वैज्ञानिकों की अद्भुत खोज: यूरेनस और नेप्च्यून जैसा नया ग्रह
माना जा रहा है कि कि इस अद्भुत खोज से विभिन्न ग्रहों की उत्पत्ति की पहेलियों को ज्यादा बेहतर ढंग से हल किया जा सकेगा।
नई दिल्ली:
खगोल वैज्ञानिकों ने एक अद्भुत खोज की है। यूरेनस और नेप्च्यून जैसा दिखने वाला ये विशाल बर्फीला ग्रह एक ये बेबी प्लेनेट के संकेत दे रहा है। ये अपने पास के ही एक तारे के पास विकसित हो रहा है। माना जा रहा है कि कि इस अद्भुत खोज से विभिन्न ग्रहों की उत्पत्ति की पहेलियों को ज्यादा बेहतर ढंग से हल किया जा सकेगा।
खगोल वैज्ञानिकों ने इस बर्फीले विशाल ग्रह को TW Hydrae नाम के स्टार (तारे) के पास पाया है। सेंट्रल स्टार से दूर और धूल के कणों के कारण इसके विशाल होने का पता लगाया जा सका है। जो यूरेनस और नेप्च्यून की तरह दिखाई दे रहा है।
पिछले दो दशक में अब तक कई सौर ग्रह पाए गए हैं। शोधकर्ता भी इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि प्लेनेट्स में कई विलक्षणताएं हो सकती हैं। हालांकि, अभी तक इस विविधता को लेकर कोई ठोस कारण नहीं मिल पाया है। जापान की यूनिवर्सिटी इबाराकी की रिसर्च टीम इस पर शोध कर रही है। इस टीम के नेतृत्व में ही युवा तारा TW Hydrae देखा गया है।
बताया जा रहा है कि ये स्टार लगभग 10 करोड़ साल पुराना है और पृथ्वी के करीब सबसे युवा सितारों में से एक है। निकटता के आधार पर ही पृथ्वी के रोटेट करने की धुरी हमें ग्रहों की विकसित प्रणाली के बारे में बताती है। TW Hydrae अध्ययन के लिए एक अनुकूल लक्ष्य के रूप में उभर कर आई है।
पिछले ऑब्जर्वेशन से पता चला है कि TW Hydrae छोटे-छोटे धूल के कणों से बने एक डिस्क से घिरा हुआ है। यह डिस्क पर ही ग्रहों का गठन होता है। इसके अलावा हाल ही में अल्मा पर हुए ऑब्जर्वेशन से पता चला है कि डिस्क में कई अंतराल (गैप्स) हैं।
कुछ सैद्धांतिक अध्ययन बताते हैं कि इस तरह के अंतराल से ग्रह बनने के सबूत मिलते हैं। टीम ने ऑब्जर्व किया है कि अल्मा के साथ मौजूद TW Hydrae के चारों तरफ दो रेडियो फ्रीक्वेंसी है। इसकी तीव्रता के अनुपात धूल के कणों के आकार पर निर्भर करती है। शोधकर्ता आसानी से इसके आकार का अनुमान लगा सकते हैं।
अनुपात को छोटे, माइक्रोमीटर आकार, धूल के कणों को प्रकाशित करता है। धूल के छोटे और बड़े कण एक त्रिज्या के साथ 22 खगोलीय इकाइयों के अंतराल में अनुपस्थित रहे हैं।
अध्ययन के मुताबिक, डिस्क में रिक्तता बड़े पैमाने पर ग्रहों द्वारा ही बनाई गई है, गैस-धूल के कणों के बीच गुरुत्वाकर्षण और घर्षण की पारस्परिक प्रक्रिया में धूल के बड़े कणों को धक्का देकर बाहर कर देता है और छोटे कण अंदर ही रह जाते हैं। वर्तमान समये में किया गया ऑब्जर्वेशन इन सैद्धांतिक पूर्वकथन से मेल खाते हैं।
अभी मिली जानकारी के आधार पर वैज्ञानिक आगे भी ऑब्जर्वेशन जारी रखेंगे, ताकि ग्रहों के निर्माण की प्रक्रिया को बहतर ढंग से समझा जा सके।
Don't Miss
वीडियो
IPL 2024
-
GT vs CSK Dream11 Prediction : गुजरात और चेन्नई के मैच में ये हो सकती है बेस्ट ड्रीम11 टीम, इसे चुनें कप्तान
-
PBKS vs RCB : बेंगलुरु ने जीत का 'चौका' लगाकर पंजाब को किया बाहर, RCB की प्लेऑफ की उम्मीद बरकरार
-
PBKS vs RCB : शतक से चूके कोहली, पटीदार और ग्रीन की तूफानी पारी, बेंगलुरु ने पंजाब को दिया 242 रनों का लक्ष्य
मनोरंजन
धर्म-कर्म
-
Rohini Vrat 2024: रोहिणी व्रत पर अक्षय तृतीया का महासंयोग, आज से इन राशियों की होगी चांदी!
-
Girl Names Inspired By Maa Lakshmi: देवी लक्ष्मी पर रखें अपनी बिटिया का नाम, यहां है 50 नामों की लिस्ट
-
Swapna Shastra: गलती से भी किसी के साथ शेयर न करें ये 4 सपने, वरना हो जाएगा बहुत बड़ा नुकसान!
-
Yamunotri Dham Yatra: यमुनोत्री धाम यात्रा का प्लान बना रहे हैं तो यहां जाने पूरी डिटेल