BlueBird Block-2 सैटेलाइट से हमारे स्मार्टफोन होंगे और स्मार्ट, जानें क्यों अहम ये लॉन्च?

BlueBird Block-2 सैटेलाइट का प्रक्षेपण ISRO और NSIL के लिए एक अहम व्यावसायिक उपलब्धि है. यह मिशन डायरेक्ट-टू-मोबाइल कनेक्टिविटी को बढ़ावा देगा और LVM3 की भारी पेलोड क्षमता को वैश्विक बाजार में स्थापित करता है.

BlueBird Block-2 सैटेलाइट का प्रक्षेपण ISRO और NSIL के लिए एक अहम व्यावसायिक उपलब्धि है. यह मिशन डायरेक्ट-टू-मोबाइल कनेक्टिविटी को बढ़ावा देगा और LVM3 की भारी पेलोड क्षमता को वैश्विक बाजार में स्थापित करता है.

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Ravi Prashant
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BlueBird Block-2 Photograph: (x/pmmodi/isro)

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने आज सुबह 8:55 बजे आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से LVM3-M6 रॉकेट के जरिए BlueBird Block-2 सैटेलाइट का सफल प्रक्षेपण किया. करीब 15 मिनट बाद सैटेलाइट को निम्न पृथ्वी कक्षा (LEO) में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया. यह मिशन न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) के माध्यम से एक अंतरराष्ट्रीय व्यावसायिक अनुबंध के तहत किया गया.

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LVM3 के लिए नया रिकॉर्ड

लगभग 6100 किलोग्राम वजनी BlueBird Block-2 अब तक LVM3 द्वारा LEO में भेजा गया सबसे भारी पेलोड है. इस मिशन के साथ LVM3 की यह तीसरी पूर्ण व्यावसायिक उड़ान, छठी ऑपरेशनल फ्लाइट और कुल नौवीं मिशन बन गई. यह ISRO का 101वां प्रक्षेपण और वर्ष का पांचवां मिशन भी है.

डायरेक्ट-टू-मोबाइल कनेक्टिविटी की दिशा में कदम

BlueBird Block-2 अगली पीढ़ी की LEO सैटेलाइट श्रृंखला का हिस्सा है, जिसे अमेरिकी कंपनी AST SpaceMobile विकसित कर रही है. इसका उद्देश्य साधारण स्मार्टफोन को सीधे सैटेलाइट से जोड़ना है. यह सैटेलाइट 4G और 5G वॉयस कॉल, वीडियो कॉल, मैसेजिंग, स्ट्रीमिंग और ब्रॉडबैंड सेवाएं बिना किसी विशेष हार्डवेयर या सैटेलाइट फोन के उपलब्ध करा सकेगा.

अद्वितीय एंटीना तकनीक

इस सैटेलाइट की सबसे बड़ी खासियत इसका 223 वर्ग मीटर का फेज्ड-एरे एंटीना है, जो LEO में अब तक का सबसे बड़ा व्यावसायिक संचार एंटीना माना जा रहा है. अंतरिक्ष में पूरी तरह खुलने के बाद यह 5600 से अधिक सिग्नल सेल बनाता है, जिससे सामान्य मोबाइल फोन के कमजोर सिग्नल भी पकड़े जा सकते हैं. इससे हिमालय, रेगिस्तान, समुद्र, घने जंगल और आपदा प्रभावित क्षेत्रों में भी कनेक्टिविटी संभव होगी.

पारंपरिक प्रणालियों से अलग कैसे

पारंपरिक सैटेलाइट सिस्टम के विपरीत, BlueBird Block-2 अंतरिक्ष में एक मोबाइल टावर की तरह काम करता है. जैसे ही उपयोगकर्ता ज़मीनी नेटवर्क से बाहर जाता है, उसका फोन सीधे सैटेलाइट से जुड़ता है. सिग्नल को ग्राउंड गेटवे तक भेजा जाता है, जहां से यह मोबाइल ऑपरेटर नेटवर्क में प्रवेश करता है. कम संख्या में गेटवे के जरिए भी बड़े क्षेत्रों को कवर किया जा सकता है.

LVM3 की संरचना और क्षमता

ISRO का LVM3 रॉकेट 43.5 मीटर ऊंचा है और इसका प्रक्षेपण भार 640 टन है. इसमें दो सॉलिड स्ट्रैप-ऑन बूस्टर, एक लिक्विड कोर स्टेज और एक क्रायोजेनिक अपर स्टेज शामिल हैं. इसकी 5 मीटर व्यास वाली फेयरिंग बड़े और चौड़े एंटीना वाले सैटेलाइट को ले जाने में सक्षम बनाती है.

ISRO के व्यावसायिक भविष्य का संकेत

यह मिशन दर्शाता है कि ISRO वैश्विक LEO कम्युनिकेशन बाजार में अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है. डायरेक्ट-टू-डिवाइस नेटवर्क भविष्य की टेलीकॉम संरचना का अहम हिस्सा बन रहे हैं. NSIL की बढ़ती भूमिका और LVM3 की विश्वसनीयता भारत को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष बाजार में एक भरोसेमंद लॉन्च प्रदाता के रूप में स्थापित कर रही है.

कक्षा में पहुंचने के बाद की प्रक्रिया

कक्षा में स्थापित होने के बाद BlueBird Block-2 अपने बड़े एंटीना को तैनात करेगा और तकनीकी परीक्षण पूरे करेगा. इसके बाद इसे AST SpaceMobile की वैश्विक श्रृंखला में जोड़ा जाएगा. भविष्य में यह नेटवर्क उन क्षेत्रों में भी मोबाइल सेवा उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखता है, जहां आज तक कवरेज संभव नहीं हो सकी है.

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