी प्रवाह और प्रमुख दरार क्षेत्र के लिए इसकी सतह का भूवैज्ञानिक मानचित्रण करने के अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान करेगी।
इस शोध के दौरान शुक्र ग्रह की जलवायु पर ज्वालामुखी गतिविधि के प्रभाव का आंकलन भी किया जाएगा। आईवीआरजी का नेतृत्व डॉ. रिचर्ड अन्स्र्ट टॉम्स्क स्टेट यूनिवर्सिटी, रूस और सह-नेतृत्व डॉ. हाफिदा एल. बिलाली कार्लटन यूनिवर्सिटी, कनाडा तथा डॉ. जेम्स हेड ब्राउन यूनिवर्सिटी, अमेरिका कर रहे हैं।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की वैज्ञानिक टीम का समन्वय प्रोफेसर राजेश कुमार श्रीवास्तव द्वारा प्रदान किया जा रहा है और वैज्ञानिक मार्गदर्शन डॉ. रिचर्ड अन्स्र्ट और डॉ. एल बिलाली द्वारा किया जा रहा है। टीम के अन्य सदस्यों के रूप में डॉ. अमिय कुमार सामल (सहायक प्रोफेसर) और दो पी.एच.डी. छात्रायें हर्षिता सिंह और ट्विंकल चड्ढा भी शामिल हैं।
कुछ समानताओं में ज्वालामुखी, डाइक के गुच्छों, ज्वालामुखी प्रवाह, शामिल हैं और ये सभी प्लूम से संबंधित हो सकते हैं जैसा कि पृथ्वी से भी दर्ज किया गया है। बीएचयू टीम के शोध की आने वाले दशक में शुक्र की खोज के लिए नियोजित मिशनों के लिए भी प्रासंगिकता है, जैसे रूस का वेनेरा-डी, और भारत का शुक्रयान-एक। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की टीम द्वारा किया गया शोध इन सभी शुक्र ग्रह अभियानों के लिए तय वैज्ञानिक लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है और संभावित रूप से प्रत्यक्ष मिशन भागीदारी का कारण बन सकता है।
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